लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी ने विधानसभा चुनाव के लिए तैयारी अभी से शुरू कर दी है. पार्टी अध्यक्ष मायावती ने पिछले दिनों लखनऊ में प्रदेश भर के बसपाइयों के साथ मीटिंग करके साफ कर दिया था कि वह अब अखिलेश यादव के साथ नहीं हैं. वह आने वाले सभी छोटे-बड़े चुनाव अकेले लड़ेंगी. बसपा अध्यक्ष के पास गत लोकसभा चुनाव के दौरान जो रिपोर्ट आई उसमें बताया गया कि कार्यकर्ता सपा के साथ गठबंधन को लेकर बेहद नाराज हैं.
समाजवादी पार्टी के लोगों ने बसपा के प्रत्याशियों को वोट नहीं किया है. पार्टी के कार्यकर्ता इस बात से भी नाराज हैं कि जो समाजवादी पार्टी के खाते में सीटें गईं उस पर बसपा कैडर के कार्यकर्ता को चुनाव लड़ाया जा सकता था. ऐसे में अगर बसपा सपा से अलग होने की बात स्पष्ट नहीं की तो पार्टी कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में पिरोना कठिन होगा.
सोशल इंजीनियरिंग का किया है रुख:
इसी रणनीति के तहत बसपा अध्यक्ष मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग की ओर एक बार फिर रुख किया है. पिछले चुनाव परिणामों से उन्हें एहसास हुआ कि केवल जातीय आधार पर चुनाव लड़कर नहीं जीता जा सकता है. प्रदेश में अगर सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ना है तो सभी समाज के लोगों को साथ लाना होगा. यही वजह है पिछले दिनों हुई बैठक में उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग के तहत सभी समाज के लोगों को जोड़ने की बात कही है. पार्टी ने रणनीति तैयार की है कि अब प्रत्येक जिले में पार्टी के स्थानीय नेताओं की सक्रियता बढ़ाई जाए
बहुजन समाज पार्टी ने मौके की नजाकत को समझते हुए समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया और 10 सीटें हासिल कीं. गठबंधन का लाभ पूरी तरह से बसपा को ही मिला. 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को वह पूरी तरह से एक बार फिर नए सिरे से खड़ा करना चाहती हैं ताकि आगामी सभी चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे सकें.
-मनोज भद्रा,राजनीतिक विश्लेषक