लखनऊ: प्रदेश में जैसे-जैसे मतदान की तारीखें नजदीक आती जा रही हैं, चुनाव प्रचार भी उसी रफ्तार से तेज होता जा रहा है. शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना से चुनाव प्रचार का आगाज किया. इस क्षेत्र में पहले चरण का मतदान 10 फरवरी को होना है. वहीं बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आज अपने प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी की. इस बीच पूर्व मंत्री और पिछड़ों के नेता बाबू सिंह कुशवाहा ने असदुद्दीन ओवैसी व वामन मेश्राम के साथ भागीदारी परिवर्तन मोर्चा गठित कर चुनाव लड़ने की घोषणा की है. आइए इस सभी खबरों और उनके निहितार्थ पर विस्तार से चर्चा करते हैं.
2017 के चुनाव से पहले ही हिंदुओं के पलायन की घटनाओं के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश स्थित शामली जिले का कैराना खासा चर्चा में रहा है. 2017 के चुनाव में भाजपा ने इसे मुद्दा बनाया और वादा किया कि यदि भाजपा की सरकार आई, तो हिंदुओं के साथ न्याय होगा और पलायन पर रोक लगेगी. पांच साल शासन करने के बाद भाजपा एक बार फिर इस मुद्दे को भुनाना चाहती है. क्षेत्र में हिन्दुओं का पलायन रोकने के लिए किए गए उपायों को गिनाकर पार्टी श्रेय तो ले ही रही है, साथ ही इस मुद्दे से ध्रुवीकरण को हवा भी मिलेगी. स्वाभाविक है कि इसका लाभ भाजपा को होगा. यही नहीं यदि पहले चरण से पार्टी के पक्ष में माहौल बन गया, तो आगे का चुनाव भी पार्टी के लिए आसान हो जाएगा. यही कारण है कि इस समय भाजपा के दिग्गज पश्चिमी उत्तर प्रदेश को मथ रहे हैं.
दस साल से सत्ता से दूर बहुजन समाज की मुखिया मायावती ने आज अपनी पार्टी के प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी की. 51 नामों वाली इस सूची में 23 मुस्लिम प्रत्याशी शामिल हैं. प्रदेश में पहले चरण के लिए 58 सीटों पर दस फरवरी और दूसरे चरण के लिए 55 सीटों पर 14 फरवरी को चुनाव होना है. बसपा ने इन 113 सीटों के लिए 37 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में मुस्लिम वोटरों की तादाद काफी है. कुछ सीटों पर यह मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. सपा का दावा है कि इस चुनाव में मुस्लिम वोटर उसका साथ देंगे, क्योंकि उनकी पार्टी जीतने का दम रखती है. कुछ हद तक यह बात सही भी है. प्रदेश की अधिकांश सीटों पर इस बार भाजपा का मुकाबला समाजवादी पार्टी से ही है. ऐसे में बसपा के यह 37 प्रत्याशी समाजवादी पार्टी का खेल बिगाड़ सकते हैं. स्थानीय होने के कारण इन सभी प्रत्याशियों का कुछ न कुछ अपना वोट है. इस तरह जिन सीटों पर बसपा के यह प्रत्याशी अच्छा लड़ेंगे वहां पर नुकसान सपा का होगा. भाजपा को इससे लाभ ही होगा.
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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी, जन अधिकार पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और बहुजन मुक्ति पार्टी के अध्यक्ष वामन मेश्राम ने मिलकर भागीदारी परिवर्तन मोर्चा तैयार किया है. इस मोर्चे ने भागीदारी का एक फार्मूला तैयार किया है, जिसके तहत यह मैदान में जाएंगे. दरअसल ओवैसी काफी समय से ओम प्रकाश राजभर के संपर्क में थे, लेकिन बाद में राजभर ने सपा का साथ किया और ओवैसी को अकेले छोड़ दिया. दूसरी ओर बाबू सिंह कुशवाहा की छह प्रतिशत कुशवाहा वोटों पर पकड़ मानी जाती है. वह इन वोटों के सहारे सपा से समझौता करना चाह रहे थे, किंतु अखिलेश ने उन्हें सपा के सिंबल पर ही चुनाव लड़ने का ऑफर दिया, जिसके लिए कुशवाहा तैयार नहीं थे. अंततः मजबूरी में कुशवाहा और ओवैसी को साथ आना पड़ा. इन दोनों ही नेताओं की प्रदेश में यह स्थिति नहीं है कि अकेले दम पर चुनाव मैदान में कोई चमत्कार दिखा सकें. हालांकि कुछ सीटों पर दोनों नेता मिलकर कुछ पार्टियों का खेल जरूर बिगाड़ सकते हैं. शायद यह दोनों नेता कोई और रास्ता बनता न देख इसी रूप में अपनी ताकत का एहसास कराना चाहते हैं.
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