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योगीराज में देवभाषा का हाल बेहाल, संस्कृत स्कूलों पर लगा ताला

प्रदेश में देववाणी संस्कृत और संस्कृत शिक्षकों का भविष्य अधर में है. 2017 में जब भाजपा सरकार आई थी तो लगा था कि इनके दिन बहुरेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.जहां प्रदेश में लगातार संस्कृत विद्यालय बंद हो रहे हैं, वहीं कई स्कूल एक-दो शिक्षकों के भरोसे पर ही चल रहे हैं. देखिए ये रिपोर्ट...

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Published : Jun 26, 2021, 2:26 PM IST

देवभाषा का हाल बेहाल
देवभाषा का हाल बेहाल

लखनऊ: 2017 में जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो संस्कृत के विद्वानों के मन में भी उम्मीद जागी, लगा कि प्रदेश के संस्कृत भाषा के स्कूलों की स्थिति बदलेगी. सरकार आए 4 साल से ज्यादा का समय पूरा हो चुका है, लेकिन संस्कृत शिक्षकों के संगठन के मुताबिक, प्रदेश में 100 से ज्यादा संस्कृत विद्यालय बंद हो गए. इसके अलावा कई ऐसे विद्यालय भी हैं जो एक-एक, दो-दो कमरों में चल रहे हैं. प्रदेश के संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों के पद बड़ी संख्या में खाली हैं. कई शिक्षक वेतन विसंगतियों को लेकर वर्षों से भटक रहे हैं. इन तमाम कारणों की वजह से कई और संस्थान भी बंद होने की कगार पर हैं. संस्कृत शिक्षकों का कहना है कि सरकार को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. अगर अब देरी हुई तो आगे देव भाषा संस्कृत की स्थिति और भी खराब होगी.


उत्तर प्रदेश में संस्कृत विद्यालयों की हालत
उत्तर प्रदेश में संस्कृत शिक्षा के लिए दो राजकीय और 973 सहायता प्राप्त विद्यालय हैं. इनका संचालन माध्यमिक शिक्षा निदेशालय के स्तर पर किया जाता है. माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में 973 में से प्राचार्य के 604 पद खाली हैं. इसी तरह सहायक अध्यापकों के 3,974 में से 2,054 पद खाली पड़े हैं. यानी कुल 4947 में से 2658 पद खाली हैं. इसका नतीजा है कि प्रदेश में 100 से ज्यादा विद्यालय एक भी शिक्षक न होने की वजह से बंद हो गए हैं. इसी तरह कई विद्यालय एक-एक, दो-दो शिक्षकों के सहारे चल रहे हैं. माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ रविंद्र नाथ शुक्ला ने बताया कि 20 साल से ज्यादा का समय गुजर गया है, लेकिन संस्कृत स्कूलों में नियुक्तियां नहीं की गईं. श्री शारदा संस्कृत महाविद्यालय के पंच देव झा ने बताया महाविद्यालय के टीचर ही विद्यालय स्तर पर भी पढ़ा रहे हैं.

देवभाषा का हाल बेहाल.
शिक्षकों का दर्द...
वर्तमान में संस्कृत विद्यालयों में काम करने वाले शिक्षकों को वेतन विसंगति जैसे मामले के चलते लगातार शासन प्रशासन के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ रविंद्र नाथ शुक्ल और कोषाध्यक्ष आचार्य मुनेंद्र देव शर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश के संस्कृत माध्यमिक और महाविद्यालय में कार्यरत प्रधानाचार्य और अध्यापक बेसिक शिक्षकों के बराबर वेतन प्राप्त कर रहे हैं. भाजपा के घोषणा पत्र को लेकर उन्होंने कहा कि 2017 में जारी चुनावी घोषणा पत्र में समान कार्य के लिए समान वेतन व्यवस्था लागू करने जैसा वादे किए थे, लेकिन अभी तक वह पूरा नहीं हो पाया. इसको लेकर जिम्मेदारों को बार-बार पत्र लिखकर अपनी बात भी रखी गई है, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है.
संस्कृत स्कूलों पर लगा ताला
संस्कृत स्कूलों पर लगा ताला.
भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में किए गए थे ये वादे
  • प्रदेश में एक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी.
  • संस्कृत शिक्षकों की वेतन विसंगति को दूर किया जाएगा.
  • प्राथमिक शिक्षा से योग शिक्षकों को शारीरिक शिक्षक पद पर नियुक्त किया जाएगा.

यह हो सकते हैं सुझाव
लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर ओम प्रकाश पांडे का कहना है कि संस्कृत पाठशालाओं में काफी अच्छा काम हो रहा है. यहां के विद्वान इस भाषा को बचाने और आगे ले जाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं. इस भाषा के लिए जो लोग अच्छा काम कर रहे हैं, उन्हें अनुदान मिले. विद्यालयों में शिक्षकों की कमी पूरी हो. साथ ही, यहां से पढ़कर निकलने वाले छात्र-छात्राओं को मुख्यधारा से जोड़ा जाए.

सरकार ने की है भर्ती की घोषणा
उत्तर प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा की ओर से बीते दिनों संस्कृत विद्यालयों में भर्ती की प्रक्रिया जल्द शुरू किए जाने की घोषणा की गई है. बीते दिनों हुई समीक्षा बैठक के बाद उन्होंने शिक्षा विभाग को संस्कृत अध्यापकों के रिक्त पदों पर शिक्षकों को उपलब्ध कराने के लिए तत्काल नीति निर्धारण करने के निर्देश दिए हैं.

इसे भी पढ़ें- मिशन 2022: सीएम बोले, बेसिक शिक्षा विभाग के रिक्त पदों पर भर्ती प्रक्रिया पूरी की जाए


विद्वानों को सरकार से हैं बड़ी उम्मीद
संस्कृत के विद्वानों को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से काफी उम्मीदें हैं. संगठन का कहना है सरकार को इस दिशा में तेजी से कदम उठाने पड़ेंगे. अभी देरी हुई तो आगे इस देव भाषा की स्थिति और खराब होगी.



लखनऊ: 2017 में जब उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो संस्कृत के विद्वानों के मन में भी उम्मीद जागी, लगा कि प्रदेश के संस्कृत भाषा के स्कूलों की स्थिति बदलेगी. सरकार आए 4 साल से ज्यादा का समय पूरा हो चुका है, लेकिन संस्कृत शिक्षकों के संगठन के मुताबिक, प्रदेश में 100 से ज्यादा संस्कृत विद्यालय बंद हो गए. इसके अलावा कई ऐसे विद्यालय भी हैं जो एक-एक, दो-दो कमरों में चल रहे हैं. प्रदेश के संस्कृत विद्यालयों में शिक्षकों के पद बड़ी संख्या में खाली हैं. कई शिक्षक वेतन विसंगतियों को लेकर वर्षों से भटक रहे हैं. इन तमाम कारणों की वजह से कई और संस्थान भी बंद होने की कगार पर हैं. संस्कृत शिक्षकों का कहना है कि सरकार को इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. अगर अब देरी हुई तो आगे देव भाषा संस्कृत की स्थिति और भी खराब होगी.


उत्तर प्रदेश में संस्कृत विद्यालयों की हालत
उत्तर प्रदेश में संस्कृत शिक्षा के लिए दो राजकीय और 973 सहायता प्राप्त विद्यालय हैं. इनका संचालन माध्यमिक शिक्षा निदेशालय के स्तर पर किया जाता है. माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में 973 में से प्राचार्य के 604 पद खाली हैं. इसी तरह सहायक अध्यापकों के 3,974 में से 2,054 पद खाली पड़े हैं. यानी कुल 4947 में से 2658 पद खाली हैं. इसका नतीजा है कि प्रदेश में 100 से ज्यादा विद्यालय एक भी शिक्षक न होने की वजह से बंद हो गए हैं. इसी तरह कई विद्यालय एक-एक, दो-दो शिक्षकों के सहारे चल रहे हैं. माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ रविंद्र नाथ शुक्ला ने बताया कि 20 साल से ज्यादा का समय गुजर गया है, लेकिन संस्कृत स्कूलों में नियुक्तियां नहीं की गईं. श्री शारदा संस्कृत महाविद्यालय के पंच देव झा ने बताया महाविद्यालय के टीचर ही विद्यालय स्तर पर भी पढ़ा रहे हैं.

देवभाषा का हाल बेहाल.
शिक्षकों का दर्द...
वर्तमान में संस्कृत विद्यालयों में काम करने वाले शिक्षकों को वेतन विसंगति जैसे मामले के चलते लगातार शासन प्रशासन के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं. माध्यमिक संस्कृत शिक्षक कल्याण समिति के अध्यक्ष डॉ रविंद्र नाथ शुक्ल और कोषाध्यक्ष आचार्य मुनेंद्र देव शर्मा ने बताया कि उत्तर प्रदेश के संस्कृत माध्यमिक और महाविद्यालय में कार्यरत प्रधानाचार्य और अध्यापक बेसिक शिक्षकों के बराबर वेतन प्राप्त कर रहे हैं. भाजपा के घोषणा पत्र को लेकर उन्होंने कहा कि 2017 में जारी चुनावी घोषणा पत्र में समान कार्य के लिए समान वेतन व्यवस्था लागू करने जैसा वादे किए थे, लेकिन अभी तक वह पूरा नहीं हो पाया. इसको लेकर जिम्मेदारों को बार-बार पत्र लिखकर अपनी बात भी रखी गई है, लेकिन अभी तक ऐसा हुआ नहीं है.
संस्कृत स्कूलों पर लगा ताला
संस्कृत स्कूलों पर लगा ताला.
भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में किए गए थे ये वादे
  • प्रदेश में एक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी.
  • संस्कृत शिक्षकों की वेतन विसंगति को दूर किया जाएगा.
  • प्राथमिक शिक्षा से योग शिक्षकों को शारीरिक शिक्षक पद पर नियुक्त किया जाएगा.

यह हो सकते हैं सुझाव
लखनऊ विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष डॉक्टर ओम प्रकाश पांडे का कहना है कि संस्कृत पाठशालाओं में काफी अच्छा काम हो रहा है. यहां के विद्वान इस भाषा को बचाने और आगे ले जाने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं. इस भाषा के लिए जो लोग अच्छा काम कर रहे हैं, उन्हें अनुदान मिले. विद्यालयों में शिक्षकों की कमी पूरी हो. साथ ही, यहां से पढ़कर निकलने वाले छात्र-छात्राओं को मुख्यधारा से जोड़ा जाए.

सरकार ने की है भर्ती की घोषणा
उत्तर प्रदेश सरकार के उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा की ओर से बीते दिनों संस्कृत विद्यालयों में भर्ती की प्रक्रिया जल्द शुरू किए जाने की घोषणा की गई है. बीते दिनों हुई समीक्षा बैठक के बाद उन्होंने शिक्षा विभाग को संस्कृत अध्यापकों के रिक्त पदों पर शिक्षकों को उपलब्ध कराने के लिए तत्काल नीति निर्धारण करने के निर्देश दिए हैं.

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विद्वानों को सरकार से हैं बड़ी उम्मीद
संस्कृत के विद्वानों को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से काफी उम्मीदें हैं. संगठन का कहना है सरकार को इस दिशा में तेजी से कदम उठाने पड़ेंगे. अभी देरी हुई तो आगे इस देव भाषा की स्थिति और खराब होगी.



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