लखनऊ: नई शिक्षा नीति के तहत महाविद्यालय स्वायत्त हो सकेंगे, यानी कि वह अपना पाठ्यक्रम खुद बना सकेंगे. अब महाविद्यालय खुद परीक्षा की नियमावली बना सकेंगे और दाखिला के लिए अपनी अलग से प्रक्रिया निर्धारित कर सकेंगे. इसके साथ ही संपूर्ण व्यवस्था महाविद्यालय प्रबंधन के हाथ में होगी.
नई शिक्षा नीति के तहत देश के सभी महाविद्यालयों को अगले 15 वर्षों में स्वायत्त होने की छूट दी गई है. उत्तर प्रदेश में मौजूदा समय में सात हजार से अधिक महाविद्यालयों में करीब 42 लाख छात्र-छात्राएं पढ़ाई कर रहे हैं.
अस्सी के दशक में यूजीसी ने स्वायत्त होने की व्यवस्था दी थी. अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें तो 80 के दशक से अब तक महज चार महाविद्यालय स्वायत्त की श्रेणी में आ सके हैं. इसके पीछे का कारण जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि महाविद्यालय खुद नहीं चाहते कि वे स्वायत्त हों. वे चाहते हैं कि उनकी निर्भरता विश्वविद्यालयों पर बनी रहे. उन्हें सीधे तौर पर कोई जिम्मेदारी का निर्वहन न करना पड़े, जिससे उनकी जवाबदेही निर्धारित न हो. अधिकतर विश्वविद्यालय जिम्मेदारियों का बोझ लेकर नहीं चलना चाहते हैं.
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि महाविद्यालय के लिए ऑटोनॉमस की व्यवस्था शुरू की जाती है तो गरीबों से शिक्षा दूर चली जाएगी. इसका निजीकरण होगा. ज्यादा से ज्यादा धनाढ्य लोग ही महाविद्यालय स्थापित करेंगे और अपनी मनमानी करेंगे. उनकी मनमानी का खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ सकता है.
देश में 400 और यूपी में चार ऑटोनॉमी
उत्तर प्रदेश की बहुत दयनीय स्थिति है. यूजीसी ने 80 के दशक से ही ऑटोनॉमस की व्यवस्था दी थी. देश में लगभग 400 कॉलेज स्वायत्त हुए हैं. 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में केवल चार कॉलेज स्वायत्तता रखते हैं. पांचवा कोई कॉलेज ऑटोनॉमस की श्रेणी में नहीं आना चाहता है.
लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. एसपी सिंह कहते हैं कि तीन साल के कुलपति कार्यकाल के दौरान उन्होंने लखनऊ के कई कॉलेज प्रबंधन से स्वायत्त होने के लिए प्रेरित किया, लेकिन उन लोगों ने आगे कदम नहीं बढ़ाया. कोई भी कॉलेज अपने प्रपोजल के साथ उपस्थित नहीं हुआ. इसका मतलब यह है कि जिम्मेदारी को लेने से हर आदमी भागता है. वह इसके लिए तैयार नहीं हो रहा है.
प्रोफेसर एसपी सिंह कहते हैं कि भारत सरकार की नई शिक्षा नीति में सभी चीजें स्वतः स्फूर्ति के जरिए की गई हैं. स्वायत्तता का मानक यह है कि कॉलेज अपने आप में इतने परिपूर्ण हो जाएं कि गुणवत्ता की दृष्टि से, कार्य करने की दृष्टि से, कार्य करने की क्षमता की दृष्टि से, अध्यापन की दृष्टि से उन्हें किसी सहारे की जरूरत न पड़े.
शिक्षक नेता डॉ. मौलेन्दु मिश्र कहते हैं कि स्वायत्तता निजीकरण को बढ़ावा देती है. भारत जैसे गरीब देश में यह लाभकारी नहीं होगा. जहां पर जनसंख्या कम है, आमदनी ज्यादा है, वहां के लिए ही यह ठीक है. इससे गरीब आदमी पढ़ने से वंचित होगा. अभी शिक्षकों की जांच हुई है, उसमें जो स्वायत्त हैं, उनमें कुछ कष्टकारी अनुभव प्राप्त हुए हैं. यह एक क्षणिक स्वायत्तता के उदाहरण हैं. उन्होंने कहा कि जब वित्तीय स्वायत्तता आ जाएगी तो गरीब शिक्षा से पूर्णतया वंचित रह जाएगा.
शिक्षक नेता डॉ. मौलेन्दु मिश्र ने कहा कि उदाहरण के लिए अभी ऑनलाइन क्लास की बात चली. हमारे मंत्रियों ने कहा कि कोरोना काल में शिक्षा से कोई वंचित नहीं रहेगा, लेकिन सच्चाई इसके उलट है. कुछ प्रतिशत लोग ही इससे जुड़ सके हैं. उन्होंने कहा कि इसके लिए अनुशासन की जरूरत पड़ेगी. आपको पाठ्यक्रम खुद से बनाना पड़ेगा और परीक्षा संचालित करनी पड़ेगी. सारे कार्य करने पड़ेंगे. उत्तर प्रदेश के महाविद्यालयों की ऐसी स्थिति नहीं है, इसीलिए अधिकांश महाविद्यालयों ने स्वायत्तता नहीं अपनायी है.
यूपी के इन कॉलेजों को मिल चुकी है स्वायत्तता
-उदय प्रताप कॉलेज, वाराणसी
-अग्रसेन कॉलेज, वाराणसी
-इविंग क्रिश्चियन कॉलेज, प्रयागराज
-नेशनल पीजी कॉलेज, लखनऊ
यूपी में उच्च शिक्षा की स्थिति
विश्वविद्यालयों की संख्या
क- राज्य विश्वविद्यालय- 16
ख- मुक्त विश्वविद्यालय -1
ग- डीम्ड विश्वविद्यालय- 1
घ- निजी विश्वविद्यालय- 27
यूपी में महाविद्यालयों की संख्या
क- सहशिक्षा -5932
ख- महिला महाविद्याल-1251
कुल महाविद्यालय- 7183