प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आपसी झगड़े में हुई मौत के एक मामले में हत्या के आरोप में सत्र न्यायालय द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया है. हत्या को मानव वध करार देते हुए 11 साल 11 माह तक जेल में बिताए समय को सजा के लिए पर्याप्त माना है. कोर्ट ने दोषी व्यक्ति की तत्काल रिहाई का आदेश दिया है.
साथ ही कोर्ट ने कहा है कि, दोषी व्यक्ति रिहा होने के तीन माह के भीतर 50 हजार रूपये बतौर मुआवजा कोर्ट में जमा करे, जिसे मृतक के माता-पिता को दिया जाए. यह फैसला न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने अलीगढ़ के श्रवण की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए दिया है.
दरअसल श्रीमती रानी ने 7 मार्च 2008 को प्राथमिकी दर्ज कराई, जिसमें आरोप लगाया कि उसका बेटा संतोष 6 मार्च को रात साढ़े दस बजे बिजली की मरम्मत कर रहा था. इस दौरान उसका आरोपी राजू से झगड़ा हो गया. जिसके बाद राजू ने संतोष को पकड़ लिया और श्रवण ने चाकू से हमला किया. शिकायतकर्ता मां उसके पति और देवर के पहुंचने पर हत्यारे भाग गए. अस्पताल में डॉक्टर ने संतोष को मृत घोषित कर दिया.
इस मामले में अपर सत्र न्यायाधीश अलीगढ़ ने हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिसे अपील मे चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि घटना के चश्मदीद गवाह हैं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण हैमरेज बताया गया है. यह साक्ष्य नहीं है कि हत्या की योजना थी. अचानक झगड़ा हुआ और जिसके चलते मौत हो गई. इसे हत्या नहीं कहा जा सकता है. आरोपी मानव वध का दोषी है. कोर्ट ने काटी सजा को पर्याप्त माना और मुआवजा देने का आदेश देते हुए रिहा करने का निर्देश दिया है.