लखनऊ: ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन ने चेतावनी दी है कि अगर कोविड -19 महामारी की आड़ में बिजली वितरण के निजीकरण का निर्णय वापस न लिया गया तो एनसीसीओईईई (नेशनल कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्प्लॉयीज एन्ड इंजीनियर्स) के आह्वान पर देश भर के 15 लाख बिजलीकर्मी आंदोलन करेंगे. फेडरेशन ने कहा है कि निजीकरण किसानों और आम घरेलू उपभोक्ताओं के साथ धोखा है.
निजीकरण के बाद बिजली की दरों में बेतहाशा वृद्धि होगी. लॉकडाउन की आड़ में हो रहे निजीकरण की तैयारी की निंदा करते हुए फेडरेशन ने इसे देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया है.
ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विद्युत वितरण के निजीकरण की घोषणा में कहा है कि नई टैरिफ नीति में सब्सिडी और क्रॉस सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी. किसी को भी लागत से कम मूल्य पर बिजली नहीं दी जाएगी.
उन्होंने बताया कि अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मिलती है. जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है. अब नई नीति और निजीकरण के बाद सब्सिडी समाप्त होने से स्वाभाविक तौर पर इन उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी.
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आंकड़े जारी करते हुए शैलेंद्र दुबे ने बताया कि बिजली की लागत का राष्ट्रीय औसत 06.73 रुपये प्रति यूनिट है. निजी कंपनी एक्ट के अनुसार कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा लेने के बाद 08 रुपये प्रति यूनिट से कम दर पर बिजली किसी को नहीं मिलेगी. इस प्रकार एक किसान को लगभग 6000 रुपये प्रति माह और घरेलू उपभोक्ताओं को 6000 से 8000 रुपये प्रति माह तक बिजली बिल देना होगा.
उन्होंने कहा कि निजी वितरण कंपनियों को कोई घाटा न हो इसीलिये सब्सिडी समाप्त कर प्रीपेड मीटर लगाए जाने की योजना लाई जा रही है. अभी सरकारी कंपनी घाटा उठाकर किसानों और उपभोक्ताओं को बिजली देती है. उन्होंने कहा कि सब्सिडी समाप्त होने से किसानों और आम लोगों को भारी नुकसान होगा, जबकि क्रॉस सब्सिडी समाप्त होने से उद्योगों और बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को लाभ होगा. उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की है कि निजीकरण का निर्णय व्यापक जनहित में वापस लिया जाए नहीं तो बिजली कर्मी आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे.