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Umesh Pal Murder Case : यूपी में गवाहों की सुरक्षा के लिए पुलिस कितनी है गंभीर, उमेश हत्याकांड के बाद अधिकारियों को आई योजना की याद

उत्तर प्रदेश में गवाहों की सुरक्षा को लेकर हमेशा सवाल (Umesh Pal Murder Case) उठते रहे हैं, वहीं राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या के बाद अब ये मामला और गरमा गया है. राजू पाल हत्याकांड के एक गवाह कौशांबी के रहने वाले ओम प्रकाश ने भी सुरक्षा की गुहार लगाई है.

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Published : Mar 15, 2023, 5:48 PM IST

लखनऊ : राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या से पहले अतीक के गुर्गे उनका अपहरण करते हैं, दो बार हमला करते हैं फिर भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई. पुलिस की हीलाहवाली का नतीजा रहा उमेश पाल की उसी अतीक के गुर्गों ने हत्या कर दी. अब एक बार फिर एक अन्य गवाह अपनी जान की गुहार लगा रहा है और पुलिस कह रही है कि विवेचना चल रही थी, कार्रवाई की जाएगी. ऐसे में सवाल उठता है कि जब गवाह को ही सरकार सुरक्षित नहीं रख सकेगी तो आखिर माफिया को कैसे उनके अंजाम तक पहुंचा सकेगी.

उत्तर प्रदेश में 90 के दशक में माफिया और कुख्यात अपराधियों द्वारा गवाहों को अपने रास्ते से हटा देना आम था, जिससे वो आसानी से बच जाते और फिर जरायम की दुनिया में अपराध करने लगते. 90 दशक से चलकर यूपी 2017 तक पहुंच गया और दावे किए गये कि माफिया का न सिर्फ जेल में डाला जायेगा, बल्कि उन्हें सजा भी दिलाई जाएगी, जिसमें मुख्य भूमिका वो गवाह निभाने वाले थे, जो अब तक डरे सहमे हुए थे. उन्हें लगा कि इस सरकार में वो सुरक्षित हैं, लेकिन ये भ्रम अधिक दिन तक टिक नहीं सका. यूपी में गवाही देना आज भी उतना ही खतरनाक है जितना 90 के दशक में था. जिसका ताजा उदाहरण उमेश पाल हत्याकांड है, जो बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड के गवाह थे और अतीक अहमद को जेल भिजवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ रहे थे. उमेश पाल पर कई बार हमले हुए, उन्हें गनर मुहैया कराये गये, लेकिन पुलिस उन अपराधियों को कभी गिरफ्तार नहीं कर सकी जो उमेश पाल को जान से मारने की कोशिश कर चुके थे.

सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की सुरक्षा को लेकर दिए थे सख्त निर्देश : सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में एक केस की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी कि अदालतों में स्वतंत्र रूप से गवाही देने का गवाहों का अधिकार अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का हिस्सा है. इसके लिए कोर्ट ने साक्षी संरक्षण योजना 2018 को मंजूरी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर को गवाह संरक्षण योजना 2018 को मंजूरी दे दी, जिसका उद्देश्य गवाह को निडरता और सच्चाई से गवाही देने में सक्षम बनाना है. बावजूद इसके गवाहों की सुरक्षा को लेकर यूपी पुलिस गंभीर नहीं नजर आती है.

गवाह लगा रहे हैं सुरक्षा की गुहार : हाल ही में कौशांबी के रहने वाले ओम प्रकाश ने दावा किया है कि वह राजू पाल हत्याकांड का गवाह है और दो साल पहले उसे गैंगस्टर अतीक अहमद के शूटर अब्दुल कवि ने गवाही देने से मना किया था और हवा में फायरिंग कर जन से मारने की धमकी दी थी. इस मामले में कौशांबी के सराय थाने में मुकदमा भी दर्ज किया गया था. ओम प्रकाश का वीडियो वायरल हुआ तो कौशांबी पुलिस ने बताया कि इस प्रकरण की विवेचना प्रचलित है और आरोपी की गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं. हालांकि इन दो वर्षों में ओम प्रकाश पाल को साक्षी सुरक्षा योजना के तहत सुरक्षा नहीं प्रदान की जा सकी.


गवाह लगाता रहा सुरक्षा की गुहार, हो गई हत्या : साल 2017 में राजधानी के रहने वाले व्यापारी श्रवण साहू की बदमाशों ने सरेराह गोली मार कर हत्या कर दी थी. श्रवण अपने बेटे की हत्या के मामले में कोर्ट में पैरवी कर रहे थे. मामला इतना भर नहीं था, श्रवण साहू ने अपनी हत्या से कुछ दिन पहले ही लखनऊ पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई थी. पुलिस अधिकारियों ने इस पर अमल नहीं किया और बदमाशों ने उनकी हत्या कर दी.


गवाहों की हत्या के बाद डीजीपी को योजना की आई याद : राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या के 20 दिन बाद अब डीजीपी को साक्षी सुरक्षा योजना की याद आई है. उन्होंने सभी जिलों के पुलिस कप्तानों को निर्देश दिए हैं कि डीजीपी ने गवाहों की सुरक्षा के लिए निर्देश जारी करते हुए कहा है कि योजना के लिए सभी जिलों में जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्टेंडिंग कमेटी का गठन किया गया है. कमेटी योजना के तहत आवेदन मिलने पर गवाहों की सुरक्षा के लिए आदेश पारित करेगी. कमेटी गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराना भी सुनिश्चित करेगी, वहीं जिलों और कमिश्नरेट स्तर पर गठित गवाह सुरक्षा सेल के कर्मियों व कार्यों की समीक्षा जनपद पुलिस प्रभारी नियमित रूप से करेंगे. सेल का प्रभारी वरिष्ठ अधिकारी को बनाया जाएगा, जो गवाह की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी होगा.


डीजीपी ने कहा है कि 'एमपी-एमएलए न्यायालयों में विचाराधीन गंभीर अपराधों के मामलों में गवाहों की सुरक्षा का मूल्यांकन व विश्लेषण करते हुए सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी. यदि किसी गवाह ने खतरे की आशंका जताई है तो तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों को बताकर सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी. गवाहों की सुरक्षा में किसी प्रकार की शिथिलता और लापरवाही सामने आने पर संबंधित पुलिस अधिकारियों का उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाएगा. समस्त एडीजी जोन और पुलिस कमिश्नर हर माह इसकी समीक्षा करके मुख्यालय को रिपोर्ट भेजेंगे.'



पूर्व डीजीपी एके जैन कहते हैं कि 'उत्तर प्रदेश में ऐसा माहौल बनाना होगा कि कोई भी प्रयागराज जैसी घटना करने की हिमाकत न कर सके, हालांकि गवाहों की हत्या की बात करें तो साल में एक दो ही ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसमें गवाहों पर हमले होते हैं. प्रयागराज में उमेश पाल को तो दो गनर भी उपलब्ध कराए गए थे. वर्तमान के डीजीपी ने भी गवाहों की सुरक्षा को लेकर सख्त निर्देश दिए हैं. जैन कहते हैं ये जरूर है कि गवाहों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस को गंभीरता से निभानी चाहिए.'

यह भी पढ़ें : सीएम योगी ने बैठक में दिए निर्देश- एक-एक निवेशक से करें संवाद, जमीन पर उतारें हर निवेश प्रस्ताव

लखनऊ : राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या से पहले अतीक के गुर्गे उनका अपहरण करते हैं, दो बार हमला करते हैं फिर भी ठोस कार्रवाई नहीं हुई. पुलिस की हीलाहवाली का नतीजा रहा उमेश पाल की उसी अतीक के गुर्गों ने हत्या कर दी. अब एक बार फिर एक अन्य गवाह अपनी जान की गुहार लगा रहा है और पुलिस कह रही है कि विवेचना चल रही थी, कार्रवाई की जाएगी. ऐसे में सवाल उठता है कि जब गवाह को ही सरकार सुरक्षित नहीं रख सकेगी तो आखिर माफिया को कैसे उनके अंजाम तक पहुंचा सकेगी.

उत्तर प्रदेश में 90 के दशक में माफिया और कुख्यात अपराधियों द्वारा गवाहों को अपने रास्ते से हटा देना आम था, जिससे वो आसानी से बच जाते और फिर जरायम की दुनिया में अपराध करने लगते. 90 दशक से चलकर यूपी 2017 तक पहुंच गया और दावे किए गये कि माफिया का न सिर्फ जेल में डाला जायेगा, बल्कि उन्हें सजा भी दिलाई जाएगी, जिसमें मुख्य भूमिका वो गवाह निभाने वाले थे, जो अब तक डरे सहमे हुए थे. उन्हें लगा कि इस सरकार में वो सुरक्षित हैं, लेकिन ये भ्रम अधिक दिन तक टिक नहीं सका. यूपी में गवाही देना आज भी उतना ही खतरनाक है जितना 90 के दशक में था. जिसका ताजा उदाहरण उमेश पाल हत्याकांड है, जो बसपा विधायक राजू पाल हत्याकांड के गवाह थे और अतीक अहमद को जेल भिजवाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ रहे थे. उमेश पाल पर कई बार हमले हुए, उन्हें गनर मुहैया कराये गये, लेकिन पुलिस उन अपराधियों को कभी गिरफ्तार नहीं कर सकी जो उमेश पाल को जान से मारने की कोशिश कर चुके थे.

सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की सुरक्षा को लेकर दिए थे सख्त निर्देश : सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में एक केस की सुनवाई करते हुए टिप्पणी की थी कि अदालतों में स्वतंत्र रूप से गवाही देने का गवाहों का अधिकार अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) का हिस्सा है. इसके लिए कोर्ट ने साक्षी संरक्षण योजना 2018 को मंजूरी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर को गवाह संरक्षण योजना 2018 को मंजूरी दे दी, जिसका उद्देश्य गवाह को निडरता और सच्चाई से गवाही देने में सक्षम बनाना है. बावजूद इसके गवाहों की सुरक्षा को लेकर यूपी पुलिस गंभीर नहीं नजर आती है.

गवाह लगा रहे हैं सुरक्षा की गुहार : हाल ही में कौशांबी के रहने वाले ओम प्रकाश ने दावा किया है कि वह राजू पाल हत्याकांड का गवाह है और दो साल पहले उसे गैंगस्टर अतीक अहमद के शूटर अब्दुल कवि ने गवाही देने से मना किया था और हवा में फायरिंग कर जन से मारने की धमकी दी थी. इस मामले में कौशांबी के सराय थाने में मुकदमा भी दर्ज किया गया था. ओम प्रकाश का वीडियो वायरल हुआ तो कौशांबी पुलिस ने बताया कि इस प्रकरण की विवेचना प्रचलित है और आरोपी की गिरफ्तारी के प्रयास किए जा रहे हैं. हालांकि इन दो वर्षों में ओम प्रकाश पाल को साक्षी सुरक्षा योजना के तहत सुरक्षा नहीं प्रदान की जा सकी.


गवाह लगाता रहा सुरक्षा की गुहार, हो गई हत्या : साल 2017 में राजधानी के रहने वाले व्यापारी श्रवण साहू की बदमाशों ने सरेराह गोली मार कर हत्या कर दी थी. श्रवण अपने बेटे की हत्या के मामले में कोर्ट में पैरवी कर रहे थे. मामला इतना भर नहीं था, श्रवण साहू ने अपनी हत्या से कुछ दिन पहले ही लखनऊ पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई थी. पुलिस अधिकारियों ने इस पर अमल नहीं किया और बदमाशों ने उनकी हत्या कर दी.


गवाहों की हत्या के बाद डीजीपी को योजना की आई याद : राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की हत्या के 20 दिन बाद अब डीजीपी को साक्षी सुरक्षा योजना की याद आई है. उन्होंने सभी जिलों के पुलिस कप्तानों को निर्देश दिए हैं कि डीजीपी ने गवाहों की सुरक्षा के लिए निर्देश जारी करते हुए कहा है कि योजना के लिए सभी जिलों में जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्टेंडिंग कमेटी का गठन किया गया है. कमेटी योजना के तहत आवेदन मिलने पर गवाहों की सुरक्षा के लिए आदेश पारित करेगी. कमेटी गवाहों को सुरक्षा मुहैया कराना भी सुनिश्चित करेगी, वहीं जिलों और कमिश्नरेट स्तर पर गठित गवाह सुरक्षा सेल के कर्मियों व कार्यों की समीक्षा जनपद पुलिस प्रभारी नियमित रूप से करेंगे. सेल का प्रभारी वरिष्ठ अधिकारी को बनाया जाएगा, जो गवाह की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी होगा.


डीजीपी ने कहा है कि 'एमपी-एमएलए न्यायालयों में विचाराधीन गंभीर अपराधों के मामलों में गवाहों की सुरक्षा का मूल्यांकन व विश्लेषण करते हुए सुरक्षा उपलब्ध कराई जाएगी. यदि किसी गवाह ने खतरे की आशंका जताई है तो तत्काल वरिष्ठ अधिकारियों को बताकर सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी. गवाहों की सुरक्षा में किसी प्रकार की शिथिलता और लापरवाही सामने आने पर संबंधित पुलिस अधिकारियों का उत्तरदायित्व निर्धारित किया जाएगा. समस्त एडीजी जोन और पुलिस कमिश्नर हर माह इसकी समीक्षा करके मुख्यालय को रिपोर्ट भेजेंगे.'



पूर्व डीजीपी एके जैन कहते हैं कि 'उत्तर प्रदेश में ऐसा माहौल बनाना होगा कि कोई भी प्रयागराज जैसी घटना करने की हिमाकत न कर सके, हालांकि गवाहों की हत्या की बात करें तो साल में एक दो ही ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसमें गवाहों पर हमले होते हैं. प्रयागराज में उमेश पाल को तो दो गनर भी उपलब्ध कराए गए थे. वर्तमान के डीजीपी ने भी गवाहों की सुरक्षा को लेकर सख्त निर्देश दिए हैं. जैन कहते हैं ये जरूर है कि गवाहों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस को गंभीरता से निभानी चाहिए.'

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