लखनऊः रिवैंप योजना के तहत आरडीएसएस स्कीम मे प्रदेश की 25 हजार करोड़ के निकाले गए स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर में उपभोक्ता परिषद ने बड़ा खुलासा किया है. बिजली कंपनियों में आरडीएससी स्कीम के तहत ऊंची दर पर निकाले गए टेंडर को निरस्त कर दिया था. इसके बाद दोबारा टेंडर की दरें सामने आईं, जिसमें मध्यांचल और पश्चिमांचल के अंतर्गत लगभग 3000 करोड़ से ज्यादा के टेंडर की जो दरें 8 से लेकर 27 प्रतिशत तक अधिक पाई गई थी. वहीं, अब दोबारा टेंडर खुलने के बाद उनकी दरें 5-10 प्रतिशत तक ऐस्टीमेटेड कॉस्ट से कमी आई है. जो उपभोक्ता परिषद की बात को सच साबित करता है.
उपभोक्ता परिषद लगातार केंद्र सरकार व उत्तर प्रदेश से मांग कर रहा है कि प्रदेश में 2.5 करोड़ स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर को तत्काल निरस्त किया जाए. क्योंकि इसकी दरें ऐस्टीमेटेड कॉस्ट से 48 से 65 प्रतिशत तक अधिक आई है.
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि प्रदेश में निकाले गए 25 हजार करोड़ के टेंडर की छानबीन की गई. इसमें सामने आया कि देश के बडे़ अडानी जीएमआर व एक अन्य निजी कंपनी द्वारा इन टैलीस्मार्ट को टेंडर दिए जाने के लिए केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय की तरफ से अनेकों बैठकों कर दबाव बनाया जा रहा है. उनके द्वारा प्रदेश में जो स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जाएंगे, वह कोई अडानी जीएमआर व इन टेलीस्मार्ट कंपनी के मीटर नहीं होंगे. बल्कि वह वही मीटर होंगे जो अभी तक प्रदेश में मीटर निर्माता कंपनियां जीनस स्नाइडर एचपीएल जेन इश्कारा लगा रही थीं.
यानि कि देश के बडे़ निजी घराने केवल बिचौलिया के रूप में टेंडर लेकर और फिर उसे सबलेट करके उन्हीं मीटर निर्माता कंपनियों से मीटर लेकर लगाएंगे. जिनसे अभी मीटर लेकर बिजली कंपनियां लगवा रही हैं. इससे समझा जा सकता हैं कि देश के बड़े निजी घराने बिचौलिया के रूप में टेंडर लेने के लिए क्यों परेशान हैं.
उपभोक्ता परिषद के अनुसार, देश के निजी घरानों ने स्मार्ट प्रीपेड मीटर के टेंडर के एमडीएम मीटर डाटा मैनेजमेंट को भी जो अपने टेंडर में दर्शाया है. उसमें फ्लूएंटग्रिड कंपनी का नाम लिया है. जो पहले से ही बिजली कंपनियों में कार्य कर रही हैं. परिषद अध्यक्ष ने कहा यह सभी मीटर निर्माता कंपनियां मीटर के टेंडर में केवल इसलिए भाग नहीं ले पाईं, क्योंकि मीटर टेंडर पूरे प्रदेश में केवल चार क्लस्टर में निकाला गया था. प्रत्येक क्लस्टर की लागत लगभग 6000 करोड़ से ज्यादा थी. यानि मीटर निर्माता कंपनियों की हैसियत से कहीं ज्यादा. वह चाह कर भी एक भी कलस्टर में टेंडर नहीं भर सकती और इसी नियम का फायदा उठाकर देश के निजी घरानों ने टेंडर को अपने कब्जे में लेने के लिए पूरी रणनीति बनाई.
ऊंची दरों पर टेंडर भरके अब उस टेंडर को अवार्ड कराना चाहते हैं. इसीलिए उपभोक्ता परिषद लगातार इस पूरी प्रक्रिया की सीबीआई से जांच कराने की मांग उठा रहा है. ऐसे में यह खुलासा हुआ है कि यह सभी देश के निजी घराने उत्तर प्रदेश के उन्हीं मीटर निर्माता कंपनियों से मीटर लेकर लगाएंगे जिनसे सीधे बिजली कंपनियां मीटर लेकर लगवा रही थीं. ऐसे में अभिलंब टेंडर को निरस्त किया जाए.
उपभोक्ता परिषद ने यह भी सवाल उठाया कि देश के निजी घरानों ने जिन मीटर निर्माता कंपनियों से मीटर लेने का कागज टेंडर में लगाया है. उसमें एक मीटर कंपनी वह भी है जिसने पूर्व में उत्तर प्रदेश में पुरानी तकनीकी के स्मार्ट मीटर लगाया था. जब स्मार्ट मीटर जम्प हुआ तो जन्माष्टमी के दिन मीटर से बत्ती गुल हुई जिससे काफी दिन तक मीटर लगाना बंद रहा. इसके बाद एक मीटर निर्माता कंपनी उत्तर प्रदेश में स्मार्ट मीटर लगाने से पीछे हट गई थी.
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