लखनऊ: राजधानी में लगभग एक लाख प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार मुहैया कराया गया. लॉकडाउन के दौरान लखनऊ मंडल में लगभग दो लाख प्रवासी मजदूर दूसरे शहरों से वापस आए थे. सरकार ने इन सभी मजदूरों की स्किल मैपिंग कराई. इसके बाद जिन मजदूरों को कुछ नहीं आता था, उन सभी को मनरेगा के तहत कार्य दिया गया. मंडलायुक्त मुकेश मेश्राम ने बताया कि मनरेगा में हम लोगों ने लगभग एक लाख प्रवासी मजदूरों को काम दिया. कुछ मजदूर सूरत से वापस आए थे, जिनको कपड़े का काम, कारखाने का काम पता था, उनको उन्नाव में कपड़े की फैक्ट्री और गोदाम में काम दिया गया.
मंडलायुक्त ने बताया कि लखनऊ में बहुत कम संख्या में प्रवासी मजदूर अन्य जिलों से वापस आए, क्योंकि यहां पर जितने भी मजदूर थे वह आसपास के क्षेत्रों में ही मजदूरी करते थे. हालांकि लखनऊ जिले के जितने भी मजदूरों के पास काम नहीं था, उन सभी मजदूरों को भी कई क्षेत्रों में काम दिया गया है. सभी अधिकारियों को यह सूचित भी किया गया है कि अपने-अपने जिलों में यह देखें कि कोई भी मजदूर बेरोजगार न रह जाए. उन सभी को रोजगार मुहैया कराना हम सभी की जिम्मेदारी है.
उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा मजदूर लखीमपुर खीरी सीतापुर उन्नाव रायबरेली में वापस आए. यहां पर कई फैक्ट्रियों में मजदूरों को रोजगार मुहैया कराया गया. कई मजदूरों को आयरन फैक्ट्री में काम दिया गया. उन्नाव के मजदूरों को वहां की कपड़े फैक्ट्री फैक्ट्री, कपड़े के गोदाम, कपड़े के शोरूम में काम दिया गया. कई मजदूरों को गन्ना मिल और कई अन्य मिलों में उन को रोजगार मुहैया कराया गया. उन्होंने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य यही है कि जो भी प्रवासी मजदूर अन्य जिलों, प्रदेशों से वापस आए हैं. उन सभी को हम अपने गृह जनपद में रोजगार दें, जिससे वह अपना भरण-पोषण अच्छी तरह से कर सकें.
लखनऊ मंडल में करीब दो लाख प्रवासी मजदूरों को मिला रोजगार
उत्तर प्रदेश के लखनऊ मंडल में दूसरे शहरों से आए प्रवासी मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराया गया. लॉकडाउन के दौरान लगभग दो लाख प्रवासी मजदूर वापस आए थे, जिन्हें मनरेगा के अलावा अन्य जगहों पर भी रोजगार मुहैया कराया गया.
लखनऊ: राजधानी में लगभग एक लाख प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा के तहत रोजगार मुहैया कराया गया. लॉकडाउन के दौरान लखनऊ मंडल में लगभग दो लाख प्रवासी मजदूर दूसरे शहरों से वापस आए थे. सरकार ने इन सभी मजदूरों की स्किल मैपिंग कराई. इसके बाद जिन मजदूरों को कुछ नहीं आता था, उन सभी को मनरेगा के तहत कार्य दिया गया. मंडलायुक्त मुकेश मेश्राम ने बताया कि मनरेगा में हम लोगों ने लगभग एक लाख प्रवासी मजदूरों को काम दिया. कुछ मजदूर सूरत से वापस आए थे, जिनको कपड़े का काम, कारखाने का काम पता था, उनको उन्नाव में कपड़े की फैक्ट्री और गोदाम में काम दिया गया.
मंडलायुक्त ने बताया कि लखनऊ में बहुत कम संख्या में प्रवासी मजदूर अन्य जिलों से वापस आए, क्योंकि यहां पर जितने भी मजदूर थे वह आसपास के क्षेत्रों में ही मजदूरी करते थे. हालांकि लखनऊ जिले के जितने भी मजदूरों के पास काम नहीं था, उन सभी मजदूरों को भी कई क्षेत्रों में काम दिया गया है. सभी अधिकारियों को यह सूचित भी किया गया है कि अपने-अपने जिलों में यह देखें कि कोई भी मजदूर बेरोजगार न रह जाए. उन सभी को रोजगार मुहैया कराना हम सभी की जिम्मेदारी है.
उन्होंने बताया कि सबसे ज्यादा मजदूर लखीमपुर खीरी सीतापुर उन्नाव रायबरेली में वापस आए. यहां पर कई फैक्ट्रियों में मजदूरों को रोजगार मुहैया कराया गया. कई मजदूरों को आयरन फैक्ट्री में काम दिया गया. उन्नाव के मजदूरों को वहां की कपड़े फैक्ट्री फैक्ट्री, कपड़े के गोदाम, कपड़े के शोरूम में काम दिया गया. कई मजदूरों को गन्ना मिल और कई अन्य मिलों में उन को रोजगार मुहैया कराया गया. उन्होंने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य यही है कि जो भी प्रवासी मजदूर अन्य जिलों, प्रदेशों से वापस आए हैं. उन सभी को हम अपने गृह जनपद में रोजगार दें, जिससे वह अपना भरण-पोषण अच्छी तरह से कर सकें.