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बिना कैंसर केजीएमयू में महिला की कीमो, उपभोक्ता अदालत ने लगाया 4.5 लाख का जुर्माना

लखीमपुर खीरी की जिला उपभोक्ता अदालत ने किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ के रेडियोथेरेपी विभाग में कार्यरत एक महिला प्रोफेसर पर बिना कैंसर के इलाज और कीमोथेरेपी करने पर साढ़े चार लाख रुपए जुर्माना लगाया है.

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Published : Aug 5, 2023, 10:45 PM IST

लखीमपुर खीरी: जिला उपभोक्ता अदालत ने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की महिला प्रोफेसर पर साढ़े 4 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने आदेश दिए है कि यह पैसे पीड़िता महिला को दिए जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ और 50,000 रुपये का अतिरिक्त मुआवजा भी देने का आदेश किया है. महिला प्रोफेसर पर बिना कैंसर के इलाज और कीमोथेरेपी करने का आरोप था. आरोपी महिला प्रोफेसर किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ के रेडियोथेरेपी विभाग में कार्यरत थी. शुक्रवार को को ये आदेश लखीमपुर खीरी जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष शिव मीना शुक्ला और दो सदस्यों डॉ. आलोक कुमार शर्मा और जूही कुद्दुसी की पीठ ने पारित किया.

ये है मामला: मामला लखीमपुर खीरी की रानी गुप्ता नामक महिला से जुड़ा है. रानी ने अपने वकील के माध्यम से अदालत को बताया कि नवंबर 2007 में जिले के एक निजी नर्सिंग होम में अपने बाएं स्तन में गांठ महसूस होने पर दिखाया था. नर्सिंग होम में लखनऊ के एक डॉक्टर विजिटिंग के तौर पर आते थे. उन्हें दिखाने के बाद इलाज शुरु हुआ. नर्सिंग होम से छुट्टी मिलने के बाद लखनऊ के इंद्रा नगर निवासी सर्जन (जिसने ऑपरेशन किया था) ने रानी को केजीएमयू में वरिष्ठ डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह दी. क्योंकि विभूति खंड स्थित निजी डायग्नोस्टिक सेंटर द्वारा तैयार की गई उनकी स्लाइड और ब्लॉक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया था कि उन्हें "सीमा रेखा से घातक फ़ाइलोड्स ट्यूमर है”.

इससे पहले 2004 में भी पीड़िता रानी अपने बाएं स्तन से एक गांठ को हटाने के लिए सर्जरी के लिए गई थी. लेकिन तब सर्जरी के बाद केवल फाइलोड्स ट्यूमर पाया गया था और घातक होने का कोई सबूत नहीं मिला था. हालांकि, दिसंबर 2007 में रानी गुप्ता ने केजीएमयू में ओपीडी में अपनी मेडिकल रिपोर्ट दिखाई. जहाँ वरिष्ठ डॉक्टर (जो उस समय रेडियोथेरेपी विभाग में सहायक प्रोफेसर थीं) ने आगे रक्त परीक्षण, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड कराने के बाद रानी को कीमोथेरेपी कराने की सलाह दी.

जिस पर रानी की एक जनवरी 2008 से तीन जनवरी 2008 के बीच कीमोथेरेपी हुई. उन्हें फरवरी के महीने में फॉलो-अप के लिए कहा गया. इस बीच कीमोथेरेपी के कारण मानसिक रूप से थक चुकी पीड़िता ने मुंबई स्थित कैंसर विशेषज्ञ निजी अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टरों से अपनी स्लाइड और ब्लॉक (बायोप्सी) पर एक बार फिर राय ली. जहां डॉक्टरों ने पुष्टि की (रानी गुप्ता) स्वस्थ है और उसमें कैंसर का कोई लक्षण नहीं है. इसके बाद पीड़ित ने उपभोक्ता आयोग की शरण ली.


उपभोक्ता आयोग पीठ के निर्देश के आधार पर केजीएमयू ने गांधी मेमोरियल और संबंधित अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, एचओडी रेडियोथेरेपी केजीएमयू, एचओडी सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग केजीएमयू और एचओडी एंडोक्राइन सर्जरी केजीएमयू को शामिल करते हुए एक समिति का गठन किया. समिति ने पाया कि रेडियोथेरेपी विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर ने केवल रक्त परीक्षण, अल्ट्रासाउंड और छाती का एक्स-रे किया था. इसके अलावा अन्य कोई जांच नहीं की गई थी. इसपर समिति ने कहा यह सुनिश्चित करने के लिए कि मरीज को कैंसर है या नहीं, सबसे अच्छा तरीका किसी विशेषज्ञ रोगविज्ञानी द्वारा स्लाइड और ब्लॉक की समीक्षा करवाना होता है. समिति के निष्कर्षों के आधार पर उपभोक्ता आयोग ने वरिष्ठ डॉक्टर को एक माह में मुआवजा देने का आदेश दिया है.

केजीएमयू के प्रवक्ता सुधीर सिंह ने कहा, “केजीएमयू के सभी संकाय कानून का पालन करने वाले कर्मचारी हैं. हमें उपभोक्ता आयोग के आदेश की प्रति नहीं मिली है. आदेश की प्रति देखने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.

लखीमपुर खीरी: जिला उपभोक्ता अदालत ने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज की महिला प्रोफेसर पर साढ़े 4 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. कोर्ट ने आदेश दिए है कि यह पैसे पीड़िता महिला को दिए जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ और 50,000 रुपये का अतिरिक्त मुआवजा भी देने का आदेश किया है. महिला प्रोफेसर पर बिना कैंसर के इलाज और कीमोथेरेपी करने का आरोप था. आरोपी महिला प्रोफेसर किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ के रेडियोथेरेपी विभाग में कार्यरत थी. शुक्रवार को को ये आदेश लखीमपुर खीरी जिला उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष शिव मीना शुक्ला और दो सदस्यों डॉ. आलोक कुमार शर्मा और जूही कुद्दुसी की पीठ ने पारित किया.

ये है मामला: मामला लखीमपुर खीरी की रानी गुप्ता नामक महिला से जुड़ा है. रानी ने अपने वकील के माध्यम से अदालत को बताया कि नवंबर 2007 में जिले के एक निजी नर्सिंग होम में अपने बाएं स्तन में गांठ महसूस होने पर दिखाया था. नर्सिंग होम में लखनऊ के एक डॉक्टर विजिटिंग के तौर पर आते थे. उन्हें दिखाने के बाद इलाज शुरु हुआ. नर्सिंग होम से छुट्टी मिलने के बाद लखनऊ के इंद्रा नगर निवासी सर्जन (जिसने ऑपरेशन किया था) ने रानी को केजीएमयू में वरिष्ठ डॉक्टर से परामर्श लेने की सलाह दी. क्योंकि विभूति खंड स्थित निजी डायग्नोस्टिक सेंटर द्वारा तैयार की गई उनकी स्लाइड और ब्लॉक समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया था कि उन्हें "सीमा रेखा से घातक फ़ाइलोड्स ट्यूमर है”.

इससे पहले 2004 में भी पीड़िता रानी अपने बाएं स्तन से एक गांठ को हटाने के लिए सर्जरी के लिए गई थी. लेकिन तब सर्जरी के बाद केवल फाइलोड्स ट्यूमर पाया गया था और घातक होने का कोई सबूत नहीं मिला था. हालांकि, दिसंबर 2007 में रानी गुप्ता ने केजीएमयू में ओपीडी में अपनी मेडिकल रिपोर्ट दिखाई. जहाँ वरिष्ठ डॉक्टर (जो उस समय रेडियोथेरेपी विभाग में सहायक प्रोफेसर थीं) ने आगे रक्त परीक्षण, एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड कराने के बाद रानी को कीमोथेरेपी कराने की सलाह दी.

जिस पर रानी की एक जनवरी 2008 से तीन जनवरी 2008 के बीच कीमोथेरेपी हुई. उन्हें फरवरी के महीने में फॉलो-अप के लिए कहा गया. इस बीच कीमोथेरेपी के कारण मानसिक रूप से थक चुकी पीड़िता ने मुंबई स्थित कैंसर विशेषज्ञ निजी अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टरों से अपनी स्लाइड और ब्लॉक (बायोप्सी) पर एक बार फिर राय ली. जहां डॉक्टरों ने पुष्टि की (रानी गुप्ता) स्वस्थ है और उसमें कैंसर का कोई लक्षण नहीं है. इसके बाद पीड़ित ने उपभोक्ता आयोग की शरण ली.


उपभोक्ता आयोग पीठ के निर्देश के आधार पर केजीएमयू ने गांधी मेमोरियल और संबंधित अस्पतालों के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, एचओडी रेडियोथेरेपी केजीएमयू, एचओडी सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग केजीएमयू और एचओडी एंडोक्राइन सर्जरी केजीएमयू को शामिल करते हुए एक समिति का गठन किया. समिति ने पाया कि रेडियोथेरेपी विभाग के वरिष्ठ डॉक्टर ने केवल रक्त परीक्षण, अल्ट्रासाउंड और छाती का एक्स-रे किया था. इसके अलावा अन्य कोई जांच नहीं की गई थी. इसपर समिति ने कहा यह सुनिश्चित करने के लिए कि मरीज को कैंसर है या नहीं, सबसे अच्छा तरीका किसी विशेषज्ञ रोगविज्ञानी द्वारा स्लाइड और ब्लॉक की समीक्षा करवाना होता है. समिति के निष्कर्षों के आधार पर उपभोक्ता आयोग ने वरिष्ठ डॉक्टर को एक माह में मुआवजा देने का आदेश दिया है.

केजीएमयू के प्रवक्ता सुधीर सिंह ने कहा, “केजीएमयू के सभी संकाय कानून का पालन करने वाले कर्मचारी हैं. हमें उपभोक्ता आयोग के आदेश की प्रति नहीं मिली है. आदेश की प्रति देखने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी.

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