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...यहां किसानों की जिंदगी में मिठास घोल रहा कड़वा करेला - कौशांबी समाचार

यूपी के कौशांबी जिले में किसान इन दिनों करेले की खेती कर रहे हैं. करेले की खेती में पानी कम लगता है, जिस कारण किसान करेले को अधिक तवज्जो दे रहे हैं. यहां लगभग 500 बीघे में करेले की खेती की जा रही है.

करेले की खेती से किसान हो रहे हैं मालामाल.
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Published : Sep 8, 2019, 2:39 PM IST

कौशांबी: जिले में करेले की फसल किसानों की जिंदगी में बदलाव लेकर आ रही है. अभी तक परंपरागत खेती करने वाले किसान अब करेले की खेती कर मालामाल हो रहे हैं. कौशांबी में लगभग 500 बीघे की खेती में करेले की फसल की जा रही है. कौशांबी के किसानों ने 500 से अधिक क्षेत्रफल में करेले की खेती कर एक मिसाल कायम की है.

करेले की खेती से किसान हो रहे हैं मालामाल.

करेले की खेती से किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके इसके लिए कौशांबी का उद्यान विभाग भी सरकारी मदद कर रहा है. किसानों की माने तो कौशांबी के करेले की डिमांड दिल्ली, मध्य प्रदेश के साथ अन्य प्रदेशों में भी है, जिससे उन्हें इसे बेचने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है.

डायबिटीज और पेट संबंधी बीमारियों में भी गुणकारी है करेला
केला, अमरूद, तरबूज और आलू के बाद कौशाम्बी के किसान करेला की भी खेती करने लगे हैं. तीन से चार महीने की खेती में किसान एक बीघे से 70 से 80 हजार रुपये की आमदनी कर लेते हैं. डायबिटीज और पेट संबंधी बीमारियों में राहत पाने के लिए यहां की करेले की मांग बाहर की मंडियों में बढ़ गई है. गंगा की तराई में किसान अब करेले की खेती भी करने लगे हैं. धान की खेती में अधिक पानी लगने के कारण किसानों ने करेले को अधिक तवज्जो दी है.

कब करते हैं करेले की खेती
शासन ने इस दफा उद्यान विभाग को बहुत कम खेती करने का लक्ष्य दिया है. जिस पर किसानों की दिलचस्पी को देखते हुए यह लक्ष्य ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है. ज्यादातर किसान निजी दुकानों से बीज खरीद खेती करते हैं. खेती जून के अंतिम हफ्ते से जुलाई तक होती है. सितंबर और अक्टूबर में करेले की तुड़ाई शुरू हो जाती है. कम समय में किसान एक बीघे से 70 से 80 हजार रुपये कमा लेते हैं. एक बीघे में कम से कम 12 से 15 हजार रुपये का खर्च आता है. खासियत यह है कि करेला कम बारिश के पानी में ही तैयार हो जाता है. यदि शुरुआती दौर पर बारिश न भी हुई तो फसल बर्बाद होने का खतरा नहीं होता है. किसान बताते हैं कि करेले को लेने के लिए खुद व्यापारी उनके घर आते हैं, जिससे उन्हें इसे बेचने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है.

कौशांबी जिले में तराई इलाकों में करेले की खेती किसान खूब कर रहे हैं. इस बार शासन से उन्हें मात्र 2.5 हेक्टेयर का लक्ष्य मिला हुआ है, जो भी अनुसूचित जाति के किसान करेले की खेती कर रहे हैं, उन्हें ही अनुदान दिया जा रहा है. इसके लिए प्रति हेक्टेयर ₹37,500 अनुदान का प्रावधान है. कौशांबी जिले की करेले की डिमांड दिल्ली, कानपुर और इलाहाबाद में खूब है.
-सुरेंद्र राम भास्कर, जिला उद्यान अधिकारी

कौशांबी: जिले में करेले की फसल किसानों की जिंदगी में बदलाव लेकर आ रही है. अभी तक परंपरागत खेती करने वाले किसान अब करेले की खेती कर मालामाल हो रहे हैं. कौशांबी में लगभग 500 बीघे की खेती में करेले की फसल की जा रही है. कौशांबी के किसानों ने 500 से अधिक क्षेत्रफल में करेले की खेती कर एक मिसाल कायम की है.

करेले की खेती से किसान हो रहे हैं मालामाल.

करेले की खेती से किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके इसके लिए कौशांबी का उद्यान विभाग भी सरकारी मदद कर रहा है. किसानों की माने तो कौशांबी के करेले की डिमांड दिल्ली, मध्य प्रदेश के साथ अन्य प्रदेशों में भी है, जिससे उन्हें इसे बेचने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है.

डायबिटीज और पेट संबंधी बीमारियों में भी गुणकारी है करेला
केला, अमरूद, तरबूज और आलू के बाद कौशाम्बी के किसान करेला की भी खेती करने लगे हैं. तीन से चार महीने की खेती में किसान एक बीघे से 70 से 80 हजार रुपये की आमदनी कर लेते हैं. डायबिटीज और पेट संबंधी बीमारियों में राहत पाने के लिए यहां की करेले की मांग बाहर की मंडियों में बढ़ गई है. गंगा की तराई में किसान अब करेले की खेती भी करने लगे हैं. धान की खेती में अधिक पानी लगने के कारण किसानों ने करेले को अधिक तवज्जो दी है.

कब करते हैं करेले की खेती
शासन ने इस दफा उद्यान विभाग को बहुत कम खेती करने का लक्ष्य दिया है. जिस पर किसानों की दिलचस्पी को देखते हुए यह लक्ष्य ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है. ज्यादातर किसान निजी दुकानों से बीज खरीद खेती करते हैं. खेती जून के अंतिम हफ्ते से जुलाई तक होती है. सितंबर और अक्टूबर में करेले की तुड़ाई शुरू हो जाती है. कम समय में किसान एक बीघे से 70 से 80 हजार रुपये कमा लेते हैं. एक बीघे में कम से कम 12 से 15 हजार रुपये का खर्च आता है. खासियत यह है कि करेला कम बारिश के पानी में ही तैयार हो जाता है. यदि शुरुआती दौर पर बारिश न भी हुई तो फसल बर्बाद होने का खतरा नहीं होता है. किसान बताते हैं कि करेले को लेने के लिए खुद व्यापारी उनके घर आते हैं, जिससे उन्हें इसे बेचने में भी कोई दिक्कत नहीं होती है.

कौशांबी जिले में तराई इलाकों में करेले की खेती किसान खूब कर रहे हैं. इस बार शासन से उन्हें मात्र 2.5 हेक्टेयर का लक्ष्य मिला हुआ है, जो भी अनुसूचित जाति के किसान करेले की खेती कर रहे हैं, उन्हें ही अनुदान दिया जा रहा है. इसके लिए प्रति हेक्टेयर ₹37,500 अनुदान का प्रावधान है. कौशांबी जिले की करेले की डिमांड दिल्ली, कानपुर और इलाहाबाद में खूब है.
-सुरेंद्र राम भास्कर, जिला उद्यान अधिकारी

Intro:कौशांबी में करेले की फसल किसानों की जिंदगी में बदलाव लेकर आ रही है। अभी तक परंपरागत खेती करने वाले किसान अब नगदी फसल करेले की खेती कर मालामाल हो रहे हैं। कौशांबी जिले में लगभग 500 बीघे की खेती में करेली की फसल की जा रही है। कौशांबी के किसान ने 500 से अधिक क्षेत्रफल में करेले की खेती कर एक मिसाल कायम किया है। करेली की खेती से किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके इसके लिए कौशांबी का उद्यान विभाग भी सरकारी मदद कर रहा है। किसानों की माने तो कौशांबी के करेले की डिमांड दिल्ली मध्य प्रदेश व अन्य प्रदेशों में है जिससे उन्हें इसे बेचने के लिए कोई भी दिक्कत नहीं होती है।


Body:केला अमरूद तरबूज और आलू के बाद कौशाम्बी के किसान करेला की भी खेती करने लगे हैं।तीन से चार महीने की खेती में किसान प्रत्येक एक बीधे से 70 से 80 हजार रुपये की आमदनी कर लेते हैं। डायबिटीज और पेट संबंधी बीमारियों में राहत पाने के लिए यहां की करेले की मांग बाहर के मंडियों में बढ़ाई गई है। गंगा के तराई में किसान अब करेले की खेती भी करने लगे हैं। धान की खेती में अधिक पानी लगने के कारण किसानों ने करेले को अधिक तवज्जो दिया है। शासन ने इस दफा उद्यान विभाग को बहुत कम खेती करने का लक्ष्य दिया है। जिस पर किसानों की दिलचस्पी को देखते हुए यह लक्ष्य ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही है। ऐसे में ज्यादातर किसान निजी दुकानों से बीज खरीद खेती करते हैं। खेती जून के अंतिम हफ्ते से जुलाई तक होती है। सितंबर और अक्टूबर में करेले की तुड़ाई शुरू हो जाती है। कम समय में किसान एक बीधे से 70 से 80हजार रुपए कमा लेते हैं। एक बीघे में कम से कम 12 से 15 हजार रुपये का खर्च आता है।खासियत यह है कि करेला कम बारिश के पानी में ही तैयार हो जाता है। यदि शुरुआती दौर पर बारिश ना हुई तो फसल बर्बाद होने का खतरा नहीं होता है। किसान बताते है कि करेले को लेने के लिए खुद व्यपारी उनके घर आते है।

वन टू वन -- सत्येन्द्र खरे कौशाम्बी


Conclusion:कौशांबी जिले के जिला उद्यान अधिकारी सुरेंद्र राम भास्कर के मुताबिक कौशांबी जिले में तराई इलाकों में करेले की खेती किसान खूब कर रहे हैं। इस बार शासन से उन्हें मात्र 2.5 हेक्टेयर का लक्ष्य मिला हुआ है। जो भी अनुसूचित जाति के किसान करेले की खेती कर रहे हैं उन्हें ही अनुदान दिया जा रहा है। इसके लिए प्रति हेक्टेयर ₹37500 अनुदान का प्रावधान है। कौशांबी जिले की करेले की डिमांड दिल्ली कानपुर इलाहाबाद व अन्य जगहों में इसकी सप्लाई होती है। इसके लिए किसानों को कहीं बेचने के लिए नहीं जाना पड़ता।

बाइट-- सुरेंद्र राम भास्कर जिला उद्यान अधिकारी कौशांबी
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