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कासगंज: दस्यु गिरोहों की आराध्य रहीं हैं यह देवी, मनौती पूरी होने पर यहां डकैत चढ़ाते थे घंटा - etv bharat up news

आखिर क्यों दस्यु (डकैत) गिरोहों की आराध्य रहीं हैं ये देवी? इस रहस्य को जानने के लिए आज ईटीवी भारत की टीम देवी स्योर मंदिर पहुंची और देवी मंदिर के सेवायत राजीव पालीवाल से खास बातचीत की.

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देवी स्योर मंदिर
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Published : May 18, 2022, 2:55 PM IST

कासगंज : यूपी के कासगंज और एटा दस्यु गिरोहों का गढ़ रहा है. छविराम, पोथी, कलुआ सहित अनेक दस्यु यहां की ज़मीन पर पले बढ़े हैं. इन सभी दस्यु गिरोहों की एक आराध्य देवी रहीं हैं, "स्वयं भू देवी स्योर", जो वर्तमान में कासगंज ज़िले की पटियाली तहसील के दरियावगंज क्षेत्र में हैं. आख़िर क्यों दस्यु (डकैत) गिरोहों की आराध्य रहीं हैं यह देवी? इस रहस्य को जानने आज ईटीवी भारत की टीम देवी स्योर मंदिर पहुंची. देवी मंदिर के सेवायत राजीव पालीवाल से बातचीत की.

सेवायत राजीव पालीवाल से खास बातचीत

स्योर मंदिर पूर्व में एटा जनपद में था लेकिन अलग जनपद बनने के चलते अब यह कासगंज जनपद में आता है. लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराने देवी स्योर मंदिर के बारे में मान्यता है कि इनकी चौखट पर आकर जो भी श्रद्धा से मांगता है, देवी स्योर उसकी मनोकामना पूरी करतीं हैं. लोग अपनी मन्नत मांगते समय मंदिर की दीवारों पर सतिया भी बनाते हैं. श्रद्धालु मानते हैं कि ऐसा करने पर देवी मां उनकी मनोकामना पूरी करतीं हैं.

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देवी स्योर पर डकैत चढ़ाते थे घंटा : देवी स्योर मंदिर के सेवायत राजीव पालीवाल ने बताया कि इस इलाके में 60-70 और 80 के दशक में दस्यु (डकैतों) गिरोहों का ज़बरदस्त प्रभाव था. उस समय के मशहूर दस्यु गिरोहों में छविराम और पोथी प्रमुख थे. इसके अलावा कई अन्य छोटे गिरोह भी थे. यह सभी गिरोह किसी भी घटना को अंजाम देने से पहले देवी स्योर मंदिर पर माथा टेकने अवश्य जाते थे. कार्य मे सफलता के लिए मनौती मांगते थे. जब मनौती पूरी होती तो दस्यु सरदार देवी पर प्रसाद और घंटा चढ़ाते थे क्योंकि उनको लगता था कि देवी के मंदिर पर माथा टेकने के बाद कार्य करने से उनका कार्य सफल होता था. इस तरह देवी स्योर डकैतों की आराध्य कही जाने लगीं.

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देवी स्योर मंदिर

इसे भी पढ़े-काशी के इस मंदिर में है सैकड़ों वर्ष पुराना श्रृंगार गौरी विग्रह, राजा जयसिंह ने किया था स्थापित

डकैत ने देवी का सर धड़ से किया था अलग : कहा जाता है कि एक बार किसी दस्यु की मुराद पूरी नहीं हुई तो उस डकैत ने रात के अंधेरे में देवी का सर धड़ से अलग कर मूर्ति को खंडित कर दिया था. इसके बाद मंदिर के पुजारियों ने 1982 में खंडित मूर्ति को विसर्जित कर नई मूर्ति की स्थापना कर दी थी.

मंदिर पर बुरी नियत से आने वाला हो जाता था अंधा : स्थानीय निवासी अरविंद सिंह चौहान बताते हैं कि बुरी नियत से मंदिर पर आने वाले को देवी अवश्य दंडित करतीं हैं. अरविंद एक घटना के बारे में बताते हैं कि मंदिर पर एक बाबा रहते थे. रात में डकैत आये. वह मंदिर प्रांगण में किसी को मारना चाहते थे. बाबा ने मना किया तो डकैतों ने बाबा पर सात गोलीयां दाग दीं. घटना के बाद डकैतों को दिखाई देना बंद हो गया था. देवी की कृपा से बाबा सात गोली लगने के बाद भी पुलिस चौकी पहुंचे और पुलिस को सूचना दी. इसके बाद सभी डकैत पकड़ लिए गए. मंदिर के बाबा घायल अवस्था मे बोले कि मैं 25 वर्ष तक जिउंगा. अभी नहीं मरूंगा. इसके बाद बाबा 25 वर्षों तक जिए.

वर्ष में लगता है दो बार विशाल मेला : वर्ष में दो बार देवी स्योर के नाम पर यहां प्रसिद्ध स्योर का मेला भी लगता है. इस मेले में फर्नीचर, गृहस्थी का सामान, बांस बल्ली, चारपाई, पत्थर के घरेलू सामान, घोड़े, गाय, भैंस, बैल आदि की खरीद-फ़रोख़्त बड़े पैमाने पर होती है. लगभग 50 बीघे के क्षेत्रफल में यह मेला लगता है.

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कासगंज : यूपी के कासगंज और एटा दस्यु गिरोहों का गढ़ रहा है. छविराम, पोथी, कलुआ सहित अनेक दस्यु यहां की ज़मीन पर पले बढ़े हैं. इन सभी दस्यु गिरोहों की एक आराध्य देवी रहीं हैं, "स्वयं भू देवी स्योर", जो वर्तमान में कासगंज ज़िले की पटियाली तहसील के दरियावगंज क्षेत्र में हैं. आख़िर क्यों दस्यु (डकैत) गिरोहों की आराध्य रहीं हैं यह देवी? इस रहस्य को जानने आज ईटीवी भारत की टीम देवी स्योर मंदिर पहुंची. देवी मंदिर के सेवायत राजीव पालीवाल से बातचीत की.

सेवायत राजीव पालीवाल से खास बातचीत

स्योर मंदिर पूर्व में एटा जनपद में था लेकिन अलग जनपद बनने के चलते अब यह कासगंज जनपद में आता है. लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराने देवी स्योर मंदिर के बारे में मान्यता है कि इनकी चौखट पर आकर जो भी श्रद्धा से मांगता है, देवी स्योर उसकी मनोकामना पूरी करतीं हैं. लोग अपनी मन्नत मांगते समय मंदिर की दीवारों पर सतिया भी बनाते हैं. श्रद्धालु मानते हैं कि ऐसा करने पर देवी मां उनकी मनोकामना पूरी करतीं हैं.

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देवी स्योर पर डकैत चढ़ाते थे घंटा : देवी स्योर मंदिर के सेवायत राजीव पालीवाल ने बताया कि इस इलाके में 60-70 और 80 के दशक में दस्यु (डकैतों) गिरोहों का ज़बरदस्त प्रभाव था. उस समय के मशहूर दस्यु गिरोहों में छविराम और पोथी प्रमुख थे. इसके अलावा कई अन्य छोटे गिरोह भी थे. यह सभी गिरोह किसी भी घटना को अंजाम देने से पहले देवी स्योर मंदिर पर माथा टेकने अवश्य जाते थे. कार्य मे सफलता के लिए मनौती मांगते थे. जब मनौती पूरी होती तो दस्यु सरदार देवी पर प्रसाद और घंटा चढ़ाते थे क्योंकि उनको लगता था कि देवी के मंदिर पर माथा टेकने के बाद कार्य करने से उनका कार्य सफल होता था. इस तरह देवी स्योर डकैतों की आराध्य कही जाने लगीं.

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डकैत ने देवी का सर धड़ से किया था अलग : कहा जाता है कि एक बार किसी दस्यु की मुराद पूरी नहीं हुई तो उस डकैत ने रात के अंधेरे में देवी का सर धड़ से अलग कर मूर्ति को खंडित कर दिया था. इसके बाद मंदिर के पुजारियों ने 1982 में खंडित मूर्ति को विसर्जित कर नई मूर्ति की स्थापना कर दी थी.

मंदिर पर बुरी नियत से आने वाला हो जाता था अंधा : स्थानीय निवासी अरविंद सिंह चौहान बताते हैं कि बुरी नियत से मंदिर पर आने वाले को देवी अवश्य दंडित करतीं हैं. अरविंद एक घटना के बारे में बताते हैं कि मंदिर पर एक बाबा रहते थे. रात में डकैत आये. वह मंदिर प्रांगण में किसी को मारना चाहते थे. बाबा ने मना किया तो डकैतों ने बाबा पर सात गोलीयां दाग दीं. घटना के बाद डकैतों को दिखाई देना बंद हो गया था. देवी की कृपा से बाबा सात गोली लगने के बाद भी पुलिस चौकी पहुंचे और पुलिस को सूचना दी. इसके बाद सभी डकैत पकड़ लिए गए. मंदिर के बाबा घायल अवस्था मे बोले कि मैं 25 वर्ष तक जिउंगा. अभी नहीं मरूंगा. इसके बाद बाबा 25 वर्षों तक जिए.

वर्ष में लगता है दो बार विशाल मेला : वर्ष में दो बार देवी स्योर के नाम पर यहां प्रसिद्ध स्योर का मेला भी लगता है. इस मेले में फर्नीचर, गृहस्थी का सामान, बांस बल्ली, चारपाई, पत्थर के घरेलू सामान, घोड़े, गाय, भैंस, बैल आदि की खरीद-फ़रोख़्त बड़े पैमाने पर होती है. लगभग 50 बीघे के क्षेत्रफल में यह मेला लगता है.

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