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कासगंज की इस नगरी में बने टीले पर गुरु द्रोणाचार्य देते थे शस्त्र विद्या - historic town patiyali

उत्तर प्रदेश के जनपद कासगंज की ऐतिहासिक नगरी पटियाली महाभारत काल का प्रमुख केंद्र रही है. इसी नगर में स्थित टीले पर द्वापर युग में भगवान परशुराम से धनुष दान में प्राप्त कर गुरु द्रोणाचार्य शस्त्राभ्यास किया करते थे. शस्त्राभ्यास का मुख्य उद्देश्य राजा द्रुपद को दंड प्रदान करना था.

पटियाली है महाभारत काल का प्रमुख केंद्र
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Published : May 16, 2019, 5:14 PM IST

कासगंज : जिले में एक ऐसा प्रमुख केंद्र है जो महाभारत काल का प्रतीक है. यहां की ऐतिहासिक नगरी पटियाली में गुरु द्रोणाचार्य का टीला है, जहां पर गुरु द्रोणाचार्य अपने टीले पर द्वापर युग में भगवान परशुराम से धनुष दान में प्राप्त कर शस्त्राभ्यास किया करते थे.

ऐसा माना जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद से कुछ गायें मांगी, जिस पर राजा द्रुपद ने उनसे कहा कि एक राजा और एक निर्धन में कोई मित्रता नहीं होती और गाय देने से मना कर दिया. अपमानित होकर द्रोणाचार्य लौट आए और पटियाली के इसी टीले पर अपना निवास बनाकर रहने लगे.

पटियाली है महाभारत काल का प्रमुख केंद्र.

गुरु द्रोणाचार्य ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए राजा द्रुपद को परास्त कर अपने पुत्र अस्वत्थामा को पांचाल राज्य का राजा बना कर पटियाली को राजधानी घोषित किया था.
श्रद्धालुओं ने बताया कि यहीं पर गुरु द्रोणाचार्य ने कुछ समय तक पांडवों और कौरवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्रदान की और गुरु दक्षिणा में राजा द्रुपद का राज्य मांगा था.

राजा द्रुपद और गुरु द्रोणाचार्य दोनों ही बाल सखा थे. गुरु द्रोणाचार्य के गाय मांगने पर राजा द्रुपद ने मना कर दिया था. तभी अपमान का बदला लेने के लिए राजा द्रुपद को परास्त कर अपने पुत्र अस्वत्थामा को पांचाल राज्य का राजा बना कर पटियाली को राजधानी घोषित किया था.

-श्रद्धालु

गुरु द्रोणाचार्य का टीला है यहां पर, जहां वह द्वापर युग में भगवान परशुराम से प्राप्त किए हुए धनुष से शस्त्राभ्यास किया करते थे.

-श्रद्धालु

गुरु द्रोणाचार्य जी ने पांडवों और कौरवों को शस्त्र विद्या सिखाने के साथ-साथ कुछ दिन यहां पर तपस्या भी की थी.

-सेवादार, गुरु टीला

कासगंज : जिले में एक ऐसा प्रमुख केंद्र है जो महाभारत काल का प्रतीक है. यहां की ऐतिहासिक नगरी पटियाली में गुरु द्रोणाचार्य का टीला है, जहां पर गुरु द्रोणाचार्य अपने टीले पर द्वापर युग में भगवान परशुराम से धनुष दान में प्राप्त कर शस्त्राभ्यास किया करते थे.

ऐसा माना जाता है कि गुरु द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद से कुछ गायें मांगी, जिस पर राजा द्रुपद ने उनसे कहा कि एक राजा और एक निर्धन में कोई मित्रता नहीं होती और गाय देने से मना कर दिया. अपमानित होकर द्रोणाचार्य लौट आए और पटियाली के इसी टीले पर अपना निवास बनाकर रहने लगे.

पटियाली है महाभारत काल का प्रमुख केंद्र.

गुरु द्रोणाचार्य ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए राजा द्रुपद को परास्त कर अपने पुत्र अस्वत्थामा को पांचाल राज्य का राजा बना कर पटियाली को राजधानी घोषित किया था.
श्रद्धालुओं ने बताया कि यहीं पर गुरु द्रोणाचार्य ने कुछ समय तक पांडवों और कौरवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्रदान की और गुरु दक्षिणा में राजा द्रुपद का राज्य मांगा था.

राजा द्रुपद और गुरु द्रोणाचार्य दोनों ही बाल सखा थे. गुरु द्रोणाचार्य के गाय मांगने पर राजा द्रुपद ने मना कर दिया था. तभी अपमान का बदला लेने के लिए राजा द्रुपद को परास्त कर अपने पुत्र अस्वत्थामा को पांचाल राज्य का राजा बना कर पटियाली को राजधानी घोषित किया था.

-श्रद्धालु

गुरु द्रोणाचार्य का टीला है यहां पर, जहां वह द्वापर युग में भगवान परशुराम से प्राप्त किए हुए धनुष से शस्त्राभ्यास किया करते थे.

-श्रद्धालु

गुरु द्रोणाचार्य जी ने पांडवों और कौरवों को शस्त्र विद्या सिखाने के साथ-साथ कुछ दिन यहां पर तपस्या भी की थी.

-सेवादार, गुरु टीला

Intro:स्लग-भगवान परसुराम से धनुष दान में प्राप्त कर इस जगह करते थे गुरु द्रौणाचार्य अभ्यास


एंकर- उत्तर प्रदेश के जनपद कासगंज की ऐतिहासिक नगरी पटियाली महाभारत काल का प्रमुख केंद्र रही है।इसी नगर में स्थित गुरु द्रौण टीले पर द्वापर में भगवान परसुराम से धनुष दान में प्राप्त कर गुरु द्रौणाचार्य शस्त्राभ्यास किया करते थे।शस्त्राभ्यास का मुख्य उद्देश्य राजा द्रुपद को दण्ड प्रदान करना था।बाद में राजा द्रुपद को परास्त कर गुरु द्रौणाचार्य ने पांचाल राज्य का राजा अपने पुत्र अस्वत्थामा को बना कर पटियाली को राजधानी घोषित किया था।



Body:वीओ-1- एक श्रद्धालु ने बताया कि गाजर पत्थर द्रोणाचार्य बाल सखा थे। शिक्षा दीक्षा फ्रेंड करने के बाद राजा दीपक अखंड पांचाल प्रदेश के राजा बन गए परंतु जो चाहे अत्यंत निर्धनता के दिन काट रहे थे। गुरु द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हो गया जिनसे उनके अश्वत्थामा नाम का पुत्र हुआ। क्यो कि द्रोणाचार्य अति निर्धन थे इसलिए कृपी अपने भाई कृपाचार्य के यहां अपने पुत्र अश्वत्थामा को लेकर काम्पिल्य के गांव कारब में रहा करती थी। अश्वत्थामा दूध अधिक पिया करता था तो कृपाचार्य ने द्रौणाचार्य जी से कहा कि आप अपने पुराने मित्र राजा द्रुपद से कुछ गाय मांग ले जिससे अश्वत्थामा को पीने के लियर पर्याप्त दूध मिलता रहे।

वीओ-2- गुरु द्रोणाचार्य राजा द्रुपद के यहां पहुंचे और उन्होंने राजा द्रुपद से कुछ गाय मांग जिस पर राजा द्रुपद ने गुरु द्रौणाचार्य से कहा कि एक राजा और एक निर्धन में कोई मित्रता नहीं होती और गाय देने से मना कर दिया। अपमानित होकर द्रोणाचार्य वापस लौट आये।और पटियाली के इसी टीले पर अपना निवास बना लिया और यहीं रहने लगे। गुरु द्रोणाचार्य अपने अपमान का बदला लेने के लिए व्याकुल रहने लगे। एक बार भगवान परशुराम अपने अस्त्र शस्त्र को दान कर रहे थे ऐसे में गुरु द्रोणाचार्य भी भगवान परशुराम के पास पहुंचे और भगवान परशुराम से दान में धनुष को प्राप्त किया।और पटियाली के इसी गुरु टीले पर धनुष का अभ्यास शुरू किया।कुछ समय बाद कौरव व पाण्डव हस्तिनापुर से पटियाली नगरी पहुंचे यहीं उनकी भेंट गुरु द्रौणाचार्य जी से हुई।भीष्म पितामाह को द्रौणाचार्य जी की शस्त्र संचालन बहुत अच्छा लगा और वे उनको राजाश्रय में ले गए।

वीओ-3- यही पर गुरु द्रोणाचार्य जी ने कुछ समय तक पांडवों और कौरवों को अस्त्र शस्त्र की शिक्षा प्रदान की और गुरु दक्षिणा में राजा द्रुपद का राज्य मांगा। उसके बाद गुरुद्वारा चाहने राजा जपत को परास्त किया और अपने अपमान का बदला लेते हुए उतरी पांचाल राज्य पर अपने पुत्र अश्वत्थामा को राजा नियुक्त किया उत्तरी पांचाल राज्य की राजधानी पटियाली रही।


बाइट-1-श्रद्धालु
बाइट-2-श्रद्धालु
बाइट-3- सेवादार गुरु टीला


Conclusion:
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