प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिकरू कांड के सहअभियुक्त अरविन्द त्रिवेदी उर्फ गुड्डन के ड्राइवर सुशील कुमार तिवारी के जमानत अर्जी मंजूर करते हुए उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है. सुशील की जमानत अर्जी पर यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने दिया. गौरतलब है कि कोर्ट ने सुशील पर जमानत पर रहने के दौरान आवश्यक शर्ते भी लगाई है.
आवेदक के वकीलों की दलील थी कि सुशील तिवारी की बिकरू कांड में कोई भूमिका नहीं है. यहां तक प्राथमिकी में उसका नाम भी नहीं है. उसे सिर्फ इस घटना के सह अभियुक्त अरविन्द त्रिवेदी का ड्राइवर होने के कारण फंसा दिया गया है. उसके पास जे किसी हथियार कि बरामदगी नहीं हुई है. किसी अभियुक्त के बयान से भी उसकी इस घटना में कोई भूमिका नहीं साबित होती है.
जमानत अर्जी का विरोध कर रहें अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि अभियुक्त विकास दुबे को पैसे और कारतूस कि सप्लाई करता था. पुलिस पर हमला करने की योजना की उसे पूरी जानकारी थी. कोर्ट ने दोनों पक्षों के बहस सुनने के बाद कहा की आवेदक सुशील के खिलाफ बिकरू कांड में शामिल होने का एक भी साक्ष्य नहीं है. पुलिस द्वारा इस मामले में लिए गए सभी बयान अगर सही भी मान लिए जाए तब भी आवेदक की इस घटना में कोई भूमिका नहीं साबित होती है. कोर्ट ने जमानत अर्जी मंजूर करते हुए सुशील तिवारी को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है.
30 सितंबर को ही मिल गई थी जमानत
सुशील तिवारी को लिपकीय त्रुटि के कारण 30 सितंबर को ही जमानत मिल गई थी. दरअसल, 30 सितंबर को जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान आवेदक के वकीलों ने एक सह अभियुक्त राम जी उर्फ राधे कश्यप को मिली जमानत के आधार पर समानता दर्शाते हुए जमानत की मांग की. कोर्ट इस पर सहमत थी इसी दौरान सरकारी वकील ने समय की मांग करते हुए कहा की इस मामले में अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल बहस करेंगे. इस पर कोर्ट ने 14 अक्टूबर की तारीख दी थी. मगर स्टेनो द्वारा आदेश समझने में गलती होने के कारण जमानत मंजूर करने का आदेश टाइप हो गया. सरकार की ओर से इस त्रुटि की ओर ध्यान दिलाते हुए आदेश वापस लेने की मांग की गई, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने पूर्व में पारित आदेश वापस लेने के बाद फिर से जमानत अर्जी पर सुनवाई की.
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