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पंचायत चुनाव : आरक्षण रोस्टर जारी होते ही कानपुर में बदला राजनीतिक समीकरण

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के लिए जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम प्रधान के पदों के लिए आरक्षण जारी कर दिया गया है. रोटेशन के बाद कई जिलों की ग्रामीण राजनीति के समीकरण बदल गए हैं. कानपुर नगर में जिला पंचायत अध्यक्ष का पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होगा.

कानपुर में बदला राजनीतिक समीकरण.
कानपुर में बदला राजनीतिक समीकरण.
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Published : Feb 14, 2021, 11:42 AM IST

कानपुर : यूपी में पंचायत चुनावों का आरक्षण रोस्टर जारी होते ही कानपुर का सियासी पारा चढ़ गया है. यहां राजनीतिक पार्टियां के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर पंचायत की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले लोगों की गतिविधियां बढ़ गई हैं. राजीतिक पंडितों ने शह और मात की बिसात बिछाना शुरू कर दिया है. इस बार के आरक्षण नीति के अनुसार जिले की कुल 10 ब्लॉक प्रमुख सीटों पर 4 पदों को महिलाओं के लिए आरक्षित किया गया है.

एससी से होगा जिले के प्रथम नागरिक
जिला पंचायत अध्यक्ष जिसको जिले का प्रथम नागरिक भी कहा जाता है. इस बार कानपुर नगर की सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया है. जिसके हिसाब से अब राजनीतिक दलों ने गुणा-भाग लगाना शुरू कर दिया है. हालांकि पहले से जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए तैयारी कर रहे सामान्य और ओबीसी वर्ग के नेताओं के हाथ मायूसी जरूर लगी है. राजनीतिक दल भी अब नए आरक्षण के मुताबिक नए चेहरे की तलाश करेंगे.

राजनीतिक पार्टियों ने तैयार की रणनीति
उत्तर प्रदेश में बीजेपी, बहुजन समाजवादी पार्टी, समाजवादी पार्टी समेत कांग्रेस ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पूरी तैयारी के साथ ताल ठोकने का निर्णय लिया है. बीजेपी ने तो बूथ स्तर पर तैयारियां भी शुरू कर दी है. वहीं अब पहले के दावेदारों को संतुष्ट कर आरक्षण के अनुसार प्रत्याशियों का चयन की रणनीति बनाकर मजबूती से चुनाव लड़ने की कवायद में जुट गई है. आप को बता दें कि बीजेपी ज्यादा-ज्यादा क्षेत्र पंचायत सदस्य, प्रधान और जिला पंचायत सदस्य पद पर अपना कमल खिलाना चाहती है. ताकि जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के पदों को आसानी से अपना परचम लहराया जा सके. इतना ही नही पंचायत चुनावों की पकड़ आगामी विधानसभा की राह भी आसान करेगी.

2006 में सपा से सीमा सचान ने जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर जीत सुनिश्चित करने बाद मार्च 2011 तक आसीन रहीं. 2011 में बीएसपी से रीता कुशवाहा ने जीत हासिल की लेकिन जब 2012 में समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर इस सीट पर 2013 में सपा के देवेंद्र कटियार अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए थे. तो वहीं 24 मार्च 2016 से अभी तक पुष्पा कटियार इस पद पर आसीन हैं.

कानपुर : यूपी में पंचायत चुनावों का आरक्षण रोस्टर जारी होते ही कानपुर का सियासी पारा चढ़ गया है. यहां राजनीतिक पार्टियां के अलावा क्षेत्रीय स्तर पर पंचायत की राजनीति पर बारीकी से नजर रखने वाले लोगों की गतिविधियां बढ़ गई हैं. राजीतिक पंडितों ने शह और मात की बिसात बिछाना शुरू कर दिया है. इस बार के आरक्षण नीति के अनुसार जिले की कुल 10 ब्लॉक प्रमुख सीटों पर 4 पदों को महिलाओं के लिए आरक्षित किया गया है.

एससी से होगा जिले के प्रथम नागरिक
जिला पंचायत अध्यक्ष जिसको जिले का प्रथम नागरिक भी कहा जाता है. इस बार कानपुर नगर की सीट को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया है. जिसके हिसाब से अब राजनीतिक दलों ने गुणा-भाग लगाना शुरू कर दिया है. हालांकि पहले से जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए तैयारी कर रहे सामान्य और ओबीसी वर्ग के नेताओं के हाथ मायूसी जरूर लगी है. राजनीतिक दल भी अब नए आरक्षण के मुताबिक नए चेहरे की तलाश करेंगे.

राजनीतिक पार्टियों ने तैयार की रणनीति
उत्तर प्रदेश में बीजेपी, बहुजन समाजवादी पार्टी, समाजवादी पार्टी समेत कांग्रेस ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पूरी तैयारी के साथ ताल ठोकने का निर्णय लिया है. बीजेपी ने तो बूथ स्तर पर तैयारियां भी शुरू कर दी है. वहीं अब पहले के दावेदारों को संतुष्ट कर आरक्षण के अनुसार प्रत्याशियों का चयन की रणनीति बनाकर मजबूती से चुनाव लड़ने की कवायद में जुट गई है. आप को बता दें कि बीजेपी ज्यादा-ज्यादा क्षेत्र पंचायत सदस्य, प्रधान और जिला पंचायत सदस्य पद पर अपना कमल खिलाना चाहती है. ताकि जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के पदों को आसानी से अपना परचम लहराया जा सके. इतना ही नही पंचायत चुनावों की पकड़ आगामी विधानसभा की राह भी आसान करेगी.

2006 में सपा से सीमा सचान ने जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर जीत सुनिश्चित करने बाद मार्च 2011 तक आसीन रहीं. 2011 में बीएसपी से रीता कुशवाहा ने जीत हासिल की लेकिन जब 2012 में समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो अविश्वास प्रस्ताव लाकर इस सीट पर 2013 में सपा के देवेंद्र कटियार अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए थे. तो वहीं 24 मार्च 2016 से अभी तक पुष्पा कटियार इस पद पर आसीन हैं.

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