कानपुर: जब बात देश के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की होती है तो कानपुर का नाम अक्सर ही टॉप-5 में शामिल रहता है. इस शहर की आबोहवा जो जहरीली हुई है, उसका एक प्रमुख कारण, यहां की सड़कों पर फर्राटा भरते वाहन भी हैं. आरटीओ विभाग से मिले आंकड़ों के मुताबिक शहर में कुल 14 लाख पंजीकृत वाहन हैं, जिनके प्रदूषण की जांच का जिम्मा शहर के महज 68 केंद्रों पर है. इसकी वजह से कानपुर में सोमवार को वायु प्रदूषण की मात्रा 150 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब रही. जबकि उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों के मुताबिक यह मात्रा 60 माइक्रोग्राम प्रति मीटर क्यूब होनी चाहिए.
तीन साल में प्रदूषण को लेकर सिर्फ 3 हजार चालान
विभागीय अफसरों की मानें तो हर छह माह में वाहन मालिक को अपना प्रदूषण संबंधी जांच प्रमाण पत्र बनवा लेना चाहिए. लेकिन यहां न तो कोई नियम का पालन करने वाला है ही नहीं. आरटीओ विभाग के अफसर भी कार्रवाई करने में सुस्त हैं, जिसकी बानगी है कि विभाग ने पिछले तीन सालों में प्रदूषण को लेकर तीन हजार चालान भी नहीं किए. दरअसल वाहनों से निकलने वाला धुआं बेहद जहरीला होता है. यह वातावरण में मौजूद पार्टिकुलेटेड मैटर यानि धूल के महीन कणों के साथ घुल जाता है. इसके बाद सीधे आमजन व राहगीरों के फेफड़ों पर हमला करता है.
चेकिंग के देंगे निर्देशः एआरटीओ प्रशासन
एआरटीओ प्रशासन सुधीर वर्मा का कहना है कि नियमानुसार हर वाहन मालिक को छह माह में प्रदूषण संबंधी जांच प्रमाण पत्र को बनवाना चाहिए. अगर वह ऐसा नहीं कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर शहर में वायु प्रदूषण बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि अब अधीनस्थ अफसरों को चेकिंग के लिए सख्त निर्देश देंगे. जिससे कि लोगों में जागरूकता बढ़े और शहर में वायु प्रदूषण न हो.