कानपुर देहातः जिले के दो नामों को लेकर बरसों से चला आ रहा भ्रम अभी तक दूर नहीं हो सका है. ग्रामीणों का कहना है कि आखिर में जिले का वास्तविक नाम क्या है, यह आजतक उन्हें नहीं मालूम चल सका है. लिखापढ़ी और बोलचाल में अलग-अलग नाम से अब काफी दिक्कतें होने लगीं हैं.
इतिहास के मुताबिक नौ जून 1976 को कानपुर नगर का विभाजन करते हुए कानपुर देहात जनपद अलग कर दिया गया था. 12 जुलाई 1977 को विभाजन रद्द करते हुए पुन: दोनों जनपद एक कर दिए गए थे. इसके बाद 25 अप्रैल 1981 को कानपुर देहात जनपद को फिर अलग किया गया और प्रशासनिक व्यवस्थाएं भी अलग कर दी गईं.
इसके बाद माती में जिला मुख्यालय व अन्य विभागों का संचालन शुरू हो गया. शुरुआती दौर में कानपुर नगर से कानपुर देहात मुख्यालय के कार्य होते थे. बाद में माती मुख्यालय में सभी भवनों का निर्माण हो गया. सारे प्रशासनिक काम यही से होने लगे. वर्ष 2007 में तत्कालीन सीएम मायावती ने जिले का नाम कानपुर देहात से बदलकर रमाबाई नगर कर दिया.
समाजवादी पार्टी ने सरकार बनने पर यह नाम बदलने का वादा किया था. वर्ष 2012 में अखिलेश यादव की सरकार बनते ही दोबारा रमाबाई नगर का नाम बदलकर कानपुर देहात कर दिया गया. अब भाजपा सरकार ऐसे नाम पर विचार कर रही है, जो ऐतिहासिकता या धार्मिक पृष्ठभूमि वाला हो ताकि जनपद के लोग गौरव महसूस कर सकें.
अब समस्या यह आ रही है कि लिखापढ़ी में जिले का नाम रमाबाई नगर ही चल रहा है जबकि बोलचाल में इसे कानपुर देहात कहा जाता है. वास्तव में इस जिले का नाम क्या है यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो सका है. ऐसे में छात्रों, ग्रामीणों और आम लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. जिले के एक नाम को लेकर मांग उठने लगी है.
ये शख्सियतें हैं जिले की पहचान
कहिंजरी के गौर राजा दरियावचंद्र, लक्ष्मीबाई की सहचारिणी अवंतीबाई झलकारी बाई, खानपुर के राजा गौर आदि.
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