ETV Bharat / state

इत्रनगरी से कांग्रेस का ऐसा टूटा नाता, 36 सालों से एक जीत की खुशबू को तरस रही पार्टी - congress leader sheila dixit

इत्रनगरी कन्नौज के विकास की नींव रखने वाली कांग्रेस का 36 साल से नाता टूटा हुआ है. कांग्रेस को आखिरी बार जनता ने 1985 में सदर सीट से जिताया था. इसके बाद से कांग्रेस को कन्नौज की किसी भी विधानसभा सीट पर जीत हासिल नहीं हुई. इत्रनगरी में आखिर कांग्रेस हाशिए पर क्यों चली गई...पढ़िए पूरी खबर...

कांग्रेस का इत्रनगरी से टूटा रिश्ता
कांग्रेस का इत्रनगरी से टूटा रिश्ता
author img

By

Published : Jan 20, 2022, 11:56 AM IST

कन्नौज: देश के सियासी परिदृश्य से हमेशा ही महत्वपूर्ण क्षेत्र माने जाने वाले कन्नौज से कांग्रेस पार्टी ने अपना ऐसा नाता तोड़ा जो 36 साल बीत जाने के बाद भी जुड़ता नजर नहीं आ रहा है. कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च नेता शीला दीक्षित को सांसद बनाकर कन्नौजवासियों ने ऐसा आशीर्वाद दिया कि वह देश की राजधानी दिल्ली की मुख्यमंत्री तक बनीं. जनता ने वर्ष 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आखरी बार विजयी भव का आशीर्वाद दिया था. समय बदला तो यहां के राजनीतिक हालात भी बदले. समय के साथ-साथ यहां पर कांग्रेस का दबदबा भी कम होता चला गया.

सुगंध नगरी ने बदलते राजनीतिक हालातों के साथ कांग्रेस के पंजे से नाता तोड़ते हुए गैर कांग्रेसी दलों पर अपना विश्वास जताया. मतदाताओं ने सपा, भाजपा और बसपा के अलावा समय-समय पर अन्य राजनीतिक दलों पर भरोसा जताते हुए उनके प्रत्याशियों के सिर पर जीत का सहेरा बांधा. लेकिन 36 साल बीतने के बाद भी कांग्रेस मतदाताओं का विश्वास हासिल नहीं कर पाई है.

प्रवेश द्वार
प्रवेश द्वार

विधान सभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले की तीन विधानसभा सीटें हैं. इसमें सदर, छिबरामऊ और तिर्वा के लोगों ने कांग्रेस को जीत का स्वाद तो चखाया, लेकिन इस स्वाद को बरकरार रखने में कांग्रेसी सफल नहीं हुए. इसके पीछे स्थानीय कांग्रेस का लचर संगठन ही नहीं, बल्कि समय-समय पर किए गए गठबंधन को भी जिम्मेदार माना जाता है. जिस तरह से 2017 के चुनाव में कांग्रेसी का शीर्ष नेतृत्व ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लिया. इसके बाद कांग्रेस ने तीनों सीटों पर अपना कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा.

इत्रनगरी
कन्नौज का प्राचीन किला.

बरहाल इत्र नगरी में जिस तरह से कांग्रेस को इस विधानसभा चुनाव में संघर्ष करना पड़ रहा है उससे तो मौजूदा परिस्थितियां पार्टी के लिए फिलहाल ठीक नहीं दिख रहीं. यहां पर कांग्रेस को एक जीत पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है. करीब 36 साल से कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है. शुरूआती दौर में भले ही कांग्रेस की इत्रनगरी में सियासी जड़े मजबूत रही हो, लेकिन समय के साथ-साथ उसका दबदबा भी कम होता चला गया.

इत्रनगरी
कन्नौज का प्राचीन किला.

यह भी पढ़ें: बसपा ने घोषित किए 12 अन्य प्रत्याशी, सपा-बीजेपी बागी को भी बनाया उम्मीदवार

कांग्रेस ने कन्नौज विधानसभा सदर सीट से अब तक सिर्फ पांच बार तो छिबरामऊ विधानसभा सीट पर दो और तिर्वा सीट पर भी दो बार ही जीत का स्वाद चखा है. कांग्रेस को आखिरी 1985 में सदर सीट पर जीत मिली है. तब से आज तक कांग्रेस पार्टी एक अदद जीत के लिए जूझती दिख रही है. इस बार कांग्रेस तीनों सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रही है. आने वाले समय में इत्रनगरी के मतदाता तय करेंगे कि कांग्रेस के सिर सहेरा बंधेगा या फिर प्रत्याशी जमानत जब्त होगी.

कन्नौज रेलवे स्टेशन
कन्नौज रेलवे स्टेशन

पहले ही विधानसभा चुनाव में मिली थी कांग्रेस को जीत

कन्नौज की सदर सीट (198) पर पहली बार 1952 को चुनाव हुए थे. इसमें कांग्रेस के प्रत्याशी काली चरण टंडन ने 15845 वोट पाकर अपने प्रतिद्वंदी सेठ चंदन गुप्ता को हराकर विधायक बने थे. वहीं, 1957 में हुए चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े पातीराम को हार का मुंह देखना पड़ा था. 1962 में कांग्रेस ने एक बार फिर पातीराम पर विश्वास जताया. उन्होंने सीताराम को हराकर जीत हासिल की. 1967 में भी पातीराम अहिरवार ने एसएसपी के प्रत्याशी बिहारी लाल दोहरे को हराकर जीत हासिल की थी.

1980 में बिहारी लाल दोहरे ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और भाजपा के प्रत्याशी झामलाल अहिरवार को हराकर जीत हासिल की. 1985 में भी लगातार दूसरी बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़कर बिहारी लाल दोहरे विधायक बने. 1985 में हुए चुनाव में कांग्रेस को आखिरी बार कामयाबी मिली थी. तब से लेकर आज तक हर चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ हार का ही मुंह देखना पड़ा है. करीब 36 साल से कांग्रेस इत्रनगरी में एक अदद जीत के लिए जद्दोजहद कर रही है.

छिबरामऊ विधानसभा सीट पर दो बार ही मिली जीत

छिबरामऊ विधानसभा सीट (196) पर कांग्रेस सिर्फ दो बार जीत सकी है. 1957 में पहली बार कांग्रेस की टिकट पर मथुरा प्रसाद ने चुनाव लड़ा था, लेकिन उनको हार का मुंह देखना पड़ा था. 1962 में कांग्रेस ने रामसेवक को अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन उनको भी जीत नसीब नहीं हुई. उसके बाद यहां पर 1969 में कांग्रेस की टिकट पर पूर्व चैयरमैन डॉ. जगदीश्वर दयाल अग्निहोत्री उर्फ डॉ. मुन्ना ने चुनाव लड़ा था. उन्होंने जनसंघ के प्रत्याशी राम प्रकाश त्रिपाठी को हराकर विधायक बने थे. उसके बाद 1985 में संतोष चतुर्वेदी ने लोकदल के छोटेलाल को हराया था. 1985 के बाद से छिबरामऊ विधानसभा चुनाव में आज तक किसी भी कांग्रेसी प्रत्याशी ने जीत का स्वाद नहीं चखा है.

तिर्वा विधानसभा सीट पर 1980 के बाद नहीं मिली जीत

तिर्वा विधानसभा सीट (197) पहले उमर्दा के नाम से जानी जाती थी. 2007 में परिसीमन के बाद इसका नाम तिर्वा पड़ा. साल 2012 में तिर्वा सीट के लिए पहला चुनाव हुअा था. जबकि 2012 से पहले सभी चुनाव उमर्दा सीट से हुए थे. 1969 में कांग्रेस की ओर से राम रतन पांडे़य ने चुनाव लड़ा था. उन्होंने जनसंघ के प्रत्याशी धर्मपास सिंह को हराकर जीत हासिल की थी. उसके बाद 1980 में कुंवर योगेंद्र सिंह ने भाजपा के रामबक्श वर्मा को हराकर चुनाव जीता था. तब से लेकर आज तक हर चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है.

कब-कब कांग्रेस को मिली जीत

सदर विधानसभा सीट

  • 1952 कालीचरण टंडन (15848)
  • 1962 पातीराम अहिरवार (20394)
  • 1967 पातीराम अहिरवार (15981)
  • 1980 बिहारी लाल दोहरे (23705)
  • 1985 बिहारी लाल दोहरे (23180)

तिर्वा विधानसभा सीट

  • 1969 कुंवर योगेंद्र सिंह (20964)
  • 1980 रामरतन पांडेय (31842)

छिबरामऊ विधानसभा सीट

  • 1969 डॉ. जगदीश्वर दयाल अग्निहोत्री (22690)
  • 1985 संतोष चतुर्वेदी (28570)

कांग्रेस ने रखी थी कन्नौज के विकास की नींव

कन्नौज के विकास की नींव कांग्रेस पार्टी ने ही रखी थी. शीला दीक्षित ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत कन्नौज से की थी. केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री रहते हुए उन्होंने कन्नौज में कई विकास कार्य कराए. इंदरगढ़ क्षेत्र में लाख बहोसी पक्षी बिहार और तिर्वा कस्बे में दूरदर्शन रिले टॉवर सेंटर उन्हीं की देन है. इसके अलावा हसेरन में सीएचसी.

जिले के सभी प्रमुख मार्गों पर डामरीकृत कांग्रेस के शासन में हुआ. शीला दीक्षित के पति विनोद दीक्षित की मौत के बाद उनके नाम से विनोद दीक्षित अस्पताल बना. इसके अलावा इत्र के व्यवसाए को नए आयाम देने के लिए एफएफडीसी का निर्माण कराया गया था. इसके अलावा कन्नौज-हरदोई को जोड़ने वाले महादेवी पुल का निर्माण कांग्रेस की सरकार की देन है. जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

कन्नौज: देश के सियासी परिदृश्य से हमेशा ही महत्वपूर्ण क्षेत्र माने जाने वाले कन्नौज से कांग्रेस पार्टी ने अपना ऐसा नाता तोड़ा जो 36 साल बीत जाने के बाद भी जुड़ता नजर नहीं आ रहा है. कांग्रेस पार्टी की सर्वोच्च नेता शीला दीक्षित को सांसद बनाकर कन्नौजवासियों ने ऐसा आशीर्वाद दिया कि वह देश की राजधानी दिल्ली की मुख्यमंत्री तक बनीं. जनता ने वर्ष 1985 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को आखरी बार विजयी भव का आशीर्वाद दिया था. समय बदला तो यहां के राजनीतिक हालात भी बदले. समय के साथ-साथ यहां पर कांग्रेस का दबदबा भी कम होता चला गया.

सुगंध नगरी ने बदलते राजनीतिक हालातों के साथ कांग्रेस के पंजे से नाता तोड़ते हुए गैर कांग्रेसी दलों पर अपना विश्वास जताया. मतदाताओं ने सपा, भाजपा और बसपा के अलावा समय-समय पर अन्य राजनीतिक दलों पर भरोसा जताते हुए उनके प्रत्याशियों के सिर पर जीत का सहेरा बांधा. लेकिन 36 साल बीतने के बाद भी कांग्रेस मतदाताओं का विश्वास हासिल नहीं कर पाई है.

प्रवेश द्वार
प्रवेश द्वार

विधान सभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले की तीन विधानसभा सीटें हैं. इसमें सदर, छिबरामऊ और तिर्वा के लोगों ने कांग्रेस को जीत का स्वाद तो चखाया, लेकिन इस स्वाद को बरकरार रखने में कांग्रेसी सफल नहीं हुए. इसके पीछे स्थानीय कांग्रेस का लचर संगठन ही नहीं, बल्कि समय-समय पर किए गए गठबंधन को भी जिम्मेदार माना जाता है. जिस तरह से 2017 के चुनाव में कांग्रेसी का शीर्ष नेतृत्व ने समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर लिया. इसके बाद कांग्रेस ने तीनों सीटों पर अपना कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा.

इत्रनगरी
कन्नौज का प्राचीन किला.

बरहाल इत्र नगरी में जिस तरह से कांग्रेस को इस विधानसभा चुनाव में संघर्ष करना पड़ रहा है उससे तो मौजूदा परिस्थितियां पार्टी के लिए फिलहाल ठीक नहीं दिख रहीं. यहां पर कांग्रेस को एक जीत पाने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है. करीब 36 साल से कांग्रेस को जीत नसीब नहीं हुई है. शुरूआती दौर में भले ही कांग्रेस की इत्रनगरी में सियासी जड़े मजबूत रही हो, लेकिन समय के साथ-साथ उसका दबदबा भी कम होता चला गया.

इत्रनगरी
कन्नौज का प्राचीन किला.

यह भी पढ़ें: बसपा ने घोषित किए 12 अन्य प्रत्याशी, सपा-बीजेपी बागी को भी बनाया उम्मीदवार

कांग्रेस ने कन्नौज विधानसभा सदर सीट से अब तक सिर्फ पांच बार तो छिबरामऊ विधानसभा सीट पर दो और तिर्वा सीट पर भी दो बार ही जीत का स्वाद चखा है. कांग्रेस को आखिरी 1985 में सदर सीट पर जीत मिली है. तब से आज तक कांग्रेस पार्टी एक अदद जीत के लिए जूझती दिख रही है. इस बार कांग्रेस तीनों सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रही है. आने वाले समय में इत्रनगरी के मतदाता तय करेंगे कि कांग्रेस के सिर सहेरा बंधेगा या फिर प्रत्याशी जमानत जब्त होगी.

कन्नौज रेलवे स्टेशन
कन्नौज रेलवे स्टेशन

पहले ही विधानसभा चुनाव में मिली थी कांग्रेस को जीत

कन्नौज की सदर सीट (198) पर पहली बार 1952 को चुनाव हुए थे. इसमें कांग्रेस के प्रत्याशी काली चरण टंडन ने 15845 वोट पाकर अपने प्रतिद्वंदी सेठ चंदन गुप्ता को हराकर विधायक बने थे. वहीं, 1957 में हुए चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े पातीराम को हार का मुंह देखना पड़ा था. 1962 में कांग्रेस ने एक बार फिर पातीराम पर विश्वास जताया. उन्होंने सीताराम को हराकर जीत हासिल की. 1967 में भी पातीराम अहिरवार ने एसएसपी के प्रत्याशी बिहारी लाल दोहरे को हराकर जीत हासिल की थी.

1980 में बिहारी लाल दोहरे ने कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा और भाजपा के प्रत्याशी झामलाल अहिरवार को हराकर जीत हासिल की. 1985 में भी लगातार दूसरी बार कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़कर बिहारी लाल दोहरे विधायक बने. 1985 में हुए चुनाव में कांग्रेस को आखिरी बार कामयाबी मिली थी. तब से लेकर आज तक हर चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ हार का ही मुंह देखना पड़ा है. करीब 36 साल से कांग्रेस इत्रनगरी में एक अदद जीत के लिए जद्दोजहद कर रही है.

छिबरामऊ विधानसभा सीट पर दो बार ही मिली जीत

छिबरामऊ विधानसभा सीट (196) पर कांग्रेस सिर्फ दो बार जीत सकी है. 1957 में पहली बार कांग्रेस की टिकट पर मथुरा प्रसाद ने चुनाव लड़ा था, लेकिन उनको हार का मुंह देखना पड़ा था. 1962 में कांग्रेस ने रामसेवक को अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन उनको भी जीत नसीब नहीं हुई. उसके बाद यहां पर 1969 में कांग्रेस की टिकट पर पूर्व चैयरमैन डॉ. जगदीश्वर दयाल अग्निहोत्री उर्फ डॉ. मुन्ना ने चुनाव लड़ा था. उन्होंने जनसंघ के प्रत्याशी राम प्रकाश त्रिपाठी को हराकर विधायक बने थे. उसके बाद 1985 में संतोष चतुर्वेदी ने लोकदल के छोटेलाल को हराया था. 1985 के बाद से छिबरामऊ विधानसभा चुनाव में आज तक किसी भी कांग्रेसी प्रत्याशी ने जीत का स्वाद नहीं चखा है.

तिर्वा विधानसभा सीट पर 1980 के बाद नहीं मिली जीत

तिर्वा विधानसभा सीट (197) पहले उमर्दा के नाम से जानी जाती थी. 2007 में परिसीमन के बाद इसका नाम तिर्वा पड़ा. साल 2012 में तिर्वा सीट के लिए पहला चुनाव हुअा था. जबकि 2012 से पहले सभी चुनाव उमर्दा सीट से हुए थे. 1969 में कांग्रेस की ओर से राम रतन पांडे़य ने चुनाव लड़ा था. उन्होंने जनसंघ के प्रत्याशी धर्मपास सिंह को हराकर जीत हासिल की थी. उसके बाद 1980 में कुंवर योगेंद्र सिंह ने भाजपा के रामबक्श वर्मा को हराकर चुनाव जीता था. तब से लेकर आज तक हर चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है.

कब-कब कांग्रेस को मिली जीत

सदर विधानसभा सीट

  • 1952 कालीचरण टंडन (15848)
  • 1962 पातीराम अहिरवार (20394)
  • 1967 पातीराम अहिरवार (15981)
  • 1980 बिहारी लाल दोहरे (23705)
  • 1985 बिहारी लाल दोहरे (23180)

तिर्वा विधानसभा सीट

  • 1969 कुंवर योगेंद्र सिंह (20964)
  • 1980 रामरतन पांडेय (31842)

छिबरामऊ विधानसभा सीट

  • 1969 डॉ. जगदीश्वर दयाल अग्निहोत्री (22690)
  • 1985 संतोष चतुर्वेदी (28570)

कांग्रेस ने रखी थी कन्नौज के विकास की नींव

कन्नौज के विकास की नींव कांग्रेस पार्टी ने ही रखी थी. शीला दीक्षित ने अपनी सियासी पारी की शुरुआत कन्नौज से की थी. केंद्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री रहते हुए उन्होंने कन्नौज में कई विकास कार्य कराए. इंदरगढ़ क्षेत्र में लाख बहोसी पक्षी बिहार और तिर्वा कस्बे में दूरदर्शन रिले टॉवर सेंटर उन्हीं की देन है. इसके अलावा हसेरन में सीएचसी.

जिले के सभी प्रमुख मार्गों पर डामरीकृत कांग्रेस के शासन में हुआ. शीला दीक्षित के पति विनोद दीक्षित की मौत के बाद उनके नाम से विनोद दीक्षित अस्पताल बना. इसके अलावा इत्र के व्यवसाए को नए आयाम देने के लिए एफएफडीसी का निर्माण कराया गया था. इसके अलावा कन्नौज-हरदोई को जोड़ने वाले महादेवी पुल का निर्माण कांग्रेस की सरकार की देन है. जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किया था.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.