झांसी: जिले में एक युवा जब गरीबों और दलित बस्तियों से गुजरता है तो वहां के बच्चे-बूढ़े सभी कपड़े वाले अंकल बुलाते हुए पीछे दौड़ने लगते हैं. इस युवक को ये नाम गरीब मासूम बच्चों ने उसके नेक काम के लिए दिया है. यह युवक हर दिन किसी न किसी झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले गरीब बच्चों और परिवारों को कपड़े व खाने पीने का सामान बांटते हुए नजर आता है. इस नेक काम की जानकारी आर्मी के अधिकारियों और पत्नियों को हुई, तो सबने भी इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया है.
12 सालों से झुग्गी-झोपड़ियों में बांट रहे कपड़ेः झांसी के हंसारी निवासी प्रदीप कुमार वर्मा एक पढ़े लिखे व्यक्ति है. वह पिछले 12 सालों से झुग्गी-झोपड़ियों वाली बस्ती में जाकर कपड़े वितरित करने काम कर रहे हैं. प्रदीप कुमार ने ईटीवी भारत को बताया, वह शुरुआत में अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और आस-पास रहने वाले लोगों से उनके घर में रखे इस्तेमाल न होने वाले कपड़े मांग कर इकट्ठा करते थे. जिन्हें वह झांसी की स्लम और दलित बस्तियों में रहने वाले लोगों के दे दिया करते थे. मदद के बाद बच्चों के चेहरे पर दिखने वाली खुशी ने इस सिलसिले को जारी रखने के लिए मजबूर कर दिया.
बच्चे कपड़े वाले अंकल कहकर दौड़ते हैं पीछेः समय बीतने के साथ प्रदीप ने जीवन ज्योति संस्थान नाम से एक एनजीओ शुरू कर दिया. आज आलम ये है कि प्रदीप हर रोज बिना छुट्टी के किसी न किसी बस्ती में जरूरतमंदों को कपड़े या फिर शिक्षा सामग्री बांटते हैं. जैसे ही प्रदीप स्लम बस्तियों में घुसते हैं, तो छोटे-छोटे बच्चे कपड़े वाले अंकल कहते हुए उनकी गाड़ी के पीछे दौड़ लगा देते है. मंगलवार को जिस प्रदीप झांसी के बिजौली में बनी आदिवासी बस्ती में पहुंचे थे. इस आदिवासी बस्ती में रहने वाली राजकुमारी ने बताया कि यहां लगभग तीन सौ आदिवासी परिवार कच्चे मकानों और झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं. यहां के महिला पुरुष आसपास के इलाकों में या फिर गुजरात, राजस्थान, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में मजदूरी कर अपने परिवार को पालन करते हैं. मजदूरी की कमाई से लोग सिर्फ अपने परिवार का पेट भरने की जुगाड़ ही कर पाते है. राजकुमारी ने बताया कि प्रदीप समय-समय पर और खास तौर पर सर्दी के मौसम में बच्चों-बड़े सभी के लिए गर्म कपड़े देने आते हैं. जिससे बच्चों के चेहरे खुशी से खिल जाते हैं. प्रदीप की इस सहायता से बच्चों के मां-बाप के माथे पर पड़ने वाली परेशानियों की लकीरें गायब हो जाती हैं.
आर्मी अधिकारियों की पत्नियां भी दे रहीं साथः जीवन ज्योति संस्थान एनजीओं के डायरेक्टर प्रदीप ने बताया कि शुरुआत में उनको कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. लेकिन, उन्होंने हार नहीं मानी. जैसे-जैसे उनके इस कार्य की चर्चा होने लगी वैसे-वैसे शहर के जिम्मेदारों ने भी इस मुहिम में शामिल होना शुरू कर दिया. पिछले कई महिनों से आर्मी अधिकारियों की पत्नियां भी इसमें बराबर सहयोग करती है. झांसी ब्रिगेडियर की पत्नी पारस बाबा, कर्नल पत्नी संगीता इसके अलावा मेजर की पत्नी वर्खा सिंह, मेजर पत्नी अलका सिंह और कर्नल पत्नी कृतिका पटेल ने प्रदीप की इस मुहिम में हिस्सा बनी हुई हैं. ये सभी अपने-अपने घरों में रखे परिवार के सदस्यों के इस्तेमाल में न आने वाले कपड़े इकट्ठा कर प्रदीप को सौंप देती हैं. इसके अलावा उनके बच्चों के खेलने बेशकिमती खिलौने जिनसे अब बच्चों ने खेलना बंद कर दिया है. वह भी गरीब बच्चों को बांटने के लिए दे देती हैं.
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