झांसी: सुहागिन महिलाओं का त्योहार करवा चौथ (karwa chauth) आज 24 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का बहुत महत्व है. सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु और सुखमय वैवाहिक जीवन की कामना से इस व्रत को पूरे दिन निर्जला रहकर करती हैं. यानी जल तक ग्रहण नहीं करतीं. ये हिन्दू कैलेंडर के कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है.
करवा चौथ व्रत की विधि
इस दिन प्रातः उठकर अपने घर की परंपरा के अनुसार, सरगी आदि ग्रहण करें. स्नानादि करने के पश्चात व्रत का संकल्प करें. शाम को तुलसी के पास बैठकर दीपक प्रज्वलित करके करवाचौथ की कथा पढ़ें. चंद्रमा निकलने से पहले ही एक थाली में धूप-दीप, रोली, पुष्प, फल, मिष्ठान आदि रख लें. टोटी वाले एक लोटे में अर्घ्य देने के लिए जल भर लें. मिट्टी के बने करवा में चावल या फिर चिउड़ा आदि भरकर उसमें दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे रख दें. एक थाली में श्रृंगार का सामान भी रख लें.
क्या है महत्व
आचार्य शांतनु पांडेय के अनुसार 20 सालों बाद इस करवा चौथ पर एक शुभ संयोग बन रहा है जो सुहागिनों के लिए विशेष फलदाई होगा. इस बार रोहिणी नक्षत्र के साथ मंगल का योग बेहद मंगलकारी रहेगा. रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा में रोहिणी के योग्य से मार्कंडेय और सत्यभामा योग भी इस करवा चौथ पर बन रहा है. चंद्रमा की 27 पत्नियों में से उन्हें रोहिणी सबसे ज्यादा प्रिय है यही वजह है कि वह संयोग करवा चौथ को और खास बना रहा है. इसका सबसे ज्यादा लाभ उन महिलाओं को मिलेगा जो पहली बार करवा चौथ का व्रत रखेंगी.
निर्जला व्रत करके रात को छलनी से चंद्रमा को देखने के बाद पति का चेहरा देखकर उनके हाथों से जल ग्रहण कर अपना व्रत पूरा करती हैं. इस व्रत में चंद्रमा को छलनी में से देखने का विधान इस बात की ओर इंगित करता है कि पति-पत्नी एक-दूसरे के दोष को छानकर सिर्फ गुणों को देखें, जिससे उनका दांपत्य रिश्ता प्यार और विश्वास की मजबूत डोर के साथ हमेशा बना रहे.
कथा सुनने की परंपरा बेहद महत्वपूर्ण
करवा चौथ में व्रत कथा सुनना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दौरान एक चौकी पर जल से भरा लोटा, करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी और रुपये आदि रख जाते हैं. कहते हैं कि इस दिन का चांद भी बहुत आकर्षक होता है. चावल के आटे से चांद, सूरज, पेड़ आदि बनाया जाता है. इस व्रत से लोककला भी जुड़ी हुई हैं. कथा, लोक चित्र और लोक गायन तीनों परंपराएं एक-दूसरे से जुड़े हैं, जो करवा चौथ में निभाए जाते हैं.
करवा चौथ कथा
एक कथा के अनुसार एक साहूकार के घर सात बेटे और एक वीरावती नाम की बेटी थी. सातों भाइयों की इकलौती बहन होने के कारण वीरावती सबकी लाडली थी. वीरावती विवाह के बाद पहले करवा चौथ पर संयोग बस अपने मायके में थी. करवा चौथ के व्रत पर वीरावती ने दिन भर ना कुछ खाया था ना कुछ किया था जिसके कारण वह कमजोरी महसूस कर रही थी. वीरावती के भाइयों ने उन्हें थोड़ा बहुत खाने के लिए बोला पर वीरावती ने इनकार कर दिया.
कुछ समय बाद वीरावती कमजोरी से मूर्छित हो गई. ऐसे में उनके भाई काफी विचलित हो गए. सातों भाइयों में से एक भाई ने घर से थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ पर चढ़कर दिया दिखाकर वीरावती को भ्रमित कर दिया, जिससे उसे यकीन हो जाए कि चांद निकल गया है और चांद के दर्शन कर ले. वीरावती ने पेड़ के पास दिख रहे दीए की रोशनी को चांद समझ लिया और चांद के दर्शन कर उसने खाना खाने का निर्णय लिया.
जैसे ही वह खाना खाने के लिए बैठी तो पहले निवाले में बाल आ गया. दूसरे में उसे छींक आ गई और तीसरे निवाले में उसके घर से बुलावा आ गया कि उसके पति की मृत्यु हो गई है. इसके बाद वीरावती ने पूरे वर्ष चतुर्थी के व्रत और अगले वर्ष दोबारा करवा चौथ का व्रत कर चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण किया और मां करवा को प्रसन्न किया. मां करवा के आशीर्वाद से वीरावती का पति पुनः जीवित हो उठा.
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