जौनपुर: 1 मई को मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाता है. मजदूरों को उचित मजदूरी दिलाना हो या समाज में उनके अहम योगदान का जिक्र करना हो, मजदूर दिवस पर इन सभी अहम मुद्दों पर चर्चा की जाती है. हालांकि इस बार लॉकडाउन के चलते 'मजदूर दिवस' सिर्फ नाम भर का ही रह गया है.
कोरोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी के चलते इस बार मजदूर बेहाल हैं. मजदूरी बढ़ाने की बात तो छोड़ ही दीजिए, इस मुसीबत के घड़ी में मजदूरों को दो वक्त की रोटी मिल पाना ही किसी सपने से कम नहीं है.
लॉकडाउन से मजदूर परेशान
जौनपुर में लॉकडाउन के चलते मजदूर सबसे ज्यादा परेशान हैं. कई मजदूर इस लॉकडाउन में बेरोजगार हो गए. देश के विकास में मजदूरों के योगदान की बातें तो बड़ी-बड़ी होती हैं, लेकिन ये सब कागजों तक ही सीमित हैं. लॉकडाउन की मार सबसे ज्यादा भट्ठा मजदूर झेल रहे हैं. मजदूरों को मजदूरी के नाम पर कुछ ही रुपये मिल रहे हैं. इन पैसों से घर चलाना उन्हें मुश्किल हो गया है.
सिर्फ नाम का रह गया 'मजदूर दिवस'
इस लॉकडाउन ने मजदूर दिवस की अहमियत को ही खत्म कर दिया है. आज के दिन जहां मजदूरों के भविष्य को लेकर चर्चा और मजदूरी बढ़ाने की बातें होती थीं, वहीं आज यह सब कुछ नहीं हो रहा है. आज न ही कोई मजदूर के बारे में सोच रहा है और न ही समाज में उनके योगदान के बारे में बात कर रहा है.
समाज में मजदूर का अहम योगदान
मजदूर को देश के विकास का पहिया माना जाता है. दो वक्त की रोटी के लिए मजदूर कड़कड़ाती सर्दी हो या तपती गर्मी किसी भी माहौल में काम करने के लिए हमेशा तैयार रहता है. सरकार मजदूरों के हित में बातें तो बहुत करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर मजूदर को इसका कोई फायदा नहीं पहुंचता है.
मजबूर हैं घर बैठने को मजदूर
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए देश में लॉकडाउन का एलान किया गया है. इसके चलते सभी तरह के काम-धंधे बंद हैं. मजदूरों के पास कोई काम भी नहीं है. इसके लिए वे घर बैठने को मजबूर हैं. ऐसे में वह अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करें यह बड़ी जिम्मेदारी है. वहीं कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए सोशल डिस्टेंसिग को बनाए रखना भी जरूरी है.
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लॉकडाउन ने बहुत परेशान कर रखा है. हम घर नहीं जा पा रहे हैं और न ही मालिक हमें जानें दे रहे हैं. ऐसे में हमारे परिवार को बहुत तकलीफ हो रही है. खेत में खड़ी फसल भी बर्बाद होने के कगार पर है.
-मुन्ना चौहान, मजदूर