जौनपुरः जिले के खून शाहपुर ग्राम पंचायत के बरजी गांव में 48 साल के मूलचंद हरि भजन सरोज रहते हैं. अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए वह मजदूरी का काम करते हैं. मूलचंद की पत्नी की मृत्यु हो चुकी है और उनके दो पुत्र हैं. मूलचंद के हौसलों की उड़ान इतनी ऊंची है कि उन्होंने वह कर दिखाया है जो बड़े-बड़े ज्ञाता नहीं कर सके. मात्र तीसरी कक्षा तक पढ़ाई करने वाले मूलचंद हरि भजन सरोज ने रामचरितमानस (रामायण) की तर्ज पर श्रीमद भगवद गीता का अनुवाद किया है. साथ ही संगीत के रूप में लिपिबद्ध किया है. इसे रामायण की तरह ही गाकर पढ़ा जा सकता है और कीर्तन भी किया जा सकता है.
कैसे शुरू हुआ यह सिलसिला
ईटीवी भारत से खास बातचीत में मूलचंद ने बताया कि काम की तलाश में वह घर छोड़कर नासिक चले गए थे. परिवार की जीविका चलाने के लिए वहां एक आटा चक्की पर मजदूरी करने लगे. सुबह-सुबह गोदावरी में स्नान कर जल अर्पित करने जाते थे. इसी दौरान एक सुबह घाट पर उन्हें पोटली में गीता और मानस की पुस्तक नदी में मिली. किसी तरह उन्होंने उसे सुखाया. मजदूरी करने के बाद जो खाली समय मिलता, वह उसे भगवद गीता पढ़ने में गुजार देते.
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7 बार पढ़ी भगवद गीता
शुरुआत में उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता पढ़ने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. धीरे-धीरे जब उनको भगवद गीता का भाव समझ में आने लगा तो उनके दिमाग में इसे सरल शब्दों में लिखने की इच्छा हुई. इसके लिए उन्होंने इसे 7 बार पढ़ा. मूलचंद सरोज बताते हैं कि तकरीबन 1 माह 23 दिन की अथक मेहनत का नतीजा था कि उन्होंने पुरी गीता को मानस की तर्ज पर संगीत के रूप में लिपिबद्ध किया.
ज्यादातर लोगों को नहीं समझ आती है संस्कृत
मूलचंद सरोज बताते हैं कि संस्कृत में होने के कारण ज्यादातर लोग गीता नहीं पढ़ पाते हैं. उन्हें भी काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था. एक बार जब उन्हें भाव स्पष्ट हो गए तो उन्होंने इसे संगीतमय रूप में लिपिबद्ध कर दिया. उनका मानना है कि अब लोगों को ज्यादा आसानी से समझ में आ जाएगा. इसके साथ ही अब लोग इसे मानस की तरह गाकर पढ़ सकेंगे. इसका कीर्तन भी कर सकेंगे.