हमीरपुर: बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में पेयजल संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है. यहां के लोग आज भी 'आदम युग' में जीने को मजबूर हैं. इन्हें पीने के लिए शुद्ध पानी तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. आलम यह है कि अपनी प्यास बुझाने के लिए यहां के लोगों को गांव से कोसों दूर पैदल चलना पड़ता है.
जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर केन नदी किनारे बसे छानी, बक्क्षा व भुलसी समेत दर्जनों गांव इस वक्त बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. गांव में कहने को तो एक दो हैंडपंप लगे हैं, लेकिन उनसे निकलने वाला पानी पीने लायक नहीं है. यहां के निवासियों को अपनी और मवेशियों की प्यास बुझाने के लिए ग्रामीण तड़के सुबह उठकर बैल गाड़ियों पर ड्रम लादकर पानी लाते हैं.
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कई दफा पानी का संकट गांववासियों में विवाद का कारण तक बन जाता है, लेकिन विकास का वादा कर वोट मांगने वाले सियासी लोग चुनाव जीतने के बाद विकास के नाम पर कुछ भी नहीं करते. बढ़ती उम्र के साथ रेखा देवी को अब नदी से पानी ले जाने में दिक्कत होती है. वे बताती हैं कि हालात इतने बदतर हो चले हैं कि लोग अपनी बेटी का विवाह केन नदी किनारे बसे इन गांवों में करने से कतराते हैं. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि देश ने कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन बुंदेलखंड आज भी विकास से अछूता है. गर्मी में यहां के लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता.
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पेयजल की किल्लत यहां के लोगों की तकदीर का हिस्सा बन चुका है. वादे तो तमाम होते हैं लेकिन यहां की जमीं आज भी प्यासी ही है. वादों से प्यास नहीं बुझती. देखना है कि वादों का पानी लोगों के लबों तक कब पहुंच पाता है.