ETV Bharat / state

पेयजल संकट के चलते बूंद-बूंद को तरस रहा है बुंदेलखंड का ये इलाका - hamirpur dm

हमीरपुर जिले के केन नदी किनारे बसे दर्जनों गांव पानी के लिए तरस रहे हैं. पीने के पानी का संकट कुछ इस कदर हावी हो चुका है कि इन इलाकों में लोग शादी तक करने से कतरा रहे हैं

पेयजल संकट.
author img

By

Published : May 30, 2019, 6:41 PM IST

हमीरपुर: बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में पेयजल संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है. यहां के लोग आज भी 'आदम युग' में जीने को मजबूर हैं. इन्हें पीने के लिए शुद्ध पानी तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. आलम यह है कि अपनी प्यास बुझाने के लिए यहां के लोगों को गांव से कोसों दूर पैदल चलना पड़ता है.

देंखे स्पेशल रिपोर्ट.

जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर केन नदी किनारे बसे छानी, बक्क्षा व भुलसी समेत दर्जनों गांव इस वक्त बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. गांव में कहने को तो एक दो हैंडपंप लगे हैं, लेकिन उनसे निकलने वाला पानी पीने लायक नहीं है. यहां के निवासियों को अपनी और मवेशियों की प्यास बुझाने के लिए ग्रामीण तड़के सुबह उठकर बैल गाड़ियों पर ड्रम लादकर पानी लाते हैं.

यह भी पढ़ें- चंदौली में गंगा पेपर मिल में लगी आग, करोड़ों का सामान जलकर खाक

कई दफा पानी का संकट गांववासियों में विवाद का कारण तक बन जाता है, लेकिन विकास का वादा कर वोट मांगने वाले सियासी लोग चुनाव जीतने के बाद विकास के नाम पर कुछ भी नहीं करते. बढ़ती उम्र के साथ रेखा देवी को अब नदी से पानी ले जाने में दिक्कत होती है. वे बताती हैं कि हालात इतने बदतर हो चले हैं कि लोग अपनी बेटी का विवाह केन नदी किनारे बसे इन गांवों में करने से कतराते हैं. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि देश ने कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन बुंदेलखंड आज भी विकास से अछूता है. गर्मी में यहां के लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता.

यह भी पढ़ें- बाराबंकी जहरीली शराब कांड: दूसरे दिन भी मौतों का सिलसिला जारी, 23 हुई संख्या

पेयजल की किल्लत यहां के लोगों की तकदीर का हिस्सा बन चुका है. वादे तो तमाम होते हैं लेकिन यहां की जमीं आज भी प्यासी ही है. वादों से प्यास नहीं बुझती. देखना है कि वादों का पानी लोगों के लबों तक कब पहुंच पाता है.

हमीरपुर: बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में पेयजल संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है. यहां के लोग आज भी 'आदम युग' में जीने को मजबूर हैं. इन्हें पीने के लिए शुद्ध पानी तक उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. आलम यह है कि अपनी प्यास बुझाने के लिए यहां के लोगों को गांव से कोसों दूर पैदल चलना पड़ता है.

देंखे स्पेशल रिपोर्ट.

जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर केन नदी किनारे बसे छानी, बक्क्षा व भुलसी समेत दर्जनों गांव इस वक्त बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. गांव में कहने को तो एक दो हैंडपंप लगे हैं, लेकिन उनसे निकलने वाला पानी पीने लायक नहीं है. यहां के निवासियों को अपनी और मवेशियों की प्यास बुझाने के लिए ग्रामीण तड़के सुबह उठकर बैल गाड़ियों पर ड्रम लादकर पानी लाते हैं.

यह भी पढ़ें- चंदौली में गंगा पेपर मिल में लगी आग, करोड़ों का सामान जलकर खाक

कई दफा पानी का संकट गांववासियों में विवाद का कारण तक बन जाता है, लेकिन विकास का वादा कर वोट मांगने वाले सियासी लोग चुनाव जीतने के बाद विकास के नाम पर कुछ भी नहीं करते. बढ़ती उम्र के साथ रेखा देवी को अब नदी से पानी ले जाने में दिक्कत होती है. वे बताती हैं कि हालात इतने बदतर हो चले हैं कि लोग अपनी बेटी का विवाह केन नदी किनारे बसे इन गांवों में करने से कतराते हैं. वहीं ग्रामीणों का कहना है कि देश ने कितनी भी तरक्की क्यों न कर ली हो, लेकिन बुंदेलखंड आज भी विकास से अछूता है. गर्मी में यहां के लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता.

यह भी पढ़ें- बाराबंकी जहरीली शराब कांड: दूसरे दिन भी मौतों का सिलसिला जारी, 23 हुई संख्या

पेयजल की किल्लत यहां के लोगों की तकदीर का हिस्सा बन चुका है. वादे तो तमाम होते हैं लेकिन यहां की जमीं आज भी प्यासी ही है. वादों से प्यास नहीं बुझती. देखना है कि वादों का पानी लोगों के लबों तक कब पहुंच पाता है.

Intro:पेयजल संकट ने धारण किया विकराल रूप, लोगों में मची त्राहि-त्राहि

हमीरपुर। बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में पेयजल संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है। यहां के लोग आज भी "आदम युग" में जी रहे हैं। उन्हें पीने के लिए शुद्ध पानी तक नहीं मयस्सर हो पा रहा है। अपनी प्यास बुझाने के लिए मजबूरी में यहां के लोगों को कई किलोमीटर दूर नदी का गंदा बदबूदार व प्रदूषित पानी बैल गाड़ियों से लाना पड़ता है। भूगर्भ जल खारा होने व पेयजल के लिए सरकारों द्वारा चलाई गई योजनाएं सिर्फ कागजों पर ही सीमित रह गई जिस कारण यहां के लोगों का जीवन नर्क से बदतर है। अभी तक हम सभी यह सुनते आए हैं कि अगला विश्वयुद्ध पानी के लिए होगा लेकिन आप यहां पर पानी के लिए विश्व युद्ध तो नहीं पानी के लिए आपस में युद्ध होता तो देख सकते हैं।


Body:जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर केन नदी किनारे बसे छानी , बक्क्षा व भुलसी समेत दर्जनों गांव इस वक्त बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। गांव में कहने को तो एक दो हैंडपंप लगे हैं लेकिन उनसे निकलने वाला पानी पीने लायक नहीं है जिस कारण यहां के निवासियों को अपनी और अपने मवेशियों की प्यास बुझाने के लिए गांव से दो-तीन किलोमीटर दूर बहने वाली केन नदी से पानी लाना पड़ता है। केन नदी से पानी लाने के लिए ग्रामीण तड़के सुबह उठकर बैल गाड़ियों पर ड्रम लादकर पानी लाते हैं। भुलसी गांव निवासी प्रेम प्रताप कहते हैं कि देश ने कितनी भी तरक्की क्यों ना कर ली हो बुंदेलखंड अब भी विकास से अछूता ही है। गर्मी में यहां लोगों को पीने के लिए पानी नहीं मिलता जिस कारण गांव के लोगों को नदी से पानी लेने जाना पड़ता है। वे कहते हैं कि जब चुनाव आता है तब नेता आकर बड़े बड़े वादे करते हैं और चले जाते हैं। आज तक विकास के नाम पर कुछ भी नहीं हुआ। वहीं सुबह- सुबह पानी लाकर अपने परिवार की प्यास बुझाने वाली रेखा देवी बताती हैं कि बढ़ती उम्र के साथ अब नदी से पानी लेने जाने में दिक्कत होती है। वे बताती हैं कि हालात इतने बदतर हो चले हैं कि लोग अब अपनी बेटी का विवाह केन नदी किनारे बसे इन गांवों में करने से कतराते हैं।


Conclusion:वहीं मुख्य विकास अधिकारी राम कुमार सिंह कहते हैं कि गर्मी की शुरुआत से ही जिला प्रशासन जल संरक्षण और जल की उपलब्धता को लेकर सक्रिय हो गया था। केन नदी किनारे बसे छानी, बक्क्षा व भुलसी गांव में पानी तो है मगर खारा है। जिसकी वजह से दिक्कत है। पाइप पेयजल योजना के तहत इन गांवों में पानी मुहैया कराने की योजना पर काम चल रहा है। फिलहाल जल संकट को देखते हुए जहां पेयजल की उपलब्धता नहीं है वहां वैकल्पिक तौर पर टैंकरों के माध्यम से पानी उपलब्ध कराया जा रहा है।


________________________________________________

नोट : पहली बाइट प्रेम प्रकाश की, दूसरी बाइट रेखा देवी की व तीसरी बाइट मुख्य विकास अधिकारी रामकुमार सिंह की है।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.