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बेलासी देबी ने विश्व में दिलाई टेराकोटा औरंगाबाद को पहचान

गोरखपुर की बेलासी देबी वह महिला हैं, जिन्होंने टेराकोटा औरंगाबाद को विश्व में पहचान दिलाई. उनके सहयोग से पति, पुत्रों और ससुर ने पुरस्कार जीते. यही नहीं भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनकी कला को सराह चुके हैं. आइये जानते हैं अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बेलासी देबी की कहानी...

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पीढ़ियों में भी कला को पहुंचा रही बेलासी देवी
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Published : Mar 16, 2020, 8:50 AM IST

गोरखपुर: कहते हैं कि हर कामयाब व्यक्ति के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है. कुछ ऐसी ही कहानी बेलासी देबी की है. बेलासी देबी की सहभागिता से पति और पुत्र ने 3 स्टेट अवार्ड जीते हैं. वहीं ससुर को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनकी कला को सराह चुके हैं. बेलासी देबी ने विश्व पटल पर टेराकोटा औरंगाबाद का नाम रोशन करने में विशेष योगदान दिया है.

पीढ़ियों में भी कला को पहुंचा रही बेलासी देवी.

बेलासी देबी को पहली बार मिला अटल जी से मिलने का सौभाग्य
बेलासी देबी को अटल जी से मिलने का सौभाग्य दिल्ली और ग्वालियर में प्राप्त हुआ. उनके हुनर की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी प्रशंसा की थी. आपको जानकर हैरत जरूर होगी, लेकिन यही सच्चाई है कि बेलासी देबी के सहयोग से उनके परिवार को इतना बल मिला कि उनके ससुर राष्ट्रीय पुरस्कार और पति सहित दो पुत्र राज्य पुरस्कार से नवाजे गए. आज वृद्धावस्था में भी देश का नाम रोशन करने का जुनून रखती हैं. उसको साकार करने के लिए आज भी कुछ खास करने की जद्दोजहद करती हैं.

मिट्टी को आकार देकर जीविकोपार्जन करती थीं बेलासी देबी
जनपद के कूड़ाघाट के सिंघड़िया निवासी स्वर्गीय रामलक्षन प्रजापति की पुत्री बेलासी देबी का विवाह बाल्य अवस्था वर्ष 1965 में जनपद के औरंगाबाद निवासी रामचन्द्र प्रजापति से हुआ. 1970 में दूसरी शादी के दौरान औरंगाबाद पहुंचीं. कुछ दिनों में घर गृहस्थी संभालने लगीं. उनका पूरा परिवार मिट्टी को आकार देकर जीविकोपार्जन करता है. बेलासी देवी धीरे-धीरे शिल्पी का हुनर सीख कर पति का सहयोग करने लगीं. इससे पहले मायके में शिल्पी कला से इतर थीं.

बेलासी के पति को औरंगाबाद में मिला पहला पुरस्कार
रामचन्द्र बताते है कि पत्नी के सहयोग से बल और आत्मविश्वास दोनों मिला. मैं खुलकर अपनी पुस्तैनी कला की इबारत लिखने के दरमियां पत्नी का साथ कदम दर कदम मिला तो नक्काशी में निखार आने लगा. उन्होंने अपने हुनर से मिट्टी से लव-कुश के घोड़ा का रूप दिया. इसके लिए उनको अप्रैल 1979 में तत्कालीन गवर्नर और मुख्यमंत्री रामनरेश यादव द्वारा राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया. बस यहीं से बुलन्दियां छूने का सिलसिला शुरू हुआ और चलता रहा.

बेलासी देबी के ससुर को 1980 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला
ससुर को 1980 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने से हौसला बढ़ता गया. दुनिया को अपने हुनर का लोहा मनवाने के लिए उनका परिवार और भी संघर्ष करने लगा. बेलासी देबी के पति रामचन्द्र प्रजापति बताते हैं कि उनके पिता स्वर्गीय श्याम देव प्रजापति को 1980 में राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो हौसला और भी बुलन्द हुआ.

पीढ़ियों में भी कला को पहुंचा रहीं बेलासी देवी
कुम्हारी कला को संजोए रखने के लिए अपनी पुस्तैनी कला को अगली पीढ़ियों में पिरोने का ठान लिया है. उनके तीन बेटे हैं, सबको कुम्हारी कला सिखाई. बच्चे बड़े होकर कुम्हारगिरी में परिपूर्ण हुए और कलाकृतियों पर अपना हुनर उकेरने लगे. मझले बेटे पन्ने लाल को 7 अप्रैल 2005 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया. वहीं सबसे छोटे बेटे अखिलेश चन्द्र प्रजापति को अगस्त 2016 में मुख्यमंत्री अखिलेश द्वारा स्टेट अवार्ड से नवाजा गया. अपने हुनर की बदौलत उनके परिवार ने कई पुरस्कार जीते हैं.

पति ने कहा बेलासी देबी की बदौलत मिले कई पुरस्कार
पति रामचन्द्र प्रजापति और पुत्र अखिलेश चन्द्र प्रजापति और पन्ने लाल प्रजापति ने कहा कि बेलासी देबी के सहयोग, उनके प्रोत्साहन और आत्मविश्वास ने हमारे परिवार को नई दिशा दी है. इनकी बदौलत तीन स्टेट और एक नेशनल पुरस्कार जीत कर देश का नाम रोशन करने का अवसर मिला.

ये भी पढ़ें: वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस संग दिखा होली का रंग

मेरी आज भी हसरत है कि परिवार के हाथों से निर्मित कलाकृतियों को पूरी दुनिया पसंद करे और उसकी कद्रदान बने. मेरा गांव और देश का नाम विश्व पटल पर जुगनू की तरह टिमटिमाता रहे.
-बेलासी देबी, शिल्पकार

गोरखपुर: कहते हैं कि हर कामयाब व्यक्ति के पीछे किसी न किसी महिला का हाथ होता है. कुछ ऐसी ही कहानी बेलासी देबी की है. बेलासी देबी की सहभागिता से पति और पुत्र ने 3 स्टेट अवार्ड जीते हैं. वहीं ससुर को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला है. भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनकी कला को सराह चुके हैं. बेलासी देबी ने विश्व पटल पर टेराकोटा औरंगाबाद का नाम रोशन करने में विशेष योगदान दिया है.

पीढ़ियों में भी कला को पहुंचा रही बेलासी देवी.

बेलासी देबी को पहली बार मिला अटल जी से मिलने का सौभाग्य
बेलासी देबी को अटल जी से मिलने का सौभाग्य दिल्ली और ग्वालियर में प्राप्त हुआ. उनके हुनर की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी प्रशंसा की थी. आपको जानकर हैरत जरूर होगी, लेकिन यही सच्चाई है कि बेलासी देबी के सहयोग से उनके परिवार को इतना बल मिला कि उनके ससुर राष्ट्रीय पुरस्कार और पति सहित दो पुत्र राज्य पुरस्कार से नवाजे गए. आज वृद्धावस्था में भी देश का नाम रोशन करने का जुनून रखती हैं. उसको साकार करने के लिए आज भी कुछ खास करने की जद्दोजहद करती हैं.

मिट्टी को आकार देकर जीविकोपार्जन करती थीं बेलासी देबी
जनपद के कूड़ाघाट के सिंघड़िया निवासी स्वर्गीय रामलक्षन प्रजापति की पुत्री बेलासी देबी का विवाह बाल्य अवस्था वर्ष 1965 में जनपद के औरंगाबाद निवासी रामचन्द्र प्रजापति से हुआ. 1970 में दूसरी शादी के दौरान औरंगाबाद पहुंचीं. कुछ दिनों में घर गृहस्थी संभालने लगीं. उनका पूरा परिवार मिट्टी को आकार देकर जीविकोपार्जन करता है. बेलासी देवी धीरे-धीरे शिल्पी का हुनर सीख कर पति का सहयोग करने लगीं. इससे पहले मायके में शिल्पी कला से इतर थीं.

बेलासी के पति को औरंगाबाद में मिला पहला पुरस्कार
रामचन्द्र बताते है कि पत्नी के सहयोग से बल और आत्मविश्वास दोनों मिला. मैं खुलकर अपनी पुस्तैनी कला की इबारत लिखने के दरमियां पत्नी का साथ कदम दर कदम मिला तो नक्काशी में निखार आने लगा. उन्होंने अपने हुनर से मिट्टी से लव-कुश के घोड़ा का रूप दिया. इसके लिए उनको अप्रैल 1979 में तत्कालीन गवर्नर और मुख्यमंत्री रामनरेश यादव द्वारा राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया. बस यहीं से बुलन्दियां छूने का सिलसिला शुरू हुआ और चलता रहा.

बेलासी देबी के ससुर को 1980 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिला
ससुर को 1980 में राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने से हौसला बढ़ता गया. दुनिया को अपने हुनर का लोहा मनवाने के लिए उनका परिवार और भी संघर्ष करने लगा. बेलासी देबी के पति रामचन्द्र प्रजापति बताते हैं कि उनके पिता स्वर्गीय श्याम देव प्रजापति को 1980 में राष्ट्रपति नीलम संजीवा रेड्डी, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों से राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो हौसला और भी बुलन्द हुआ.

पीढ़ियों में भी कला को पहुंचा रहीं बेलासी देवी
कुम्हारी कला को संजोए रखने के लिए अपनी पुस्तैनी कला को अगली पीढ़ियों में पिरोने का ठान लिया है. उनके तीन बेटे हैं, सबको कुम्हारी कला सिखाई. बच्चे बड़े होकर कुम्हारगिरी में परिपूर्ण हुए और कलाकृतियों पर अपना हुनर उकेरने लगे. मझले बेटे पन्ने लाल को 7 अप्रैल 2005 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया. वहीं सबसे छोटे बेटे अखिलेश चन्द्र प्रजापति को अगस्त 2016 में मुख्यमंत्री अखिलेश द्वारा स्टेट अवार्ड से नवाजा गया. अपने हुनर की बदौलत उनके परिवार ने कई पुरस्कार जीते हैं.

पति ने कहा बेलासी देबी की बदौलत मिले कई पुरस्कार
पति रामचन्द्र प्रजापति और पुत्र अखिलेश चन्द्र प्रजापति और पन्ने लाल प्रजापति ने कहा कि बेलासी देबी के सहयोग, उनके प्रोत्साहन और आत्मविश्वास ने हमारे परिवार को नई दिशा दी है. इनकी बदौलत तीन स्टेट और एक नेशनल पुरस्कार जीत कर देश का नाम रोशन करने का अवसर मिला.

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मेरी आज भी हसरत है कि परिवार के हाथों से निर्मित कलाकृतियों को पूरी दुनिया पसंद करे और उसकी कद्रदान बने. मेरा गांव और देश का नाम विश्व पटल पर जुगनू की तरह टिमटिमाता रहे.
-बेलासी देबी, शिल्पकार

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