गोरखपुर: इस बार की दिवाली में गोरखपुर के तमाम घरों में मिट्टी के नहीं, बल्कि गाय के गोबर से बने दीपक रोशनी फैलायेंगे. इतना ही नहीं, गोबर से ही बने लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां भी दीपोत्सव के इस पूजन पर्व में घरों तक पहुंचेंगी. जिला उद्योग केंद्र और चेम्बर ऑफ इंडस्ट्री के सहयोग से स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इन दीयों को तैयार कर रही हैं.
गोबर से बने दीयों को बेचने के लिए बाजार भी तैयार कर लिये गये हैं. इसके अलावा तमाम सरकारी कार्यालयों, वीआईपी और राजनैतिक लोगों के घरों से भी इसकी डिमांड आ चुकी है. गाय के गोबर से दीपक को बनाने के लिए समूह की कुल 50 महिलायें जुटी हैं. बताया जा रहा है कि इन दीयों को चेम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज की तरफ से सीएम योगी को भी भेंट किया जाएगा.
गोबर से बनी मूर्तियां इको फ्रेंडली
गाय के गोबर से बनने वाली मूर्तियां या फिर दीये पूरी तरह से इको फ्रेंडली हैं. इस तरह से प्रधानमंत्री मोदी के लोकल फॉर वोकल के अभियान को भी बल मिल रहा है. चाइनीज सामानों का बहिष्कार कर लोग स्वदेशी का प्रयोग करने की ओर पहल करेंगे. इस कार्य में जिला उद्योग केंद्र ने स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रोत्साहित किया है. जिले के उद्योग भवन में महिलायें बेहत खूबसूरत दीये, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, माता लक्ष्मी के पांव, कछुआ दीपक जैसे आकर्षक उत्पाद तैयार कर रही हैं.
स्वयं सहायता समूह की सदस्य मीनाक्षी राय कहती हैं कि हिन्दू धर्म के सभी मांगलिक कार्यक्रम में गाय के गोबर का विशेष महत्व होता है, इसलिए पूजा में शुद्धता को कायम रखने के लिए नई तकनीक का उपयोग कर मूर्तियां बनाई जा रही हैं. ये पूरी तरह से एंटी रेडिएशन का भी काम करेंगी. वहीं चेम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष एसके अग्रवाल कहते हैं कि पिछले तीन साल से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास किया जा रहा है, जो सफल भी हो रहा है. गाय के गोबर से बनाई जा रही मूर्तियों को देखने की इच्छा सीएम योगी की भी है. सीएम योगी के आगमन पर उन्हें भी दीयों को भेंट किया जायेगा.
महिलाओं के लिये रोजगार
अब इस कार्य के जरिये भी महिलाओं को स्वावलंबी बनाने का काम हो रहा है. ये दीये ऊष्मा रोधक होने के साथ रेडिएशन को कम करते हैं. ऊर्जा को अपनी ओर खींचते हैं. गोबर के एलीमेंट ऑक्सीजन को अपनी ओर खींचते हैं. इसलिए ये काफी लाभकारी हैं. महिलाओं को गाय से जोड़ दें तो महिला गोबर से उत्पाद तैयार कर स्वावलंबी बनने के साथ अर्थव्यवस्था से जुड़ सकेंगी.
ऐसे बनाई जाती हैं गोबर से मूर्तियां
इन मूर्तियों को बनाने के लिये सूखे और गीले दोनों प्रकार के गोबर का मिश्रण 40 और 60 के अनुपात में तैयार जाता है. इसके बाद दीपक, लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां या फिर मनपसंद सांचे में गोबर के मिश्रण को भर दिया जाता है. जब ये सूख जाता है तो फिर सांचे से अलग कर दिया जाता है. इसके बाद मूर्तियां अपना आकार ले लेती हैं, लेकिन इन्हें आकर्षक बनाने के लिए रंगों का भी प्रयोग किया जाता है.
रंगों को आकर्षक और बेहतर दिखने के लिये हुनरमंद महिलाएं ब्रश और पेंट का सहयोग लेती हैं. इन इको फ्रेंडली दीयों की कीमत भी ज्यादा नहीं है. दीपक की कीमत 5 रुपये से लेकर 21 रुपये तक और लक्ष्मी गणेश की मूर्तियों की कीमत 51 रुपये से लेकर 200 रुपये तक निर्धारित की गई है. खास बात यह है कि दीपक जलाने के बाद इसे खाद के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है.