गोरखपुरः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 सिर पर है, और आज हम अपने इस सीरीज में चर्चा करेंगे गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा की. ये क्षेत्र साल 2007 तक कोड़ीराम में शामिल था. साल 2012 में परिसीमन के बाद से इसे गोरखपुर ग्रामीण नाम दिया गया. इसमें शहर विधान सभा का वो हिस्सा भी शामिल हुआ, जो मुस्लिम बाहुल्य और व्यापारियों का था. परिसीमन के बाद हुए दोनों विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी यहां से चुनाव जीतने में कामयाब रही है.
वर्तमान में इस क्षेत्र से विपिन सिंह विधायक हैं. उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक विजय बहादुर यादव को मात्र 4 हजार वोटों से 2017 के चुनाव में पराजित करने में सफलता हासिल की थी. हालांकि विजय बहादुर यादव बीजेपी से दो बार विधायक रह चुके थे. लेकिन 2017 में उन्होंने एसपी का दामन थाम लिया. इस विधानसभा में वर्तमान में कुल 4,06,028 मतदाता हैं. जिसमें पुरुष 2,20,428, महिला 1,85,600 हैं. चुनाव में यहां समस्याएं और मुद्दों गौंड हो जाते हैं. जातियों को अपने पाले में करने की जुगत खूब होती है. निषाद और दलित वोटों पर ज्यादा वार होता है. बांध को बचाना और उसका रख रखाव भी बड़ा ही चुनौती पूर्ण कार्य है.
जातिगत आंकड़े की बात करें तो दलित-निषाद की कुल संख्या करीब 1 लाख 55 हजार है. मुस्लिम मतदाता यहां एक लाख 30 हजार के करीब हैं. ब्राह्मण 40 हजार, व्यापारी 40 हजार, क्षत्रिय मात्र 5 हजार. बाकि अन्य छोटी जातियों की संख्या यहां 30 से 35 हजार हैं (ये आकंड़ें अनुमानित हैं). 2017 के चुनाव में बीजेपी के विपिन सिंह को कुल 83,686 वोट मिले. उन्होंने एसपी के विजय बहादुर यादव को 4 हजार वोट से हराया. जिन्हें 79,276 वोट मिले. निषाद पार्टी के डॉक्टर संजय निषाद भी 34,901 वोट हासिल किए. बीएसपी यहां चौथे स्थान पर रही और उसके प्रत्याशी राजेश पाण्डेय मात्र 30,097 वोट ही मिले. ये माना जाता है कि अगर निषाद पार्टी यहां चुनाव नहीं लड़ती तो एसपी इस सीट को जीत जाती.
विधायक विपिन सिंह के व्यक्तिगत रिकॉर्ड की बात करें, तो साल 2017 के चुनाव के दस्तावेज के हिसाब से इनकी कुल संपत्ति 4 करोड़ थी. इनकी शिक्षा स्नातक है. इनके ऊपर एक आपराधिक मामला है. ये 6 लाख के बकायेदार भी थे. इनके पिता अम्बिका सिंह भी इस क्षेत्र से विधायक रहे हैं, तब वो बीएसपी से चुने गए थे. विपिन सिंह अपने निधि या प्रयास से बनने वाली किसी भी सड़क या परियोजना का खुद शिलान्यास और लोकार्पण नहीं करते. वो इसके लिए स्थानीय किसी बुजुर्ग, वरिष्ठ नागरिक और बच्चों को भी मौका देते हैं.