गोरखपुर: कोरोना महामारी के चलते 2 वर्ष बाद बहरामपुर के बाले मियां मैदान पर हजरत सैयद सालार मसूद गाजी मियां रहमतुल्लाह अलैह बाले मियां के लग्न की रस्म अदा की गई. बाबा के अस्ताने पर गुस्ल संदल और परंपरागत चादर पोषी की गई. कुरान और फातिया ख्वानी भी हुई. हकीकतमंदो की ओर से चादर गागर पेश की गई. हजारों की संख्या में मेले में सभी धर्मों के लोगों ने शिरकत किया.
एक माह तक चलने वाले मेले अकीददमंदो ने लहबर और कनूरी भी पेश किया. ऐसी मान्यता है कि बाबा के स्थान से कोई भी फरियादी खाली हाथ नहीं जाता, जिनकी भी मुरादे पूरी होती है वह बाबा को इन सब चीजों का चढ़ावा चढ़ाते हैं. परंपरा के अनुसार पलंग पीढ़ी देर रात उठती है, जिसमें हकीकत मंद नाचते गाते स्थान पर पहुंचते हैं. लग्न की रस्म पूर्व की जाती है, जिन लोगों की मन्नत पूरी हो जाती है वह मन्नत उतारते हैं. चांदी की आंख और चांदी का पंजा पेश किया जाता है.
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बता दें कि गोरखपुर ही नहीं आसपास के जिलों और अन्य प्रदेशों से भी बड़ी संख्या में हिंदू मुस्लिम और अन्य धर्मों के लोग भी यहां आकर अपनी मन्नतों को पूरी करते हैं. यही कारण है कि इस मेले को पूर्वांचल के मुख्य मेले के रूप में गंगा जमुनी तहजीब के रूप में देखा जाता है और इसे सामाजिक, सांस्कृतिक, समरसता का केंद्र भी कहा जाता है. मान्यता के अनुसार हिंदू धर्म से जुड़े लोग यहां पर शादी होने के बाद बाबा के दर्शन, बच्चों के मुंडन सहित अन्य रस्मों की अदायगी भी करते हैं.
वहीं, राबिया हाशमी बताती है कि बाले मियां के मेले को पूर्वांचल की गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल माना जाता है. हर साल लग्न की रस्म पलंग पीढ़ी के रूप में मनाई जाती है. हिंदू मुसलमान या किसी भी धर्म को मानने वाला यहां सब बराबर है. यही कारण है कि आप की दरगाह से हर इंसान को फैज मिलता है. दरगाह में भी सबको बराबर सम्मान मिलता है. आपका मजार शरीफ बहराईच शरीफ में है.
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