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गोण्डा: माइनर बनने के 18 साल बाद भी खेतों तक नहीं पहुंचा पानी

उत्तर प्रदेश के गोण्डा में 18 वर्ष पहले माइनर बनने के बाद भी किसान पानी के लिए तरस रहे हैं. किसानों का कहना है कि कई बार शिकायत करने के बाद भी प्रशासन हमारी सुध नहीं ले रहा है.

गोण्डा के किसान, पानी को परेशान..
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Published : Sep 10, 2019, 4:04 AM IST

गोण्डा: प्रशासन की उदासीनता के चलते माइनर खोदे जाने के 18 वर्ष बाद भी खेतों तक पानी नहीं पहुंचा. आपको बताते चलें कि वर्ष 2001 में ग्राम पंचायत जेठपुरवा पुरवा से होते हुए जगदीशपुर बल्दी माइनर का निर्माण हुआ था, लेकिन करीब 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस माइनर में पानी नहीं आया.

पानी के लिए परेशान हैं किसान.

इसे भी पढ़ें - ढाई साल में भी पूरी नहीं हो पाई एरच बांध परियोजना में घोटाले की जांच

पानी के लिए तरस रहे किसान
गोण्डा जिले के कई गांवों के माइनरों का यही हाल है. जनपद के रुपईडीह की माइनर में पानी ही नहीं है, जबकि उसकी पुनर्स्थापना के लिए इस वर्ष 25 लाख रुपये का भुगतान हो चुका है. बावजूद इसके अब तक जिले के किसान पानी के लिए तरस रहे हैं.

निजी संसाधनों से कर रहे सिचाई
किसानों ने बताया कि वर्ष 2001 में जगदीशपुर बल्दी माइनर की खुदाई हुई थी. इसके बाद भी पानी नहीं छोड़ा गया. धान रोपाई का मौसम चल रहा है, ऐसे में किसान निजी संसाधनों के माध्यम से धान की रोपाई कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें - पूर्व सिंचाई मंत्री का छलका दर्द, कहा-'पार्टी मां होती है और मां का निर्णय सही होता है'

प्रशासन नहीं ले रहा सुध
किसानों ने बताया कि इस संबंध में उन्होंने प्रशासन से शिकायत भी की, लेकिन कोई भी उनकी सुध नहीं ले रहा है. उनका कहना है कि सरकार ने उपजाऊ जमीन को खोद तो डाला पर जिस उद्देश्य से यह बनाई गई थी, उसकी पूर्ति नहीं हो सकी.

लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी माइनर में गैप
पुनर्स्थापना के नाम पर लाखों खर्च होने के बाद भी किसानों के खेत तक पानी नहीं पहुंचा. बीते 4 माह पूर्व पुनर्स्थापना के नाम पर करीब 30 लाख रुपये डकार लिए गए. फिर भी माइनर में जगह-जगह गैप है.

अब 18 वर्षो के बीत जाने के बाद भी माइनरों में गैप होना प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है. हर वर्ष इन माइनरों की साफ-सफाई के लिए लाखों रुपये का बजट आता है, लेकिन धरातल पर कुछ और ही नजारा दिखता है.

गोण्डा: प्रशासन की उदासीनता के चलते माइनर खोदे जाने के 18 वर्ष बाद भी खेतों तक पानी नहीं पहुंचा. आपको बताते चलें कि वर्ष 2001 में ग्राम पंचायत जेठपुरवा पुरवा से होते हुए जगदीशपुर बल्दी माइनर का निर्माण हुआ था, लेकिन करीब 18 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस माइनर में पानी नहीं आया.

पानी के लिए परेशान हैं किसान.

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पानी के लिए तरस रहे किसान
गोण्डा जिले के कई गांवों के माइनरों का यही हाल है. जनपद के रुपईडीह की माइनर में पानी ही नहीं है, जबकि उसकी पुनर्स्थापना के लिए इस वर्ष 25 लाख रुपये का भुगतान हो चुका है. बावजूद इसके अब तक जिले के किसान पानी के लिए तरस रहे हैं.

निजी संसाधनों से कर रहे सिचाई
किसानों ने बताया कि वर्ष 2001 में जगदीशपुर बल्दी माइनर की खुदाई हुई थी. इसके बाद भी पानी नहीं छोड़ा गया. धान रोपाई का मौसम चल रहा है, ऐसे में किसान निजी संसाधनों के माध्यम से धान की रोपाई कर रहे हैं.

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प्रशासन नहीं ले रहा सुध
किसानों ने बताया कि इस संबंध में उन्होंने प्रशासन से शिकायत भी की, लेकिन कोई भी उनकी सुध नहीं ले रहा है. उनका कहना है कि सरकार ने उपजाऊ जमीन को खोद तो डाला पर जिस उद्देश्य से यह बनाई गई थी, उसकी पूर्ति नहीं हो सकी.

लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी माइनर में गैप
पुनर्स्थापना के नाम पर लाखों खर्च होने के बाद भी किसानों के खेत तक पानी नहीं पहुंचा. बीते 4 माह पूर्व पुनर्स्थापना के नाम पर करीब 30 लाख रुपये डकार लिए गए. फिर भी माइनर में जगह-जगह गैप है.

अब 18 वर्षो के बीत जाने के बाद भी माइनरों में गैप होना प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है. हर वर्ष इन माइनरों की साफ-सफाई के लिए लाखों रुपये का बजट आता है, लेकिन धरातल पर कुछ और ही नजारा दिखता है.

Intro:प्रशासन की उदासीनता के चलते माइनर खोदे जाने के 18 वर्ष बाद भी खेतों तक पानी नहीं पहुंचा। वर्ष 2001 में ग्राम पंचायत जेठपुरवा पुरवा से होते हुए जगदीशपुर बल्दी माइनर का निर्माण हुआ था। करीब 18 वर्ष बीत गए अभी तक इस माइनर में पानी नहीं आया। यह एक ही नहीं जिले के कई गांवो के माइनरो का यही हाल है, जनपद में कई जगहों पर माइनरें अधूरी पड़ी है। गोण्डा के रुपईडीह की माइनर में पानी ही नहीं है जबकि उसकी पुनर्स्थापना के लिए इस वर्ष 25 लाख रुपये का भुगतान हो चुका है। करोड़ों रुपए की लागत से बनाई गई इन माइनरो से खेतों को कब पानी मिलेगा यह एक यक्ष प्रश्न बन गया है।


Body:वर्ष 2001 में खोदी गई जगदीशपुर बल्दी माइनर का 18 वर्ष बाद इस वर्ष इसमें सफाई कराई गई। पानी के लिए गूल भी बनाए गए हैं फिर भी कई जगहों पर अधूरी होने के कारण इनमें पानी नहीं छोड़ा गया। किसानों को मौसम भी दगा दे गया धान रोपाई का पीक सीजन चल रहा है। ऐसे में किसान अपने निजी संसाधनों के बल पर किसी तरह धान की रोपाई कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि इन माइनरों में खेत भी चले गए और अब सिंचाई के लिए उन्हें निजी संसाधन का उपयोग करना पड़ता है किसानों द्वारा इसकी शिकायत शासन प्रशासन से लेकर मुख्यमंत्री तक के पोर्टल पर भी की गई है फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुई। किसान अब इस माइनर से पूरी तरह निराश हो चुके हैं उनका कहना है कि सरकार ने उपजाऊ जमीन को खोद तो डाला पर जिस उद्देश्य यह बनाई गई थी उसकी पूर्ति नहीं हो सकी। माइनर का गैप पूरा नहीं, पुनर्स्थापना के नाम पर लाखों खर्च होने के बाद भी किसानों के खेत तक नहीं पहुंचा पानी। बता दें कि गत 4 माह पूर्व पुनर्स्थापना के नाम पर करीब ₹30 लाख रुपए डकार लिए गए फिर भी माइनर में जगह-जगह गैप है। अब 18 वर्षो के बीत जाने के बाद भी माइनरों में गैप होना यह प्रशासन की लापरवाही को दर्शाता है। हर वर्ष इन माइनरों की साफ सफाई के लिए लाखों रुपये का बजट आता है लेकिन धरातल पर कुछ और ही नजारा दिखता है।

Conclusion:क्या होते हैं माइनर

नहर एक मानव निर्मित संरचना है जो नदियों के पानी को किसी दूसरे नदी या सिचाई के लिए बनाई जाती है। सिचाई के लिए जैसे ही नहर आगे बढ़ती है। वह पेड़ की शाखाओं की तरह अलग होती जाती है। यह नहर की शाखाएं होती है जो खेतो तक पहुचाई जाती है। इनके द्वारा नहर से दूर खेतो तक पानी को पहुचाया जाता है। जिससे किसान नहर के पानी को प्राप्त कर कृषि करता है।

बाईट- किसान
बाईट2- किसान
बाईट3- आशीष कुमार( सीडीओ गोण्डा)
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