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उपन्यास में उकेरा फिरोजाबाद के चूड़ी श्रमिकों का दर्द - फिरोजाबाद की न्यूज हिंदी में

फिरोजााद में सोमवार को एक उपन्यास का विमोचन किया गया. इस दौरान उपन्यास की खासियत पर प्रकाश डाला गया.

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Published : Apr 3, 2023, 8:53 PM IST

फिरोजाबादः कथाकार पुन्नी सिंह के नए उपन्यास ‘साज कलाई का, राग जिन्दगी का’ का शिकोहाबाद के एक स्कूल में रविवार को लोकार्पण हुआ. आलोचक वीरेन्द्र यादव ने इस कृति का लोकार्पण किया. इस उपन्यास में उपन्यासकार पुन्नी सिंह ने फ़िरोज़ाबाद की रंग बिरंगी चूड़ियां बनाने वाले मजदूरों के दर्द को उकेरा है. इस कृति में मजदूरों के शोषण की पटकथा लिखी गई है.

शिक्षाविद् राजेंद्र यादव ने यह कहा.

शिक्षाविद राजेन्द्र यादव ने बताया कि फिरोजाबाद जनपद के चूड़ी कामगारों के संघर्ष,उनकी अदम्य जिजीविषा और उद्योगपतियों के शोषण-तन्त्र को बेनकाब करती कथा की अपनी ही विशिष्टता है. उन्होंने कहा कि जब लगभग फिरोजाबाद का चूड़ी व्यवसाय अपनी पहचान निर्मित कर चुका था तब यहां के आम आदमी का चाहे वह बच्चा हो, जवान हो, प्रौढ़ हो या बुजुर्ग हो रोजी-रोटी का मुख्य साधन चूड़ी कारखाने हुआ करते थे. तब उद्योगपति केवल शोषण करना जानते थे.

12 से 14 घंटे काम लेने के बाद भी मजदूरी पूरी नहीं देते थे. हालांकि मजदूर संगठन बन गए थे और मार्क्सवादी लाल झंडे के नीचे उनका अस्तित्व गाहे बगाहे मालिकों के नाक में दम भी कर देता था,लेकिन कुल मिलाकर उनका कोई स्थाई प्रभाव दिखाई नहीं देता था. मालिक जानते थे कि जनता बहुत दिनों तक भूखी-प्यासी नहीं रह सकती है,इसलिए बहुत ज्यादा दिनों तक आन्दोलन चल नहीं पाएगा,और वे फिर अपनी मनमानी शुरु कर सकते हैं. इस उपन्यास में मजदूरों के उस दर्द और आंदोलन को बखूबी बताया गया है. इस दौरान कई विशिष्टजन मौजूद रहे.

ये भी पढ़ेंः अतीक अहमद के पांच गुर्गों की पुलिस को मिली छह घंटे की कस्टडी रिमांड

फिरोजाबादः कथाकार पुन्नी सिंह के नए उपन्यास ‘साज कलाई का, राग जिन्दगी का’ का शिकोहाबाद के एक स्कूल में रविवार को लोकार्पण हुआ. आलोचक वीरेन्द्र यादव ने इस कृति का लोकार्पण किया. इस उपन्यास में उपन्यासकार पुन्नी सिंह ने फ़िरोज़ाबाद की रंग बिरंगी चूड़ियां बनाने वाले मजदूरों के दर्द को उकेरा है. इस कृति में मजदूरों के शोषण की पटकथा लिखी गई है.

शिक्षाविद् राजेंद्र यादव ने यह कहा.

शिक्षाविद राजेन्द्र यादव ने बताया कि फिरोजाबाद जनपद के चूड़ी कामगारों के संघर्ष,उनकी अदम्य जिजीविषा और उद्योगपतियों के शोषण-तन्त्र को बेनकाब करती कथा की अपनी ही विशिष्टता है. उन्होंने कहा कि जब लगभग फिरोजाबाद का चूड़ी व्यवसाय अपनी पहचान निर्मित कर चुका था तब यहां के आम आदमी का चाहे वह बच्चा हो, जवान हो, प्रौढ़ हो या बुजुर्ग हो रोजी-रोटी का मुख्य साधन चूड़ी कारखाने हुआ करते थे. तब उद्योगपति केवल शोषण करना जानते थे.

12 से 14 घंटे काम लेने के बाद भी मजदूरी पूरी नहीं देते थे. हालांकि मजदूर संगठन बन गए थे और मार्क्सवादी लाल झंडे के नीचे उनका अस्तित्व गाहे बगाहे मालिकों के नाक में दम भी कर देता था,लेकिन कुल मिलाकर उनका कोई स्थाई प्रभाव दिखाई नहीं देता था. मालिक जानते थे कि जनता बहुत दिनों तक भूखी-प्यासी नहीं रह सकती है,इसलिए बहुत ज्यादा दिनों तक आन्दोलन चल नहीं पाएगा,और वे फिर अपनी मनमानी शुरु कर सकते हैं. इस उपन्यास में मजदूरों के उस दर्द और आंदोलन को बखूबी बताया गया है. इस दौरान कई विशिष्टजन मौजूद रहे.

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