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फर्रुखाबादः मूर्ति बनाने वालों पर नहीं हो रही लक्ष्मी मेहरबान

दीपावली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घर-घर में तैयारी शुरू हो गई हैं, तो वहीं मिट्टी के दीये बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने भी तेजी पकड़ ली है. माता लक्ष्मी की कृपा मिलना इनके लिए बेहद मुश्किल है. माटी के बढ़ते दामों के कारण लागत बढ़ती जा रही है. जिससे कई कुम्हारों ने तो अपने इस पुश्तैनी धंधे को छोड़कर अन्य शहरों की ओर पलायन कर लिया है.

दीये बनाने वाले कुम्हार.
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Published : Oct 24, 2019, 4:08 PM IST

फर्रुखाबादः दीपावली के अवसर पर हर घर और प्रतिष्ठान में श्री गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां रखकर पूजा की जाती है. इस पर्व का सबसे प्रमुख सामग्री दीया है. जिसे बनाने वाले कुम्हार दिन-रात दीया बनाने में व्यस्त हैं. शहर के सुनहरी मस्जिद सहित विभिन्न गांवों में मिट्टी के दीये और अन्य सामग्री कारीगरों द्वारा बनाई जा रही है. कुम्हार मिट्टी को माता लक्ष्मी का रूप देकर लोगों की आस्था का केंद्र बना देता है. आज उसी कुम्हार को माता लक्ष्मी की कृपा पाना मुश्किल हो गया है. जिसका परिणाम है कि कई कुम्हारों ने अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़कर जीविकोपार्जन के लिए दूसरे शहरों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

अब इतना फायदा नहीं रह गया
मिट्टी से बने आइटम के प्रति लोगों का रूझान कम हो गया है, कुम्हार रामदास ने कहा जिस हिसाब से इसमें मेहनत और पैसा लगता है, उसके सापेक्ष बहुत कम लाभ मिल पाता है. यहीं कारण है कि कुम्हार दीपावली व गर्मियों में ही इस धंधे को करते हैं, साथ ही कई लोगों ने इस पेशे को छोड़ कर अन्य काम शुरू कर दिया.

ईंधन ने भी निकाला कुम्हारों का दम
600 रुपये में मिलती मिट्टी की ट्राली- कुम्हारों को मिट्टी के बरतन बनाने को भी अब मिट्टी तक खरीदनी पड़ती है. ऐसा नहीं है कि केवल मिट्टी की खरीदारी ही कुम्हारों को परेशान किए है. मिट्टी चाक पर चढ़ने के बाद एक रूप तो ले लेती, पर उसको पक्का करने के लिए मिट्टी को पकाया जाता है. पहले तो मिट्टी को पकाने के लिए भट्ठी का ईंधन महंगा नहीं था, पर अब तो ईंधन ने भी कुम्हारों का दम निकाल दिया है.

60 रुपये सैकड़ा बिकते हैं दीये
अपनी चाक पर मिट्टी के बड़े दिए बना रहे कुम्हार कमलेश सिंह ने बताया कि मिट्टी के दियों की अलग-अलग वैरायटी अब उन लोगों ने भी बनानी शुरू कर दी है. मिट्टी के साधारण दिये 60 रुपये सैकड़ा बेची जाती है, जबकि बड़े दीये जिसे सेरवा कहे जाते हैं, वह एक रुपये में एक बिकता है. कुछ आकर्षक डिजाइन के दीये भी अब बनने शुरू हो गए हैं, जिनकी मांग तो ज्यादा है, साथ ही उनकी कीमत भी ज्यादा है.

बाजार में बेचने में आती परेशानी
कुम्हार सुरेश कुमार कहते है कि धनतेरस से लेकर दीपावली के दिन तक तीन दिन वह लोग बाजार में मूर्तियां व दीयों की बिक्री करते हैं. ऐसे में बाजार में जिस किसी भी दुकान के सामने फुटपाथ पर मूर्ति व दीयों की बिक्री करते हैं, तो उनको भी किराया देना पड़ता है. जिसमें दुकानदार 2000 रुपये से 2500 रुपये की वसूली करता है.

फर्रुखाबादः दीपावली के अवसर पर हर घर और प्रतिष्ठान में श्री गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां रखकर पूजा की जाती है. इस पर्व का सबसे प्रमुख सामग्री दीया है. जिसे बनाने वाले कुम्हार दिन-रात दीया बनाने में व्यस्त हैं. शहर के सुनहरी मस्जिद सहित विभिन्न गांवों में मिट्टी के दीये और अन्य सामग्री कारीगरों द्वारा बनाई जा रही है. कुम्हार मिट्टी को माता लक्ष्मी का रूप देकर लोगों की आस्था का केंद्र बना देता है. आज उसी कुम्हार को माता लक्ष्मी की कृपा पाना मुश्किल हो गया है. जिसका परिणाम है कि कई कुम्हारों ने अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़कर जीविकोपार्जन के लिए दूसरे शहरों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट.

अब इतना फायदा नहीं रह गया
मिट्टी से बने आइटम के प्रति लोगों का रूझान कम हो गया है, कुम्हार रामदास ने कहा जिस हिसाब से इसमें मेहनत और पैसा लगता है, उसके सापेक्ष बहुत कम लाभ मिल पाता है. यहीं कारण है कि कुम्हार दीपावली व गर्मियों में ही इस धंधे को करते हैं, साथ ही कई लोगों ने इस पेशे को छोड़ कर अन्य काम शुरू कर दिया.

ईंधन ने भी निकाला कुम्हारों का दम
600 रुपये में मिलती मिट्टी की ट्राली- कुम्हारों को मिट्टी के बरतन बनाने को भी अब मिट्टी तक खरीदनी पड़ती है. ऐसा नहीं है कि केवल मिट्टी की खरीदारी ही कुम्हारों को परेशान किए है. मिट्टी चाक पर चढ़ने के बाद एक रूप तो ले लेती, पर उसको पक्का करने के लिए मिट्टी को पकाया जाता है. पहले तो मिट्टी को पकाने के लिए भट्ठी का ईंधन महंगा नहीं था, पर अब तो ईंधन ने भी कुम्हारों का दम निकाल दिया है.

60 रुपये सैकड़ा बिकते हैं दीये
अपनी चाक पर मिट्टी के बड़े दिए बना रहे कुम्हार कमलेश सिंह ने बताया कि मिट्टी के दियों की अलग-अलग वैरायटी अब उन लोगों ने भी बनानी शुरू कर दी है. मिट्टी के साधारण दिये 60 रुपये सैकड़ा बेची जाती है, जबकि बड़े दीये जिसे सेरवा कहे जाते हैं, वह एक रुपये में एक बिकता है. कुछ आकर्षक डिजाइन के दीये भी अब बनने शुरू हो गए हैं, जिनकी मांग तो ज्यादा है, साथ ही उनकी कीमत भी ज्यादा है.

बाजार में बेचने में आती परेशानी
कुम्हार सुरेश कुमार कहते है कि धनतेरस से लेकर दीपावली के दिन तक तीन दिन वह लोग बाजार में मूर्तियां व दीयों की बिक्री करते हैं. ऐसे में बाजार में जिस किसी भी दुकान के सामने फुटपाथ पर मूर्ति व दीयों की बिक्री करते हैं, तो उनको भी किराया देना पड़ता है. जिसमें दुकानदार 2000 रुपये से 2500 रुपये की वसूली करता है.

Intro:नोट- इस खबर में कुम्हार की बाइट up_fbd_ 01b_diwali_btye_7205401 नाम से हैं। कृपया खबर में जोड़ने का कृष्ट करें।।।

एंकर- फर्रुखाबाद में दीपावली पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए घर-घर में तैयारी जोरों पर शुरू हो गई हैं. तो वहीं मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने भी तेजी पकड़ ली है. दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों ने तैयारियां तो शुरू कर दीं, पर गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति व दिये बनाना अब इतना आसान नहीं रह गया है. माटी के बढ़ते दामों के कारण लागत बढ़ती जा रही है. जिससे कई कुम्हारों ने तो अपना यह पुश्तैनी धंधा छोड़कर अन्य शहरों की ओर पलायन कर लिया है.

Body:वीओ-दीपावली के अवसर पर हर घर व हर दुकान और प्रतिष्ठान में श्री गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां रखकर पूजा की जाती है. इस पर्व का सबसे प्रमुख सामग्री दीया है. जिसे बनाने वाले कुम्हार दिन-रात दीया बनाने में व्यस्त हैं. शहर के सुनहरी मस्जिद सहित विभिन्न गांवों में मिट्टी के दीया और अन्य सामग्री बनाने वाले कारीगरों द्वारा दीया बनाने का काम किया जा रहा है. कुम्हार मिट्टी को माता लक्ष्मी का रूप देकर लोगों की आस्था का केंद्र बना देता है, पर आज उसी कुम्हार पर माता लक्ष्मी की कृपा बामुश्किल हो पा रही है.कुम्हारों को अब गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां और दिये बनाना इतना सहज नहीं रह गया है. दियों में कई प्रकार के आकर्षक वैरायटी व स्टाइलिश मोमबत्तियां आने से दियालियों की बिक्री सिर्फ रस्मो रिवाज तक सीमित होकर रह गई है. जिसका परिणाम है कि कई कुम्हारों ने अपने पुश्तैनी धंधे को छोड़कर जीविकोपार्जन के लिए दूसरे शहरों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है.
अब इतना फायदा नहीं रह गया-कारीगर ने बताया कि शहर में कुम्हारों की तीन चार मोहल्लों में बस्तियां हैं. जहां कुम्हारों के आठ या दस घर हैं, जो इस पेशे से जुड़े हुए हैं, पर इस काम में भी अब इतना फायदा नहीं रह गया, जबकि लागत बहुत ज्यादा है, जिससे कइयों ने इस पेशे को छोड़ कर अन्य काम शुरू कर दिया। इसके अलावा कइयों ने अब सब्जी और टिक्की का ठेला लगाना शुरू कर दिया.
मिट्टी से बने आइटम के प्रति लोगों का रूझान कम- मिट्टी से बने आइटम से लोगों का का रुझान कम हो गया है, जिस हिसाब से इसमें मेहनत और पैसा लगता है उसके सापेक्ष हमें बहुत कम लाभ मिल पाता है. यही कारण है कि हम लोग दीपावली व गर्मियों में ही इस धंधे को करते हैं, बाकी दिनों में अन्य काम करके पेट पालते हैं.
600 रुपये में मिलती मिट्टी की ट्राली- कुम्हारों को मिट्टी के बरतन बनाने को भी अब मिट्टी तक खरीदनी पड़ती है. तालाब होने से जहां एक ओर कुम्हारों को मूर्तियां व दिये बनाने को मिट्टी नहीं खरीदनी पड़ती थी, वहीं अब तालाब पटने से कुम्हारों को मिट्टी की ट्रालियां खरीदनी पड़ती है. ज्ञात हो कि मूर्ति व दिये बनाने के लिए चिकनी मिट्टी का प्रयोग होता है. जिसकी 500 से 600 रुपये में ट्राली मिलती है, जिसे फिलहाल तो शहर में खरीदना ही पड़ता है.
ईंधन ने भी निकाला कुम्हारों का दम- ऐसा नहीं है कि केवल मिट्टी की खरीदारी ही कुम्हारों को परेशान किए है. मिट्टी चाक पर चढ़ने के बाद एक रूप तो ले लेती, पर उसको पक्का करने के लिए मिट्टी को पकाया जाता है. पहले तो मिट्टी को पकाने के लिए भट्ठी में ईंधन इतना महंगा नहीं था, पर अब तो ईंधन ने भी कुम्हारों का दम निकाल लिया है. ईंधन के लिए शहरों में तो लकड़ी और भूसी मिलना मुश्किल भी हो जाती है.Conclusion:साठ रुपये में सैकड़ा बिकते हैं दिये- अपनी चाक पर मिट्टी के बड़े दिए बना रहे कुम्हार शैलेंद्र ने बताया कि मिट्टी के दियो की अलग-अलग वैरायटी अब उन लोगों ने भी बनानी शुरू कर दी है. मिट्टी के साधारण दिये 60 रुपये सैकड़ा से बेंचे जाते हैं, जबकि बड़े दिए जो सेरवा कहे जाते हैं, वह एक रुपये में एक बिकता है. कुछ आकर्षक डिजायन के दिये भी अब बनने शुरू हो गए हैं, जिनकी मांग तो ज्यादा है, साथ ही उनकी कीमत भी ज्यादा है.
बाजार में बेचने में आती परेशानी- कुम्हार ने बताया कि धनतेरस से लेकर दीपावली के दिन तक तीन दिन वह लोग बाजार में मूर्तियां व दियों की बिक्री करते हैं. ऐसे में बाजार में जिस किसी भी दुकान के सामने फुटपाथ पर मूर्ति व दियों की बिक्री करो तो उनको भी किराया देना पड़ता है. जिसमें दुकानदार द्वारा 1200 रुपये से लेकर 1500 रुपयों की वसूली तीन दिन के लिए की जाती है.
बाइट- सुरेश कुमार, कुम्हार
बाइट- कमलेश सिंह, कुम्हार
बाइट- रामदास, कुम्हार
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