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एटा: श्रमिकों की सेवा में मुस्तैद है प्रशासन, कर रहा है बसों की व्यवस्था - एटा समाचार

लॉकडाउन के चलते प्रवासी मजदूर मीलों दूर पैदल ही अपने घर की ओर चल दिए हैं. इसी को देखते हुए एटा जिले का प्रशासन बस सेवा के मामले में काफी मुस्तैद नजर आ रहा है. एटा पहुंचने वाले प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने में प्रशासन उनकी मदद कर रहा है.

एटा पहुंचे प्रवासी मजदूर
एटा पहुंचे प्रवासी मजदूर
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Published : May 25, 2020, 5:53 PM IST

एटा: प्रशासन बस सेवा के मामले में काफी मुस्तैद नजर आ रहा है. यहां पहुंचने वाले प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने में एटा जिला प्रशासन बेहतर काम कर रहा है. 6 मई से लेकर 16 मई के बीच में 132 बसों के माध्यम से करीब 6553 प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का काम जिला प्रशासन ने किया है.

दरअसल रोजाना सैकड़ों की संख्या में दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा से चलकर प्रवासी श्रमिक एटा पहुंचते हैं. इस दौरान एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तथा कई बड़े शहर को यह श्रमिक पार करते हैं.

एटा पहुंचे प्रवासी श्रमिक जिला पंचायत परिसर में इकट्ठा होते हैं. सैकड़ों किलोमीटर का सफर कहीं पैदल तो कहीं ट्रकों से तय कर पहुंचे यह श्रमिक इतने थके होते हैं कि जहां जगह मिलती है, वहीं बैठ जाते हैं.

कोई 300 किलोमीटर का सफर तय कर पहुंचा है तो कोई ढाई सौ किलोमीटर का. यहां पहुंचने वाले प्रवासी श्रमिकों के बदहाली का आलम यह होता है कि नाम, पता और अपनी समस्या भी ढंग से नहीं बता पाते.

एटा: प्रशासन बस सेवा के मामले में काफी मुस्तैद नजर आ रहा है. यहां पहुंचने वाले प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने में एटा जिला प्रशासन बेहतर काम कर रहा है. 6 मई से लेकर 16 मई के बीच में 132 बसों के माध्यम से करीब 6553 प्रवासी श्रमिकों को उनके गंतव्य तक पहुंचाने का काम जिला प्रशासन ने किया है.

दरअसल रोजाना सैकड़ों की संख्या में दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा से चलकर प्रवासी श्रमिक एटा पहुंचते हैं. इस दौरान एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश तथा कई बड़े शहर को यह श्रमिक पार करते हैं.

एटा पहुंचे प्रवासी श्रमिक जिला पंचायत परिसर में इकट्ठा होते हैं. सैकड़ों किलोमीटर का सफर कहीं पैदल तो कहीं ट्रकों से तय कर पहुंचे यह श्रमिक इतने थके होते हैं कि जहां जगह मिलती है, वहीं बैठ जाते हैं.

कोई 300 किलोमीटर का सफर तय कर पहुंचा है तो कोई ढाई सौ किलोमीटर का. यहां पहुंचने वाले प्रवासी श्रमिकों के बदहाली का आलम यह होता है कि नाम, पता और अपनी समस्या भी ढंग से नहीं बता पाते.

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