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38 सालों के संघर्ष के बाद बुजुर्ग को मिला 'विकलांग पेंशन योजना' का लाभ - disabled pension scheme in basti

यूपी के बस्ती जिले में 'विकलांग पेंशन योजना' को लेकर प्रशासन की लापरवाही का मामला सामने आया है, जहां नरेंद्र नाथ दुबे नाम के पीड़ित को साल 1982 में नौकरी से निकालने के 38 सालों बाद प्रशासन ने पेंशन देने की शुरूआत की है.

पीड़ित नरेंद्र नाथ दुबे.
पीड़ित नरेंद्र नाथ दुबे.
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Published : Oct 28, 2020, 10:09 PM IST

बस्ती: जीवन में कठिनाइयां किसे नहीं परेशान करतीं, लेकिन जो इन कठिनाइयों से जूझकर सफलता प्राप्त कर लेते हैं. वही, इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवाते हैं. कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं विक्रमजोत ब्लाक के निवासी नरेंद्र नाथ दुबे, जिन्होंने 38 सालों के संघर्ष के बाद अपनी लड़ाई में कामयाबी हासिल की है.

जानकारी देते पीड़ित नरेंद्र नाथ दुबे.

नरेंद्र नाथ दुबे साल साल 1966 में आगरा के एचएएल, पीटीएस सेक्शन नंबर 4 विंग में कार्यरत थे. इस दौरान ऑन डयूटी उनकी आंख खराब हो गईं, जिसके चलते उन्हें वहां से कुछ दिन बाद काम से निकाल दिया गया. वहीं साल 1986 में नरेंद्र दुबे ने एक बार फिर रेलवे के एक लिमिटेड कम्पनी में फोर्थ क्लास की नौकरी ज्वाइन की, जहां पर उन्होंने 3 साल तक काम किया, लेकिन आंखें खराब होने के चलते उन्हें यहां से भी निकाल दिया गया.

साल 1982 में नरेन्द्र नाथ ने अपने विकलांग पेंशन को लेकर समाज कल्याण विभाग में एक प्रार्थना पत्र दायर किया, लेकिन तब से लेकर जुलाई 2020 तक वे विकलांग पेंशन के लिए संघर्ष करते रहे और लगभग 4 दशक बीतने के बाद उन्होंने अपने हक की लड़ाई जीत ही ली.

साल 1982 से अब तक नरेंद्र नाथ दुबे का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. अपनी इस लड़ाई में न्याय न मिलने के कारण उन्हें सामाजिक उपहास का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. इस दौरान 2019 में उनकी मुलाकात हिमांशु सिंह से हुई, जिनकी सामाजिक कार्यों में विशेष अभिरुचि है. हिमांशु सिंह बचपन से ही लोगों के हक के लिए लड़ने को खड़े रहते हैं. हिमांशु के पास जब नरेंद्र नाथ का प्रकरण पहुंचा तो उन्होंने मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश शासन को पत्र लिखकर यथोचित कार्यवाही हेतु अनुरोध किया, जिसके बाद यह मामला जिलाधिकारी बस्ती को आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित कर दिया गया.

समाज कल्याण विभाग, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग इस मामले में कार्यवाही को करते एक साल से अधिक का समय लगा दिया. वहीं, अंत में नरेंद्र नाथ दुबे को न्याय मिला, जहां एक तरफ दुबे अपनी इस सफलता से गदगद हैं, तो वहीं दूसरी ओर वे इसका श्रेय पचवस गांव के निवासी हिमांशु सिंह को देते हैं.

वहीं इस मामले को लेकर जब हिमांशु सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं शासन प्रशासन की नीतियों पर इस प्रकरण ने बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है, जहां एक व्यक्ति को अपने हक के लिए 38 साल तक संघर्ष करना पड़ा.

हिमांशु सिंह का कहना है कि वह ऐसे ही आगे भी सामाजिक मुद्दों पर कार्य करते रहेंगे और लोगों को उनका हक दिलाते रहेंगे. पेशे से हिमांशु एक छात्र हैं और विधि की पढ़ाई कर रहे हैं. हिमांशु का कहना है कि समाज में न्याय सभी के साथ होना चाहिए और वह आजीवन न्याय के लिए हमेशा संघर्ष करते रहेंगे.

इसे भी पढे़ं- बस्ती: इस गांव में बन रहा माधवपुर गांव का पंचायत भवन

बस्ती: जीवन में कठिनाइयां किसे नहीं परेशान करतीं, लेकिन जो इन कठिनाइयों से जूझकर सफलता प्राप्त कर लेते हैं. वही, इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवाते हैं. कुछ ऐसी ही शख्सियत हैं विक्रमजोत ब्लाक के निवासी नरेंद्र नाथ दुबे, जिन्होंने 38 सालों के संघर्ष के बाद अपनी लड़ाई में कामयाबी हासिल की है.

जानकारी देते पीड़ित नरेंद्र नाथ दुबे.

नरेंद्र नाथ दुबे साल साल 1966 में आगरा के एचएएल, पीटीएस सेक्शन नंबर 4 विंग में कार्यरत थे. इस दौरान ऑन डयूटी उनकी आंख खराब हो गईं, जिसके चलते उन्हें वहां से कुछ दिन बाद काम से निकाल दिया गया. वहीं साल 1986 में नरेंद्र दुबे ने एक बार फिर रेलवे के एक लिमिटेड कम्पनी में फोर्थ क्लास की नौकरी ज्वाइन की, जहां पर उन्होंने 3 साल तक काम किया, लेकिन आंखें खराब होने के चलते उन्हें यहां से भी निकाल दिया गया.

साल 1982 में नरेन्द्र नाथ ने अपने विकलांग पेंशन को लेकर समाज कल्याण विभाग में एक प्रार्थना पत्र दायर किया, लेकिन तब से लेकर जुलाई 2020 तक वे विकलांग पेंशन के लिए संघर्ष करते रहे और लगभग 4 दशक बीतने के बाद उन्होंने अपने हक की लड़ाई जीत ही ली.

साल 1982 से अब तक नरेंद्र नाथ दुबे का जीवन संघर्षों से भरा रहा है. अपनी इस लड़ाई में न्याय न मिलने के कारण उन्हें सामाजिक उपहास का सामना भी करना पड़ा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. इस दौरान 2019 में उनकी मुलाकात हिमांशु सिंह से हुई, जिनकी सामाजिक कार्यों में विशेष अभिरुचि है. हिमांशु सिंह बचपन से ही लोगों के हक के लिए लड़ने को खड़े रहते हैं. हिमांशु के पास जब नरेंद्र नाथ का प्रकरण पहुंचा तो उन्होंने मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश शासन को पत्र लिखकर यथोचित कार्यवाही हेतु अनुरोध किया, जिसके बाद यह मामला जिलाधिकारी बस्ती को आवश्यक कार्यवाही हेतु प्रेषित कर दिया गया.

समाज कल्याण विभाग, दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग इस मामले में कार्यवाही को करते एक साल से अधिक का समय लगा दिया. वहीं, अंत में नरेंद्र नाथ दुबे को न्याय मिला, जहां एक तरफ दुबे अपनी इस सफलता से गदगद हैं, तो वहीं दूसरी ओर वे इसका श्रेय पचवस गांव के निवासी हिमांशु सिंह को देते हैं.

वहीं इस मामले को लेकर जब हिमांशु सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं शासन प्रशासन की नीतियों पर इस प्रकरण ने बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है, जहां एक व्यक्ति को अपने हक के लिए 38 साल तक संघर्ष करना पड़ा.

हिमांशु सिंह का कहना है कि वह ऐसे ही आगे भी सामाजिक मुद्दों पर कार्य करते रहेंगे और लोगों को उनका हक दिलाते रहेंगे. पेशे से हिमांशु एक छात्र हैं और विधि की पढ़ाई कर रहे हैं. हिमांशु का कहना है कि समाज में न्याय सभी के साथ होना चाहिए और वह आजीवन न्याय के लिए हमेशा संघर्ष करते रहेंगे.

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