बरेली: नाथ नगरी बरेली में सावन के मौके पर श्रद्धालु अपनी आस्था के अनुसार भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना करते हैं. सुबह से ही शिवालयों में श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी कतारें लग जाती है. बरेली के चारों कोने में भगवान शिव के प्राचीन मंदिर है. कई ऋषि मुनियों की तपोस्थली भी रही है इसलिये बरेली को 'नाथ नगरी' भी कहा जाता है.
शहर के सभी प्रमुख मंदिरों में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए महिला पुलिस की भी तैनाती की गई है. शहर में भारी वाहन न आए. इसके लिए रूट डायवर्जन के साथ ट्रैफिक पुलिस की तैनाती की गई है.
ऐसी मान्यता है कि चारों ओर बने प्राचीन मंदिर शहर की रक्षा करते है. इन मंदिरों का अपना ही एक अलग महत्व है. कहा जाता है कि इन मंदिरों में पूजा-अर्चना करने से भोलेबाबा प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं. बरेली शहर को भगवान शिव के प्राचीन मंदिरों ने एक अलग पहचान दिलाई है. शहर के चारों ओर अलखनाथ मंदिर, धोपेश्वर नाथ मंदिर, बनखंडीनाथ मंदिर, टिबरी नाथ मंदिर, तपेश्वर नाथ मंदिर और मणिनाथ मंदिर बसे हैं.
पूर्व दिशा में 'बनखंडी नाथ मंदिर' बना हुआ है. माना जाता है कि द्रोपदी ने अपने गुरु के आदेश पर यहां शिवलिंग स्थापित कर तपस्या की थी. घने जंगल में होने के कारण इस देवालय का नाम 'बनखंडी नाथ मंदिर' पड़ा. पश्चिम दिशा में मढ़ीनाथ मंदिर बना हुआ है. बताया जाता है कि एक तपस्वी ने राहगीरों की प्यास बुझाने के लिए यहां पर कुआं खुदवाना शुरू किया. तभी यहां शिवलिंग प्रकट हुआ था. शिवलिंग पर सर्प लिपटा हुआ था. इस दिव्य स्थान को 'मढ़ीनाथ मंदिर' के नाम से जाना जाता है.
उत्तर दिशा में टिबरी नाथ मंदिर बना हुआ है. जिसकी स्थापना 1474 में मानी जाती है. बताया जाता है कि इस स्थान पर 3 पेड़ों के नीचे सो रहे एक चरवाह को सपना आया. जिसके बाद जब यहां खुदाई की गई तो वहां शिवलिंग प्राप्त हुआ. तीन पेड़ों के नीचे होने के कारण इस मंदिर का नाम टिबरी नाथ मंदिर पड़ा. शहर की दक्षिण दिशा में तपेश्वर नाथ मंदिर बना हुआ है. ऐसी मान्यता है कि ये मंदिर ऋषि मुनियों की तपोस्थली रही है. कई साधु संतों ने यहां तपस्या कर देवालय को सिद्ध किया है. इसी कारण इस स्थान को तपेश्वर नाथ मंदिर से जाना जाता है.
नगर की पूर्व-दक्षिण अग्निकोण में धोपेश्वर नाथ मंदिर बना हुआ है. इस मंदिर को राजा द्रौपद के गुरु अत्रि ऋषि के शिष्य धूम्र ऋषि ने कठोर तप कर सिद्ध किया था. उनकी समाधि पर ही शिवलिंग की स्थापना हुई थी. शहर के वायव्य कोड़ पर किला इलाके में अलखनाथ मंदिर बना हुआ है. माना जाता है कि हिंदुओं के जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिये आनंद अखाड़े के अलखिया बाबा ने इस स्थान पर कठोर तपस्या कर शिव भक्ति की ऐसी अलख जगाई की कट्टरपंथियों को उनके आगे घुटने टेकने पड़े और इस मंदिर का नाम अलखनाथ मंदिर पड़ा.
इस प्राचीन नाथ मंदिरों के अलावा पीलीभीत रोड स्थित पशुपतिनाथ मंदिर बना हुआ है जो कि नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर की तर्ज पर बनाया गया है. मंदिर के पुजारी पंडित मुकेश बताते हैं कि परिसर में भगवान शिव के 198 नामों को समर्पित 108 शिवलिंग है. इस मंदिर को एक व्यापारी ने बनवाया था. यहां का शिवलिंग भी नेपाल के पशुपतिनाथ की तरह पंचमुखी है. सावन के मौके पर यहां विशेष तैयारियां की जाती है. इस मंदिर के चारों ओर जलाशय है. जिसमें सभी पवित्र नदियों का जल भरा हुआ है. जहां बीच मे पंच मुखी भगवान भोले नाथ बसे हुए है.
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