बरेली: कोरोना महामारी की मार से कोई भी धंधा अछूता नहीं रहा है. अधिकतर सभी व्यवसायों पर इसका विपरीत असर दिखा है. इसके विपरीत पतंग व्यवसाय ऐसा रहा है, जो कोरोना के दौर में भी परवान पर चढ़ा है. जिले में शाम होते ही छतें पतंगबाजों से आबाद हो जाती हैं. आसमान में पतंगें एक-दूसरे से गलबहियां और अठखेलियां करती नजर आती हैं. बीते एक साल के दौरान यह शौक कुछ ज्यादा ही बढ़ा है, क्योंकि लॉकडाउन के कारण लोग घरों से बाहर नहीं निकल पाते थे और दुकानें जल्द बंद हो जाती थीं. नौकरी पेशा लोग भी जल्दी घर लौट आते थे.
वहीं स्कूल-कॉलेज बंद होने से युवाओं को पढ़ाई की भी बहुत ज्यादा चिंता नहीं है. इसलिए शाम को लगभग सभी फुर्सत में होते हैं. घर के अंदर कैद रहने से हो रही बोरियत को दूर करने के लिए लोग पतंग के साथ शाम को छतों पर आ जाते हैं. यही कारण है कि बीते एक साल में बरेली जिले में पतंग कारोबार ने रफ्तार पकड़ ली है. पतंग का कारोबार ही एक ऐसा कारोबार रहा, जिसके लिए ये आपदाकाल अवसर बना और पतंग कारोबारियों के दिन बहुर गए.
पतंग बनाने वालों की मानें तो बरेली में पतंग बनाने का काम धीरे-धीरे दम तोड़ता जा रहा था. लोगों ने अपने इस पुस्तैनी काम से मुंह मोड़ना शुरू कर दिया था. थोक व्यापारी से लेकर पतंग का निर्यात करने वालों तक ने इस धंधे से ध्यान हटा लिया था, लेकिन कोरोना काल में जब सबसे पहले लॉकडाउन लगा तो पतंगों की मांग एकदम से बढ़ गई.
पतंग के सप्लायर्स व पतंग बनाने वालों ने बताया कि लॉकडाउन में लोगों के पास सिर्फ एक ही विकल्प था कि वो घरों में रहें व सुरक्षित रहें, लेकिन घर में बैठकर जब लोग ऊबने लगे तो उन्होंने पतंग और मांझे की खोज शुरू कर दी. पतंग की मांग बढ़ने पर पतंग कारोबारियों को धड़ाधड़ ऑर्डर मिलने लगे. इस दौरान पतंग बनाने वाले जो लोग घरों में खाली बैठे थे, उन्हें काम मिल गया और वह घर से ही पतंग बनाने लगे.
बरेली निवासी अदनान मुंबई में नौकरी करते थे. वह कहते हैं कि, जब लॉकडाउन लगा तो नौकरी छूट गई और वह घर लौट आए. उनके परिवार में करीब 50 वर्ष से पतंग बनाने का काम होता है. ऐसे में जब वो घर लौटे तो देखा कि सभी पतंग बनाने में व्यस्त हैं. यह देख उन्होंने भी पतंग बनाने में सहयोग करना शुरू कर दिया. अदनान कहते हैं कि अब वह एक दिन में करीब 200 तक पतंगें तैयार कर रहे हैं. इससे अच्छी कमाई भी हो रही है.
ईटीवी भारत ने कुछ ऐसे लोगों से भी बात की जो पहले कुछ और काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन में जब उन्होंने देखा कि पतंग की डिमांड है तो उन्होंने ये हुनर सीखा और पतंगें बनाकर अपने परिवार का खर्च चलाने लगे. अनस ताहिर कहते हैं कि वह 10 साल पहले कुछ और काम करते थे. उस काम में उन्हें मुनाफा भी होता था, लेकिन जब उन्होंने पतंग बनाना शुरू किया तो इसमें ज्यादा मुनाफा मिला. अनस कहते हैं कि, एक क्लब भी पतंग उड़ाने वालों का बना है और उस क्लब को वही पतंग उपलब्ध कराते हैं. अनस ने बताया कि वो अपने काम से बेहद खुश हैं. उनकी पतंगें देश के बाहर भी जा रही हैं.
हालांकि लगातार पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों से पतंग कारोबारियों के काम पर प्रभाव पड़ा है. पतंग बनाने का जो मेटीरियल उन्हें चाहिए होता है, वह कोलकाता समेत और कई अलग-अलग राज्यों व शहरों से आता है. पतंग बनाने वालों का कहना है कि पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने से माल महंगा हो गया है, जिससे उन लोगों को कुछ घाटा जरूर हुआ है. इन सबके बीच पतंग कारोबारी अपने सुस्त पड़े कारोबार के रफ्तार पकड़ने से जरूर खुश हैं.