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बाराबंकी: दशकों बाद दिखा नेचर क्लीनर, शुभ संकेत मान उत्साहित हुए वनकर्मी - वन विभाग

पलिया मसूदपुर गांव में एक घर के पास एक गिद्ध को बैठे देखकर इलाके में हलचल मच गई. मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम ने गिद्ध को अपने कब्जे में ले लिया. प्रभागीय निदेशक एनके सिंह ने बताया कि साल 91 और 92 तक सूबे में गिद्धों की संख्या काफी थी, लेकिन दिनोंदिन इस्तेमाल हो रहे खतरनाक रसायनों के चलते यह गिद्ध विलुप्त होने के कगार पर आ गए.

इलाके में पाया गया गिद्ध
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Published : Mar 12, 2019, 12:37 PM IST

बाराबंकी: बाराबंकी वन क्षेत्र के पलिया मसूदपुर गांव में एक घर के पास अजीबो-गरीब बड़े से पक्षी को देख कर हलचल मच गई. लोग अपने हिसाब से इसका नामकरण करने लगे. मामले की जानकारी पर पहुंची वन विभाग की टीम ने गिद्ध को अपने कब्जे में ले लिया.

जानकारी देते प्रभागीय निदेशक एनके सिंह.
प्रभागीय निदेशक एनके सिंह ने जब इस पक्षी को देखा तो वे उत्साहित हो उठे. उन्होंने बताया कि यह भारतीय गिद्ध का बच्चा है. एक सर्वे के मुताबिक साल 91 और 92 तक सूबे में गिद्धों की संख्या काफी थी, लेकिन दिन प्रतिदिन इस्तेमाल हो रहे खतरनाक रसायनों के चलते यह गिद्ध विलुप्त होने के कगार पर आ गए. अब यह पक्षी कभी कभार दिखाई देते हैं. गिद्धों के विलुप्त होने के पीछे पशुओं को दी जाने वाली डाई क्लोरो फिनॉक्स दवा माना जा रहा है.

यह दवा मवेशियों में दर्द नाशक और कीटनाशक के लिए दी जाती थी. दवा बायोडिग्रेडेबल नहीं होती है. लिहाजा पशुओं के मरने के बाद जब गिद्ध उन्हें खाते थे तो यह दवाई उनको नुकसान करती थी और इस तरह धीरे-धीरे गिद्ध विलुप्त होते गए. अब सरकार ने दवा प्रतिबंधित कर दी है. कभी कभार इसी तरह गिद्ध दिखने लगे हैं. वनाधिकारियों का मानना है कि यह अच्छा संकेत है. प्रभागीय निदेशक एनके सिंह ने बताया यह समाज के लिए अच्छा संकेत है.

बाराबंकी: बाराबंकी वन क्षेत्र के पलिया मसूदपुर गांव में एक घर के पास अजीबो-गरीब बड़े से पक्षी को देख कर हलचल मच गई. लोग अपने हिसाब से इसका नामकरण करने लगे. मामले की जानकारी पर पहुंची वन विभाग की टीम ने गिद्ध को अपने कब्जे में ले लिया.

जानकारी देते प्रभागीय निदेशक एनके सिंह.
प्रभागीय निदेशक एनके सिंह ने जब इस पक्षी को देखा तो वे उत्साहित हो उठे. उन्होंने बताया कि यह भारतीय गिद्ध का बच्चा है. एक सर्वे के मुताबिक साल 91 और 92 तक सूबे में गिद्धों की संख्या काफी थी, लेकिन दिन प्रतिदिन इस्तेमाल हो रहे खतरनाक रसायनों के चलते यह गिद्ध विलुप्त होने के कगार पर आ गए. अब यह पक्षी कभी कभार दिखाई देते हैं. गिद्धों के विलुप्त होने के पीछे पशुओं को दी जाने वाली डाई क्लोरो फिनॉक्स दवा माना जा रहा है.

यह दवा मवेशियों में दर्द नाशक और कीटनाशक के लिए दी जाती थी. दवा बायोडिग्रेडेबल नहीं होती है. लिहाजा पशुओं के मरने के बाद जब गिद्ध उन्हें खाते थे तो यह दवाई उनको नुकसान करती थी और इस तरह धीरे-धीरे गिद्ध विलुप्त होते गए. अब सरकार ने दवा प्रतिबंधित कर दी है. कभी कभार इसी तरह गिद्ध दिखने लगे हैं. वनाधिकारियों का मानना है कि यह अच्छा संकेत है. प्रभागीय निदेशक एनके सिंह ने बताया यह समाज के लिए अच्छा संकेत है.
Intro:बाराबंकी ,12 मार्च । तकरीबन दो दशक पहले बड़े आकार, नुकीली बड़ी सी चोंच और खतरनाक पंजो वाले पक्षी अक्सर कभी पेड़ों पर तो कभी बिजली के खंभों पर और कभी दूर आसमान में मंडराते दिखाई देते थे । ये पक्षी प्रकृति के सफाई कर्मी कहलाते थे। सही पहचाना आपने , इन्हें गिद्ध कहा जाता था । खतरनाक रसायनों के प्रयोग से यह प्रकृति के सफाई कर्मी विलुप्त हो गए । दशकों बाद बाराबंकी के एक गांव में जब यह पक्षी दिखा तो गांव में हलचल मच गई । वन विभाग को सूचना मिली तो अधिकारियों के चेहरे खिल उठे । आनन फानन वनकर्मियों ने पहुंचकर इस गिद्ध को अपने कब्जे में ले लिया ।


Body:वीओ - सुरक्षा के मद्दे नज़र वन विभाग के पिंजरे में कैद ये बड़ा सा पक्षी गिद्ध है । दरअसल सोमवार को बंकी वन छेत्र के पलिया मसूदपुर गांव में एक घर के पास रखें पुआल पर बैठे एक अजीबोगरीब बड़े से पक्षी को देख कर हलचल मच गई । लोगों के लिए पक्षी कौतूहल का विषय बन गया । लोग अपने हिसाब से इसका नामकरण करने लगे । मामले की जानकारी पर पहुंची वन विभाग की टीम ने इस पक्षी को अपने कब्जे में ले लिया । प्रभागीय निदेशक एनके सिंह ने जब इस पक्षी को देखा तो वे उत्साहित हो उठे । उन्होंने बताया कि यह इंडियन वल्चर का बच्चा है । एक सर्वे के मुताबिक साल 91 और 92 तक सूबे में गिद्धों की संख्या काफी थी लेकिन दिनोंदिन इस्तेमाल हो रहे खतरनाक रसायनों के चलते यह गिद्ध विलुप्त होने के कगार पर आ गए । अब यह पक्षी कभी कभार कहीं दिख जाता है तो हलचल मच जाती है । गिद्धों के विलुप्त होने के पीछे पशुओं को दी जाने वाली डाई क्लोरो फिनॉक्स दवा माना जा रहा है ।ये दवा मवेशियों में दर्द नाशक और कीटनाशक के लिए दी जाती थी मवेशियों को दर्द नाशक और कीटनाशक के रूप में दी जाती थी । दवा बायोडिग्रेडेबल नहीं होती लिहाजा पशुओं के मरने के बाद जब गिद्ध उन्हें खाते थे तो यह दवाई उनको नुकसान करती थी और इस तरह धीरे-धीरे गिद्ध विलुप्त होते गए । अब सरकार ने दवा प्रतिबंधित कर दी है लिहाजा कभी कभार इसी तरह गिद्ध दिखने लगे हैं । वनाधिकारियों का मानना है कि ये अच्छा संकेत है । प्रभागीय निदेशक एनके सिंह ने बताया यह समाज के लिए अच्छा संकेत है ।

बाईट- एनके सिंह , प्रभागीय निदेशक ,वन विभाग


Conclusion:रिपोर्ट- अलीम शेख बाराबंकी
9839421515
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