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बाराबंकी: मेंथा किसानों की समस्या, जो कभी नहीं बन पाई चुनावी मुद्दा

बाराबंकी में किसानों की मांग के बावजूद मेंथा फसल को आज तक कृषि के साथ ही बागवानी का दर्जा नहीं मिल पाया है. जिसके चलते मेंथा किसान सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं. मेंथा किसानों की इस बड़ी समस्या पर आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने कोई गम्भीरता नहीं दिखाई है.

किसानों की मांग के बावजुद मेंथा फसल को आजतक तक नहीं मिला कृषि का दर्जा.
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Published : Apr 9, 2019, 5:57 AM IST

बाराबंकी: जिला मेंथा उत्पादन के क्षेत्र का हब बन चुका है. हिंदुस्तान में कुल उत्पादन का 70 फीसदी मेंथा अकेले जिले में ही पैदा होता है. हैरानी की बात यह है कि किसानों की मांग के बावजूद मेंथा फसल को आज तक न तो कृषि का दर्जा मिला और न ही बागवानी का. लिहाजा मेंथा किसान सरकारी सुविधाओं से वंचित है. किसान हित की बात करने वाले राजनीतिक दलों ने मेंथा किसानों समस्या को आज तक चुनावी मुद्दा तक नहीं बनाया.

किसानों की मांग के बावजूद मेंथा फसल को आज तक तक नहीं मिला कृषि का दर्जा.

पिछले कुछ सालों से मेंथा जायद की प्रमुख फसल के रूप में अपना स्थान बना रही है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथा उत्पादक और निर्यातक है, इसे जापानी पुदीना के नाम से भी जाना जाता है. विश्व में मेंथा का कुल उत्पादन करीब 16 हजार टन है और उसमें अकेले भारत की भागीदारी करीब 75 फीसदी है. खास बात यह है कि इस उत्पादन में अकेले जिले का हिस्सा 70 फीसदी है.

जिले के किसान करीब तीन दशकों से मेंथा की खेती कर रहे हैं. जहां करीब 88 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में यह खेती की जाती है. करीब तीन लाख किसान मेंथा की खेती कर खासा मुनाफा कमा रहे हैं. जिले में मेंथा आयात का चार हजार करोड़ रुपये सालाना निर्यात होता है. इससे सरकार को हर वर्ष खासा राजस्व भी मिलता है. मेंथा को अन्य फसलों की तुलना में 5 से 6 गुना ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है, मगर इसकी उपज के समय नहरों में पानी आपूर्ति का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में किसान निजी पंपिंग सेट से फसल की सिंचाई करने को मजबूर हैं.

किसानों ने कई बार अपनी समस्याओं को लेकर मांग उठाई, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस फसल को आज तक न तो कृषि का दर्जा मिल सका और न ही बागवानी का. सरकार ने इसे किसी भी प्रकार की खेती का दर्जा नहीं दिया है, जिससे किसानों को कोई सुविधा भी नहीं मिलती है. किसान हितों के लिए तमाम राजनीतिक दल बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, लेकिन मेंथा किसानों की इस बड़ी समस्या पर आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने कोई गम्भीरता नहीं दिखाई और न ही इस समस्या को अपने चुनावी एजेंडे में ही शामिल किया.

कृषि विभाग के अधिकारी मानते हैं कि मेंथा किसानों की समस्याएं हैं, लेकिन इसे कृषि का दर्जा न मिलने से इनको कोई भी सुविधा नहीं मिल पाती है. किसान इसे कृषि का दर्जा दिए जाने को लेकर काफी अर्से से मांग कर रहे हैं.

बाराबंकी: जिला मेंथा उत्पादन के क्षेत्र का हब बन चुका है. हिंदुस्तान में कुल उत्पादन का 70 फीसदी मेंथा अकेले जिले में ही पैदा होता है. हैरानी की बात यह है कि किसानों की मांग के बावजूद मेंथा फसल को आज तक न तो कृषि का दर्जा मिला और न ही बागवानी का. लिहाजा मेंथा किसान सरकारी सुविधाओं से वंचित है. किसान हित की बात करने वाले राजनीतिक दलों ने मेंथा किसानों समस्या को आज तक चुनावी मुद्दा तक नहीं बनाया.

किसानों की मांग के बावजूद मेंथा फसल को आज तक तक नहीं मिला कृषि का दर्जा.

पिछले कुछ सालों से मेंथा जायद की प्रमुख फसल के रूप में अपना स्थान बना रही है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथा उत्पादक और निर्यातक है, इसे जापानी पुदीना के नाम से भी जाना जाता है. विश्व में मेंथा का कुल उत्पादन करीब 16 हजार टन है और उसमें अकेले भारत की भागीदारी करीब 75 फीसदी है. खास बात यह है कि इस उत्पादन में अकेले जिले का हिस्सा 70 फीसदी है.

जिले के किसान करीब तीन दशकों से मेंथा की खेती कर रहे हैं. जहां करीब 88 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में यह खेती की जाती है. करीब तीन लाख किसान मेंथा की खेती कर खासा मुनाफा कमा रहे हैं. जिले में मेंथा आयात का चार हजार करोड़ रुपये सालाना निर्यात होता है. इससे सरकार को हर वर्ष खासा राजस्व भी मिलता है. मेंथा को अन्य फसलों की तुलना में 5 से 6 गुना ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है, मगर इसकी उपज के समय नहरों में पानी आपूर्ति का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में किसान निजी पंपिंग सेट से फसल की सिंचाई करने को मजबूर हैं.

किसानों ने कई बार अपनी समस्याओं को लेकर मांग उठाई, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस फसल को आज तक न तो कृषि का दर्जा मिल सका और न ही बागवानी का. सरकार ने इसे किसी भी प्रकार की खेती का दर्जा नहीं दिया है, जिससे किसानों को कोई सुविधा भी नहीं मिलती है. किसान हितों के लिए तमाम राजनीतिक दल बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, लेकिन मेंथा किसानों की इस बड़ी समस्या पर आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने कोई गम्भीरता नहीं दिखाई और न ही इस समस्या को अपने चुनावी एजेंडे में ही शामिल किया.

कृषि विभाग के अधिकारी मानते हैं कि मेंथा किसानों की समस्याएं हैं, लेकिन इसे कृषि का दर्जा न मिलने से इनको कोई भी सुविधा नहीं मिल पाती है. किसान इसे कृषि का दर्जा दिए जाने को लेकर काफी अर्से से मांग कर रहे हैं.

Intro:बाराबंकी ,08 अप्रैल । मेंथा उत्पादन के क्षेत्र में बाराबंकी हब बन चुका है । हिंदुस्तान में कुल उत्पादन का 70 फीसदी मेंथा अकेले बाराबंकी में ही पैदा होता है । चार हजार करोड़ रुपए सालाना का निर्यात होता है । इससे सरकारों को खासा राजस्व भी मिलता है । हैरानी की बात यह कि किसानों द्वारा कई बार उठाई गई मांग के बावजूद मेंथा फसल को आज तक न तो कृषि का दर्जा मिला और न ही बागवानी का । लिहाजा मेंथा किसान सरकारी सुविधाओं से वंचित है । विडम्बना तो देखिए कि किसान हितों की बातें करने वाले राजनीतिक दलों ने भी संवेदनहीनता दिखाई और मेंथा किसानों की इस बड़ी समस्या को आज तक चुनावी मुद्दा तक नहीं बनाया । पेश है बाराबंकी से मेंथा किसानों की पीड़ा उजागर करती अलीम शेख की ये एक्सक्लुसिव रिपोर्ट....


Body:वीओ - पिछले कुछ सालों से मेंथा जायद की प्रमुख फसल के रूप में अपना स्थान बना रही है । भारत दुनिया का सबसे बड़ा मेंथा उत्पादक और निर्यातक है । इसे जापानी पुदीना के नाम से भी जाना जाता है । विश्व में मेंथा आयल का कुल उत्पादन करीब 16 हजार टन है और उसमें अकेले भारत की भागीदारी करीब 75 फीसदी है । खास बात ये कि इस उत्पादन में अकेले बाराबंकी का हिस्सा 70 फीसदी है । बाराबंकी और आसपास के किसान करीब तीन दशकों से मेंथा की खेती कर रहे हैं । बाराबंकी में करीब 88 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में ये खेती की जाती है । करीब तीन लाख किसान मेंथा की खेती कर खासा मुनाफा कमा रहे हैं ।जिले में मेंथा आयल का चार हजार करोड़ रुपये सालाना निर्यात होता है । इससे सरकार को हर वर्ष खासा राजस्व मिलता है । मेंथा को अन्य फसलों की तुलना में 5 से 6 गुना ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है मगर इसकी उपज के समय नहरों में पानी आपूर्ति का कोई प्रावधान नहीं है ऐसे में किसान निजी पंपिंग सेट से फसल की सिंचाई को मजबूर होते हैं । यही नही मेंथा पेराई के लिए किसानों को टँकी का प्रबंध करना होता है जिस पर उन्हें कोई सरकारी सुविधा नही मिलती । किसानों ने कई बार अपनी समस्याओं को लेकर मांग उठाई लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस फसल को आज तक न तो कृषि का दर्जा मिल सका और न ही बागवानी का । सरकार द्वारा इसे किसी भी प्रकार की खेती का दर्जा न दिए जाने से किसानों को कोई सुविधा भी नही मिलती है । न तो कृषि बीमा योजना का लाभ किसानों को मिल पा रहा है और न ही किसी भी प्रकार की कोई सब्सिडी । विडम्बना तो ये है कि किसान हितों के लिए तमाम राजनीतिक दल बड़ी बड़ी बातें तो करते हैं लेकिन मेंथा किसानों की इस बड़ी समस्या पर आज तक किसी भी राजनीतिक दल ने कोई गम्भीरता नही दिखाई और न ही इस समस्या को अपने चुनावी एजेंडे में ही शामिल किया ।
बाईट- राजेश वर्मा , राष्ट्रीय अध्यक्ष , मेंथा किसान समिति
वीओ- कृषि विभाग के अधिकारी मानते हैं कि मेंथा किसानों की समस्याएं हैं लेकिन इसे कृषि का दर्जा नही मिलने से इनको कोई भी सुविधा नही मिल पाती । किसान इसे कृषि का दर्जा दिए जाने को लेकर काफी अर्से से मांग कर रहे हैं ।
बाईट- अनिल सागर , उपनिदेशक कृषि
पीटीसी - अलीम शेख


Conclusion:रिपोर्ट - अलीम शेख बाराबंकी
9839421515
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