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बांदा: देवी ने इस पर्वत को दिया था कोढ़ी होने का श्राप - पर्वत को कोढ़ी होने का श्राप

उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा में स्थित बांदा के गिरवा में विंध्यवासिनी मंदिर पर हमेशा श्रद्धालुओं का तांता रहता है. लेकिन नवरात्र के समत यहां माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों तक पहुंच जाती है.

विंध्यवासिनी मंदिर पर हमेशा श्रद्धालुओं का तांता रहता है.
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Published : Oct 7, 2019, 1:41 PM IST

बांदा: विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में बसे मां विंध्यवासिनी के कई स्थान बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इन्हीं में एक स्थान है खत्री पहाड़ जहां त्रेतायुग में मां विंध्यवासिनी विराजमान हुई थीं. आज भी लाखों श्रद्धालु यहां नवरात्र में पहुंचते हैं. यहां वही देवी हैं जिन्हे त्रेतायुग में कंस ने मारने का प्रयास किया था.

विंध्यवासिनी मंदिर में हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

इसे भी पढ़ें-Navratra 2019: आज नवमी पर ऐसे करें मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना

माता ने दिया पर्वत को कोढ़ी होने का श्राप
विंध्यवासिनी मंदिर पर वैसे तो हमेशा श्रद्धालुओं का तांता रहता है. मगर महीना नवरात्र का हो तो यहां माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुंच जाती है. ये स्थान बांदा के गिरवा थाना क्षेत्र में खत्री पहाड़ पर स्थित है, जहां माता विंध्यवासिनी विराजमान हैं. मान्यता है कि त्रेतायुग में कंस ने भगवान श्रीकृष्ण के माता-पिता को कारागार में कैद रखा था और जब भगवान कृष्ण के जन्म के बाद उनके स्थान पर देवी महामाया को कंस ने मारने का प्रयास किया था. तो देवी कंस के हाथ से निकल कर इसी पर्वत में आयी थी. लेकिन इस पर्वत ने उनका भार उठाने में असमर्थता रहा. जिस पर देवी ने इस पर्वत को कोढ़ी होने का श्राप दिया था. जिससे पूरे पर्वत में सफेद दाग हो गए. लोगो की मान्यता है कि त्रेता युग से ही मां विंध्यवासिनी नवरात्र की अष्टमी और नवमी को मिर्जापुर से खत्री पहाड़ आती थीं. अपने भक्तों के कष्टों का निवारण करती थीं.

पर्वत पर हैं सातों देवी विराजमान
सन 1974 में मां विंध्यवासिनी ने बांदा की एक 7 वर्षीया बालिका सपने में आई और इस बच्ची ने खत्री पहाड़ को चिन्हित कर वहां देवी को विराजमान करने की कोशिश की थी. लेकिन मां विंध्यवासिनी का भार उठाते ही पर्वत फटने लगा. जिस पर मां विंध्यवासिनी ने पर्वत के ऊपर अपनी सातों बहनों को विराजमान कर खुद पर्वत के नीचे विराजमान हो गयीं. कहा जाता है कि नवरात्र की अष्टमी और नवमी को मां विंध्यवासिनी पर्वत के ऊपर विराजमान हो जाती हैं. आने वाले लाखो भक्तों के कष्टों का निवारण करती हैं. तभी से यहां लगभग 500 फीट ऊंचे पहाड़ पर सातों देवी मंदिर है. नीचे माता विंध्यवासिनी का मंदिर है जहां दूर-दूर से लोग अपनी-अपनी मन्नतें लेकर पहुंचते हैं.

बांदा: विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में बसे मां विंध्यवासिनी के कई स्थान बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं. इन्हीं में एक स्थान है खत्री पहाड़ जहां त्रेतायुग में मां विंध्यवासिनी विराजमान हुई थीं. आज भी लाखों श्रद्धालु यहां नवरात्र में पहुंचते हैं. यहां वही देवी हैं जिन्हे त्रेतायुग में कंस ने मारने का प्रयास किया था.

विंध्यवासिनी मंदिर में हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

इसे भी पढ़ें-Navratra 2019: आज नवमी पर ऐसे करें मां सिद्धिदात्री की पूजा अर्चना

माता ने दिया पर्वत को कोढ़ी होने का श्राप
विंध्यवासिनी मंदिर पर वैसे तो हमेशा श्रद्धालुओं का तांता रहता है. मगर महीना नवरात्र का हो तो यहां माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुंच जाती है. ये स्थान बांदा के गिरवा थाना क्षेत्र में खत्री पहाड़ पर स्थित है, जहां माता विंध्यवासिनी विराजमान हैं. मान्यता है कि त्रेतायुग में कंस ने भगवान श्रीकृष्ण के माता-पिता को कारागार में कैद रखा था और जब भगवान कृष्ण के जन्म के बाद उनके स्थान पर देवी महामाया को कंस ने मारने का प्रयास किया था. तो देवी कंस के हाथ से निकल कर इसी पर्वत में आयी थी. लेकिन इस पर्वत ने उनका भार उठाने में असमर्थता रहा. जिस पर देवी ने इस पर्वत को कोढ़ी होने का श्राप दिया था. जिससे पूरे पर्वत में सफेद दाग हो गए. लोगो की मान्यता है कि त्रेता युग से ही मां विंध्यवासिनी नवरात्र की अष्टमी और नवमी को मिर्जापुर से खत्री पहाड़ आती थीं. अपने भक्तों के कष्टों का निवारण करती थीं.

पर्वत पर हैं सातों देवी विराजमान
सन 1974 में मां विंध्यवासिनी ने बांदा की एक 7 वर्षीया बालिका सपने में आई और इस बच्ची ने खत्री पहाड़ को चिन्हित कर वहां देवी को विराजमान करने की कोशिश की थी. लेकिन मां विंध्यवासिनी का भार उठाते ही पर्वत फटने लगा. जिस पर मां विंध्यवासिनी ने पर्वत के ऊपर अपनी सातों बहनों को विराजमान कर खुद पर्वत के नीचे विराजमान हो गयीं. कहा जाता है कि नवरात्र की अष्टमी और नवमी को मां विंध्यवासिनी पर्वत के ऊपर विराजमान हो जाती हैं. आने वाले लाखो भक्तों के कष्टों का निवारण करती हैं. तभी से यहां लगभग 500 फीट ऊंचे पहाड़ पर सातों देवी मंदिर है. नीचे माता विंध्यवासिनी का मंदिर है जहां दूर-दूर से लोग अपनी-अपनी मन्नतें लेकर पहुंचते हैं.

Intro:SLUG- देवी ने इस पर्वत को दिया था कोढ़ी होने का श्राप
PLACE- BANDA
REPORT- ANAND TIWARI
DATE- 07-10-19
ANCHOR- विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में बसे बुन्देलखण्ड के बाँदा में माँ विंध्यवासिनी के कई स्थान बेहद महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं इन्ही में एक स्थान है खत्री पहाड़, जहाँ त्रेता युग में माँ विंध्यवासिनी विराजमान हुयी थी और आज भी लाखो श्रद्धालु यहाँ नवरात्र में उमड़ आते हैं। बताया जाता है यहाँ वही देवी हैं जिन्हे त्रेतायुग में कंस ने मारने का प्रयास किया था तो देवी कंस के हाथ से फिसलकर इसी पर्वत में आयी थी। लेकिन इस पर्वत ने उनका भार उठाने में असमर्थता व्यक्त की थी जिस पर देवी ने इस पर्वत को कोढ़ी होने का श्राप दे दिया था और इसके चलते पूरे पर्वत में सफ़ेद दाग हो गए जिससे इस पहाड़ का नाम खत्री पहाड़ हो गया और फिर यहाँ से देवी मिर्ज़ापुर के विंध्याचल में विराजमान हो गयी थी।
Body:वीओ- उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा में स्थित बाँदा के गिरवा में विंध्यवासिनी मंदिर पर वैसे तो हमेशा श्रद्धालुओं का तांता रहता है मगर अगर महीना नवरात्र का हो तो यहाँ माता के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुँच जाती है। ये स्थान बाँदा के गिरवा थाना क्षेत्र में खत्री पहाड़ पर स्थित है जहाँ माता विंध्यवासिनी विराजमान हैं। मान्यता है कि त्रेतायुग में कंस ने भगवान् श्रीकृष्ण के माता पिता को कारागार में कैद रखा था और जब भगवान् कृष्ण के जन्म के बाद उनके स्थान पर देवी महामाया को कंस ने मारने का प्रयास किया था। तो देवी कंस के हाथ से निकल कर इसी पर्वत में आयी थी। लेकिन इस पर्वत ने उनका भार उठाने में असमर्थता व्यक्त की थी जिस पर देवी ने इस पर्वत को कोढ़ी होने का श्राप दिया था जिससे पूरा पर्वत में सफ़ेद दाग हो गए और यहाँ से मिर्ज़ापुर विंध्याचल पर्वत में विराजमान हो गयी थी। तभी से इस पर्वत में भक्तो ने माँ विंध्यवासिनी की पूजा अर्चना शुरू कर दी थी। लोगो की मान्यता है की त्रेता युग से ही माँ विंध्यवासिनी  नवरात्र की अष्टमी और नवमी को मिर्ज़ापुर से खत्री पहाड़ आती थी और अपने भक्तो के कष्टो का निवारण करती थी।Conclusion:वीओ-2- ये भी मान्यता है कि सन 1974 में माँ विंध्यवासिनी ने बाँदा की एक 7 वर्षीय बालिका सपने में आईं और इस बच्ची ने खत्री पहाड़ को चिन्हित कर वहाँ देवी को विराजमान करने की कोशिश की थी। लेकिन माँ विंध्यवासिनी का भार उठाते ही पर्वत फटने लगा जिस पर माँ विंध्यवासिनी ने पर्वत के ऊपर अपनी सातो बहनो को विराजमान कर खुद पर्वत के नीचे विराजमान हो गयी। कहा जाता है कि नवरात्र की अष्टमी और नवमी को माँ विंध्यवासिनी पर्वत के ऊपर विराजमान हो जाती हैं और आने वाले लाखो भक्तो के कष्टो का निवारण करती हैं। और तभी से यहाँ लगभग 500 फीट ऊँचे पहाड़ पर सातों देवी मंदिर है और नीचे माता विंध्यवासिनी का मंदिर है जहाँ दूर दूर से लोग अपनी अपनी मन्नते लेकर पहुँचते हैं।

बाईट- रमेश,पुजारी
बाईट-शिवदास, श्रद्धालू
बाईट- रामलाल,श्रद्धालू
बाईट- पूजा,श्रद्धालू
 
ANANDTIWARI
BANDA 
9795000076 
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