बलरामपुरः जिले का तुलसीपुर विधानसभा क्षेत्र नेपाल बॉर्डर से सटा हुआ है. दोनों देशों की तकरीबन आधा दर्जन खुली सीमाएं हैं. यह विधानसभा अपने अस्तिव के साथ ही ब्राह्मण-मुस्लिम समीकरण का साक्षी रहा है. यहां के बारे में कहा जाता है कि जो इस समीकरण को साध लेता है, जनता उसी को अपने प्रतिनिधित्व के लिए सदन भेजती है. इसके साथ ही तुलसीपुर के देवीपाटन शक्तिपीठ में स्थित मां पटेश्वरी शक्तिपीठ का भी हाल के वर्षों में यहां की राजनीति में रुचि बढ़ी है. गोरक्षनाथ पीठ के अंतर्गत संचालित होने वाले इस पीठ से राजनीति की शुरुआत यहां के पीठाधीश्वर रहे योगी कौशलेन्द्र नाथ ने की थी. फिलहाल तुलसीपुर से भाजपा के कैलाशनाथ शुक्ल विधायक हैं, जिन्होंने कांग्रेस की जेबा रिजवान (अब सपा में) को शिकस्त दी थी.
तुलसीपुर विधानसभा सीट का इतिहास
तुलसीपुर विधानसभा सीट की जनता ने लगभग सभी दलों के प्रत्याशियों को भरपूर मौके दिए. यह सीट शुरुआत में सुरक्षित हुआ करती थी. इस पर दो बार जनसंघ के उम्मीदवार को विजय हासिल हुई. जबकि तीन बार इस दल से विधायक चुनकर जनता ने सदन भेजा. कांग्रेस से 3 बार मंगलदेव सिंह तो 1 बार संतराम ने विजय हासिल की. वहीं, 1991 में उपचुनावों में यहां भाजपा का खाता खुला. अब तक भाजपा से कुल 4 लोग विधानसभा जा चुके हैं. यहां की राजनीति में ठाकुर बनाम मुस्लिमवाद की शुरुआत के साथ रिजवान जहीर की राजनीति में एंट्री हुई.
बाहुबली नेता रिजवान जहीर ने निर्दलीय चुनाव लड़ते हुए पहली बार विजय हासिल की, वह कुल तीन बार विधायक चुने गए. अगर इस सीट पर देवीपाटन शक्तिपीठ के प्रभाव की बात की जाए तो वह हमेशा से रहा है. लेकिन भाजपा उम्मीदवार योगी कौशलेन्द्र नाथ ने इस सामने ला दिया. पहले मंदिर हिंदुत्व की विचारधारा वाली पार्टी या उम्मीदवार को अपना समर्थन या आशीष दिया करता था. इस सीट पर सपा का खाता खोलने का काम रिजवान जहीर ने किया. उसके बाद मसूद खान सपा से दो बार विधायक चुने गए. अभी इस सीट पर भाजपा का कब्जा है.
2017 चुनाव का नतीजा
विधानसभा चुनाव 2017 काफी रुचिकर रहा. इस सीट पर जहां कांग्रेस-सपा गठबंधन टूट गया. वहीं, भाजपा ने एक ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया, जिसे सार्वजनिक राजनीति का कोई विशेष अनुभव नहीं था. भाजपा की टिकट पर जहां संघ परिवार और भाजपा संगठन से आने वाले कैलाशनाथ शुक्ल को टिकट दिया. उनके सामने कांग्रेस से जहां जेबा रिज़वान थी. वहीं, सपा के टिकट पर मसूद खान भी मैदान में ताल ठोंक रहे थे. सीएम योगी आदित्यनाथ का दूसरा घर कहे जाने वाले तुलसीपुर विधानसभा में रोचक मुकाबला हुआ. इस सीट पर कैलाशनाथ शुक्ला को 62,296 कुल मत मिले. वहीं, 29 साल की जेबा रिजवान कुल 43,637 मत लेकर दूसरे स्थान पर रहीं. सपा के मसूद खान को मात्र 36,549 मत ही प्राप्त हुए. इस रोचक मुकाबले में कैलाशनाथ शुक्ला 18,659 मतों से विजयी हुए.
इस सीट का जातीय समीकरण
बलरामपुर सदर सीट के बाद सबसे ज्यादा हिन्दू आबादी तुलसीपुर विधानसभा में रहती है. इस सीट के 67.50 प्रतिशत वोटर हिन्दू हैं. जबकि कुल 37 फीसदी आबादी मुस्लिम है. वही, इसाई और अन्य जातियों की कुल आबादी 0.50 प्रतिशत है. यहाँ पर एसटी आबादी नहीं रहती. जबकि एससी आबादी में चमार 6.5, कोरी 4.5, पासी 05, अन्य 03 प्रतिशत हैं हैं. ओबीसी में यादव 08, कुर्मी 07, तेली 02 व अन्य 04 फीसदी हैं. इसी तरह सामान्य वर्ग में ठाकुर 13, ब्राह्मण 11, कायस्थ 05 और अन्य 04 फीसद हैं.
यहां के स्थानीय मुद्दे
तुलसीपुर विधानसभा सीट पर भी राप्ती नदी और उसके सहायक नाले हर साल बाढ़ के रूप में कहर बरपातें है. यहां के लोगों की प्रमुख समस्या बाढ़ से ही जनित है, जिससे निजात दिलाने के लिए काफी हद तक भाजपा सरकार में काम किया गया है. इस क्षेत्र में बालिका विद्यालय, इंटर कॉलेज, महिला डिग्री कॉलेज व चिकित्सीय सुविधाओं के लिए बेहतर अस्पतालों की कमी है. यहां एक सीएचसी और आधा दर्जन पीएचसी है. लेकिन ये अस्पताल तकरीबन 7 लाख की आबादी का भार नहीं ढो पा रहे हैं. लोगों के लिए स्वस्थ्य रहना महंगा साबित हो रहा है. प्राइवेट अस्पताल लोगों से मनमानी रकम वसूल कर रहे हैं.
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तुलसीपुर विधानसभा सीट के युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाना पड़ता है. यहां पर यदि उच्च शिक्षा के संस्थानों को खोला जाए तो कुछ हद तक यह परेशानी दूर की जा सकती है. भाजपा सरकार में एक पॉलिटेक्निक, एक आईटीआई का निर्माण तो किया गया है. लेकिन वह अभी शुरू नहीं हो पाया है. ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का नितांत अभाव है, जिसके कारण ग्रामवासियों को जिला मुख्यालय पहुंचने में परेशानी होती है. तराई का इलाका होने के कारण यहाँ पेय जल की भी नितांत समस्या है. इसके कारण कई गंभीर बीमारियों से लोग ग्रसित हो रहे हैं. हर घर नल योजना के जरिये इस दिशा में काम तो किया जा रहा है लेकिन सफल होता नहीं दिख रहा है.