बलरामपुर: नीति आयोग के 115 पिछड़े आकांक्षावादी जिलों में बलरामपुर शामिल है. इसके विकास के लिए नीति आयोग, केंद्र सरकार, राज्य सरकार ने गोद ले रखा है. हाल ही में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में बलरामपुर जिला पहले की तरह ही फिसड्डी रहा है.
बलरामपुर अस्पताल की ऐसी है हालत...
संस्थागत प्रसव की दर राष्ट्रीय औसत से बेहद कम है. इसके साथ ही शिशु मृत्यु दर पर भी तमाम कवायदों के बाद भी काबू नहीं किया जा सका है. अप्रैल 2019 में आए एनएचएफएस 4 के सर्वेक्षण के मुताबिक जिले में संस्थागत प्रसव की दर महज 31 फीसदी है.
तुलसीपुर और गैंसड़ी में एक-एक सीएचसी हैं. गांव में कम से कम 5 किमी से पहले कोई अस्पताल नहीं है. अगर किसी की तबियत खराब हो जाए तो उसे सीएचसी ही जाना पड़ता है.
सीएचसी के डॉक्टर स्टाफ ने गांव में आकर न तो हमारा चेक अप किया गया. न ही हमे किसी तरह की दवाइयां दी गई, न ही टीके लगाए गए. बलरामपुर में चेकअप के लिए गए, तो वहां पर हम जैसे गरीब लोगों से अल्ट्रासाउंड के 200 से 500 रुपये वसूले गये. जिसके बाद हमें महिला चिकित्सालय में इलाज मिल सका.
गर्भवती महिला राजकुमारी
सीएमओ ने बताई गांव की समस्या
- सबसे बड़ा कारण यहां पर शिक्षा और विकास का न होना है. बाहरी दुनिया से जुड़ने के नाम पर यहां केवल रेडियो है. इसके अलावा यहां विकास के कोई संसाधन नहीं है. गांव में टीवी की पहुंच कम है क्योंकि बिजली अभी भी गांवों में नहीं पहुंच सकी है.
- यहां पर शिक्षा का स्तर केवल 50 फीसद ही है. ऐसे में इन तमाम सुविधाओं के प्रति लोगों को जागरूक कर पाना असंभव सी बात लगती है.
- सर्वे में बलरामपुर का पीछे रहना जागरूकता की कमी मुख्य वजह है. सरकार की नीतियां बेहद कम लोगों तक पहुंच पाती है.
- नीति आयोग ने बलरामपुर जिले को गोद लिया है. इसके बाद स्थिति में लगातार सुधार आ रहा है. संस्थागत प्रसव की दर न केवल बढ़ी है, बल्कि सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का बेहतर होना भी इस तरफ एक सकारात्मक आयाम बनाता है.