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एक फसल जिसने बदली जिंदगी, दो से बना 250 बीघे खेत का मालिक

सादुल्लानगर ग्राम सभा इटई अब्दुल्ला चपरतलवा के रहने वाले 65 वर्षीय रियाज अहमद केले की खेती कर अच्छी आय कमा रहे हैं. उन्होंने दो बीघे से खेती शुरू की थी, जो अब ढाई सौ बीघे में बदल चुकी है.

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Published : Jul 9, 2019, 6:38 PM IST

केले की खेती कर करोड़ों कमा रहा यह किसान.

बलरामपुर: यूं तो बलरामपुर जिला कई कारणों से मशहूर है. जब दिल्ली में बैठा कोई इंसान बलरामपुर के केले के स्वाद को चखता है तो उसे लगता है कि यहां के किसानों में भी वो ताकत है, जिसके जरिए वो पैसा कमा रहे हैं. साथ ही साथ जिले का नाम भी रोशन कर रहे हैं.

सादुल्लानगर ग्राम सभा इटई अब्दुल्ला चपरतलवा के रहने वाले 65 वर्षीय किसान रियाज अहमद और उनके बेटे अदील खान पिछले 30 वर्षों से केले की खेती कर रहे हैं. उन्होंने केले की खेती की शुरुआत दो बीघे से की थी, जो अब ढाई सौ बीघे में बदल चुकी है. इस खेती के जरिए न केवल वह खुद कमा रहे हैं, बल्कि तमाम लोगों के खेतों को लीज पर लेकर उन्हें बेहतर मुनाफा देते हैं.

केले की खेती कर करोड़ों कमा रहा यह किसान.

रियाज अहमद ने इस केले की खेती से बेहतर वैज्ञानिक खेती सीखी. बाराबंकी के रहने वाले पद्मश्री से सम्मानित किसान रामशरण वर्मा से प्रेरणा लेकर उन्होंने सादुल्लाह नगर के कई छोटे-छोटे किसानों को केले की किसानी की टिप्स देकर उनकी जिंदगी भी बेहतर करने का काम किया है.

ऊंचाई वाली जमीन पर होती है खेती
वह कहते हैं कि धीरे-धीरे इसी खेती से कमाते गए. जिले की जमीन केले की किसानों के लिए सही न होने की बात पर उन्होंने कहा कि असल में केले को बस ऊंचाई वाली जमीन चाहिए होती है. इस इलाके की खेती इसलिए बेहतर होती है क्योंकि यहां पर कभी बाढ़ नहीं आती. सरकार से बहुत ज्यादा सहयोग नहीं मिलता. कई योजनाएं चल रही हैं, जिसका समय-समय पर फायदा मिलता रहता है.

कृषि विभाग कर चुका है पुरस्कृत
उन्होंने कहा कि केले की किसानी के लिए उन्हें श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र से सांसद दद्दन मिश्रा ने कई बार पुरस्कृत भी किया है. इसके अलावा कृषि विभाग और उद्यान विभाग द्वारा भी उन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है. खेतों में पैदा होने वाले केले न केवल देश की राजधानी दिल्ली जाते हैं, बल्कि चंडीगढ़, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे जगहों पर भी जाते हैं.

बलरामपुर: यूं तो बलरामपुर जिला कई कारणों से मशहूर है. जब दिल्ली में बैठा कोई इंसान बलरामपुर के केले के स्वाद को चखता है तो उसे लगता है कि यहां के किसानों में भी वो ताकत है, जिसके जरिए वो पैसा कमा रहे हैं. साथ ही साथ जिले का नाम भी रोशन कर रहे हैं.

सादुल्लानगर ग्राम सभा इटई अब्दुल्ला चपरतलवा के रहने वाले 65 वर्षीय किसान रियाज अहमद और उनके बेटे अदील खान पिछले 30 वर्षों से केले की खेती कर रहे हैं. उन्होंने केले की खेती की शुरुआत दो बीघे से की थी, जो अब ढाई सौ बीघे में बदल चुकी है. इस खेती के जरिए न केवल वह खुद कमा रहे हैं, बल्कि तमाम लोगों के खेतों को लीज पर लेकर उन्हें बेहतर मुनाफा देते हैं.

केले की खेती कर करोड़ों कमा रहा यह किसान.

रियाज अहमद ने इस केले की खेती से बेहतर वैज्ञानिक खेती सीखी. बाराबंकी के रहने वाले पद्मश्री से सम्मानित किसान रामशरण वर्मा से प्रेरणा लेकर उन्होंने सादुल्लाह नगर के कई छोटे-छोटे किसानों को केले की किसानी की टिप्स देकर उनकी जिंदगी भी बेहतर करने का काम किया है.

ऊंचाई वाली जमीन पर होती है खेती
वह कहते हैं कि धीरे-धीरे इसी खेती से कमाते गए. जिले की जमीन केले की किसानों के लिए सही न होने की बात पर उन्होंने कहा कि असल में केले को बस ऊंचाई वाली जमीन चाहिए होती है. इस इलाके की खेती इसलिए बेहतर होती है क्योंकि यहां पर कभी बाढ़ नहीं आती. सरकार से बहुत ज्यादा सहयोग नहीं मिलता. कई योजनाएं चल रही हैं, जिसका समय-समय पर फायदा मिलता रहता है.

कृषि विभाग कर चुका है पुरस्कृत
उन्होंने कहा कि केले की किसानी के लिए उन्हें श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र से सांसद दद्दन मिश्रा ने कई बार पुरस्कृत भी किया है. इसके अलावा कृषि विभाग और उद्यान विभाग द्वारा भी उन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है. खेतों में पैदा होने वाले केले न केवल देश की राजधानी दिल्ली जाते हैं, बल्कि चंडीगढ़, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे जगहों पर भी जाते हैं.

Intro:खेती किसानी से मुनाफा कौन नहीं कमाना चाहता। किसे यह चाहत नहीं होती कि वह अपने 2 बीघे की खेती को 50 एकड़ में फैला लिया जाए। किसे यह चाहत नहीं होती कि वह अपनी खेती की कमाई से करोड़ों के साजो सामान खरीद ले और पूरे कृषक समाज के लिए उन्नत खेती का एक बेहतरीन उदाहरण साबित हो सके। लेकिन किसानों में जागरूकता की कमी, खेती किसानी से जुड़ी शैक्षिक जानकारियों की कमी व दूरदराज इलाकों में सिंचाई व अन्य संसाधनों की कमी के कारण यह चीजें जिले में अभी तक संभव होती दिखाई नहीं दे रही हैं। वहीं, जिले के कुछ किसान ऐसे हैं जो खुद को अन्य किसानों के लिए नजीर की तरह साबित कर रहे हैं।


Body:यूं तो बलरामपुर जिला कई कारणों से मशहूर है लेकिन जब दिल्ली में बैठक कोई इंसान बलरामपुर के केले के स्वाद को चखता है तो उसे लगता है कि यहां के किसानों में भी वो ताकत है, जिसके जरिए वो न केवल पैसा कमा रहे हैं। बल्कि अपने साथ-साथ जिले का नाम भी रौशन कर रहे हैं।
यह सब मुमकिन कर पा रहे सादुल्लानगर ग्राम सभा इटई अब्दुल्ला चपरतलवा के रहने वाले 65 वर्षीय किसान रियाज अहमद और उनके बेटे अदील खान की मेहनत और लगन की वजह से। रियाज अहमद और उनके बड़े बेटे अदील पिछले 30 वर्षों से केले की खेती कर रहे हैं। उन्होंने इसकी अपने घर से दूर होकर केले की खेती की शुरुआत 2 बीघे से की थी, जो अब तकरीबन ढाई सौ बीघे के बड़े फॉर्म हाउस में बदल चुकी है। इस खेती के जरिए न केवल वह खुद फायदा काम आते हैं। बल्कि तमाम लोगों के खेतों को लीज पर लेकर उन्हें बेहतर मुनाफा देते हैं।
रियाज अहमद से किसानी के टिप्स लेने के लिए तमाम किसान लगातार उनके संपर्क में रहते हैं, जिससे वह अपनी खेती को मुनाफे का सौदा बना सकें।
रियाज अहमद ने इसी केले की खेती की बदौलत न केवल बेहतर वैज्ञानिक खेती सीखी। बल्कि बाराबंकी के रहने वाले पद्मश्री से सम्मानित किसान रामशरण वर्मा से प्रेरणा लेकर उन्होंने सादुल्लाह नगर के कई छोटे-छोटे किसानों को केले की किसानी की टिप्स देकर उनकी जिंदगी भी बेहतर करने का काम किया है।
रियाज अहमद ने केले की खेती के जरिए ही बड़ी-बड़ी मशीनों से लेकर छोटी छोटी मशीनें खरीदी है। जिसके जरिए न केवल उनकी खेती आसान हो सकी है। बल्कि काम भी तेजी से हो पा रहा है। रियाज़ अहमद जिले के किसानों के एक नज़ीर की तरह है।


Conclusion:रियाज अहमद इस बारे में बात करते हुए कहते है कि 2 बीघे से स्टार्ट करके धीरे-धीरे भर्ती लगाते हुए हमने अपनी खेती को आगे बढ़ाया है। आज हम ढाई सौ बीघे पर केले की खेती कर रहे हैं। जिसमें से तमाम जमीन हमने लोगों से लीज पर ले रखा है।
वह कहते हैं कि हम धीरे-धीरे इसी खेती से कमाते गए और धीरे-धीरे तमाम साजोसामान भी खरीदे गए। जिससे हमारी खेती बेहद आसान होती गई। अब हमें बहुत ज्यादा मैन पावर की जरूरत नहीं पड़ती। हम लोग काफी कुछ काम मशीनों से कर लेते हैं। उनके ज़रिए काम न केवल परफेक्ट होता है। बल्कि समय की भी काफी बचत होती है।
जिले की जमीन केले की किसानों के लिए मुफीद ना होने की बात पर कहते हैं कि असल में केले को बस ऊंचाई वाली जमीन चाहिए होती है। अगर कोई भी खेत ऊंचाई पर है जहां पर बाढ़ इत्यादि की समस्या नहीं आती तो वहां पर केले की खेती की जा सकती है। संयोगवश इस इलाके की खेती इसलिए बेहतर होती है क्योंकि यहां पर कभी बाढ़ नहीं आती।
सरकार द्वारा केले की किसानी के लिए सहयोग की बात पर वह कहते हैं कि बहुत ज्यादा तो सहयोग नहीं मिलता। लेकिन कभी-कभी छोटी मोटी जरूरतें पूरी हो जाती है। कई योजनाएं चल रही हैं जिसका समय-समय पर फायदा मिलता रहता है।
वह कहते हैं कि केले की किसानी के लिए उन्हें श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र से सांसद दद्दन मिश्रा ने कई बार पुरस्कृत भी किया है। इसके अलावा कृषि विभाग व उद्यान विभाग द्वारा भी उन्हें पुरस्कृत किया जा चुका है।
साथ ही किसानों के लिए वह कहते हैं कि जो किसान भी केले की खेती करना चाहते हैं शुरुआत 1-2 बीघे से करें। धीरे-धीरे जब एक्सपीरियंस बढ़ता जाए और लागत का पैसा जुटता जाए तो वह इसको बड़े पैमाने पर कर सकते हैं।
वह कहते हैं कि हमारे खेतों में पैदा होने वाले केले न केवल देश की राजधानी दिल्ली जाते हैं। बल्कि चंडीगढ़, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे जगहों के लोग भी हमारे खेतों में पैदा होने वाले केले का स्वाद चखते हैं।
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