अयोध्या में भले ही मंदिर और मस्जिद का विवाद बरसों से चला आ रहा था लेकिन उसी अयोध्या में भाईचारे की नींव भी गहरी थी. सैकड़ों साल के दौरान भी अयोध्या का वजूद बना रहा तो इसलिए कि यहां सद्भाव जिंदा रहा. अयोध्या के मंदिरों में पहनने और पूजी जाने वाली खड़ाऊं इस बात का जीता-जागता सबूत है.
हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल
यहां के खड़ाऊं सरयू तीरे गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल हैं. रामचरित मानस के मुताबिक श्रीराम के भाई भरत ने उनकी खड़ाऊं रखकर 14 वर्षों तक अयोध्या का शासन चलाया था. भाई भरत के प्रेम की मिसाल आज भी अयोध्यावाली अपने संस्कारों में सहेजे हुए हैं. आज सैकड़ों मंदिरों में संत और महंत अपने पूर्वजों की चरण पादुका का पूजन कर मंदिर की व्यवस्था को संभाल रहे हैं. भले ही आज के दौर में आम लोग खड़ाऊं नहीं पहनते हों लेकिन मंदिरों में पूजा-पाठ से जुड़े संत और महंत इसका उपयोग जरुर करते हैं. खास बात यह है कि ये खड़ाऊं बनाने वाले कारीगर मुस्लिम बिरादरी से हैं. मुस्लिमों के हाथों बने खड़ाऊं को हिंदू पुजारी बेझिझक पहनते हैं.
अब कम हो रही खड़ाऊं की मांग
अयोध्या के बाबू बाजार मोहल्ले में खड़ाऊं बनाने के कई कारखाने हैं. जहूर मियां और युसूफ मियां के खानदान के लोग आज भी इस पेशे से जुड़े हैं. आज जब खड़ाऊं की मांग कम हो गई है तब भी खड़ाऊं बनाते हैं. जहूर मियां का कहना है कि खड़ाऊं अब पहनने की नहीं पूजा की वस्तु बनकर रह गई है. कम होती खड़ाऊं की मांग का असर इसके कारीगरों पर भी पड़ा है. अब यह कारोबार दम तोड़ता नजर आ रहा है. वहीं लोग यह भी कहते हैं कि अयोध्या-फैजाबाद मार्ग के चौड़ीकरण होने की वजहसे इन कारोबारियों को अपनी दुकानों के खोने का डर भी सता रहा है. वहीं आर्थिक तंगी की वजह से अब ये कारीगर रोजगार के दूसरे साधन तलाशने के लिए मजबूर हो गए हैं.
कारीगरों पर भी पड़ रहा असर
बाबू बाजार निवासी सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. जगदीश जायसवाल बताते हैं कि संत बिरादरी में खड़ाऊं पहनने का प्रचलन भी अब कम हुआ है. इसका असर भी कारीगरों पर पड़ रहा है. अयोध्या में बने खड़ाऊं की मांग हरिद्वार, वृंदावन, वाराणसी आदि धार्मिक जगहों पर भी है.