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भक्तों के लिए चंदन है राम जन्मभूमि के रजकण, विदेशों में भी है मांग - गर्भगृह की नींव से निकली मिट्टी

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्मभूमि की नींव से निकली मिट्टी भी आस्था की प्रतीक बन गई है. हालत यह है कि डिमांड को देखते हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को डिब्बियों में रखकर 'रजकण' उपलब्ध कराना पड़ रहा है. कोरोना के कारण विदेशों में रजकण नहीं भेजे जा रहे हैं, मगर अप्रवासी भारत में रहने वाले अपने रिश्तेदार और परिचितों के जरिए रजकण (मिट्टी) सहेज रहे हैं.

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विदेशों में श्रीराम जन्मभूमि की मिट्टी की मांग.
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Published : Apr 12, 2021, 7:59 PM IST

अयोध्या : श्रीराम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद से ही देश और विदेश में रहने वाले रामभक्त उत्साहित हैं. हर किसी में इस आस्था की भूमि से जुड़ने की ललक बनी हुई है. यही कारण है कि लोग राम जन्मभूमि स्थल से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीजों को अपने पास रखना चाहते हैं. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कार्यालय प्रभारी प्रकाश गुप्ता के अनुसार, अयोध्या में रामलला के जन्मस्थान पर मंदिर के लिए जब नींव खोदी गई तो वहां से भारी मात्रा में मिट्टी निकली. हालत यह है कि इस मिट्टी की मांग देश और विदेशों से होने लगी. भक्तों की आस्था को देखते हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट क्षेत्र ने नींव से निकली पवित्र रज को डिब्बी में डालकर रामभक्तों को समर्पित कर दिया.

विदेशों में श्रीराम जन्मभूमि की मिट्टी की मांग.

कारसेवकपुरम में रखी है गर्भगृह की नींव से निकली मिट्टी

राम मंदिर निर्माण के लिए नींव की खुदाई में निकली मिट्टी भक्तों के लिए आस्था की प्रतीक बन गई है. अयोध्या में रामलला के दर्शन करने वाले भक्त गर्भगृह से निकले रजकण मांगते हैं. ऐसे श्रद्धालुओं को डिब्बी में मिट्टी दी जा रही है. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसका नाम 'राम जन्मभूमि रजकण' दिया है. प्रकाश गुप्ता ने बताया कि मंदिर और गर्भगृह से निकली मिट्टी कारसेवकपुरम में रखी है, जो श्रद्धालुओं में वितरित की जा रही है.

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रामलला.

कोरोना काल के बाद अप्रवासियों को भेजेंगे रजकण

विश्व हिंदू परिषद् के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने बताया कि अब रामलला का दर्शन करने वालों को रामरज सहजता के साथ मिल रहा है. भारत के साथ विदेशों में बैठे रामभक्त भी अपने परिजनों-परिचितों के जरिए रामरज मंगवा रहे हैं. अप्रवासी भारतीयों की ओर से भी रामरज की मांग हो रही है. इसकी मांग उन देशों में सर्वाधिक है, जहां राम की पूजा होती. रामलीला अभी भी संस्कृति की वाहक है. श्रीलंका, मॉरीशस, थाईलैंड, नेपाल और अमेरिका में रहने वाले प्रवासी 'रामजन्मभूमि रजकण' मंगवाना चाहते हैं. कोरोना के कारण उन तक रामरज पहुंचाना संभव नहीं है. कोरोना काल के बाद अप्रवासी रामभक्तों को भी रजकण उपलब्ध हो सकेगा.

अयोध्या : श्रीराम मंदिर का निर्माण शुरू होने के बाद से ही देश और विदेश में रहने वाले रामभक्त उत्साहित हैं. हर किसी में इस आस्था की भूमि से जुड़ने की ललक बनी हुई है. यही कारण है कि लोग राम जन्मभूमि स्थल से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीजों को अपने पास रखना चाहते हैं. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के कार्यालय प्रभारी प्रकाश गुप्ता के अनुसार, अयोध्या में रामलला के जन्मस्थान पर मंदिर के लिए जब नींव खोदी गई तो वहां से भारी मात्रा में मिट्टी निकली. हालत यह है कि इस मिट्टी की मांग देश और विदेशों से होने लगी. भक्तों की आस्था को देखते हुए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट क्षेत्र ने नींव से निकली पवित्र रज को डिब्बी में डालकर रामभक्तों को समर्पित कर दिया.

विदेशों में श्रीराम जन्मभूमि की मिट्टी की मांग.

कारसेवकपुरम में रखी है गर्भगृह की नींव से निकली मिट्टी

राम मंदिर निर्माण के लिए नींव की खुदाई में निकली मिट्टी भक्तों के लिए आस्था की प्रतीक बन गई है. अयोध्या में रामलला के दर्शन करने वाले भक्त गर्भगृह से निकले रजकण मांगते हैं. ऐसे श्रद्धालुओं को डिब्बी में मिट्टी दी जा रही है. रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने इसका नाम 'राम जन्मभूमि रजकण' दिया है. प्रकाश गुप्ता ने बताया कि मंदिर और गर्भगृह से निकली मिट्टी कारसेवकपुरम में रखी है, जो श्रद्धालुओं में वितरित की जा रही है.

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रामलला.

कोरोना काल के बाद अप्रवासियों को भेजेंगे रजकण

विश्व हिंदू परिषद् के मीडिया प्रभारी शरद शर्मा ने बताया कि अब रामलला का दर्शन करने वालों को रामरज सहजता के साथ मिल रहा है. भारत के साथ विदेशों में बैठे रामभक्त भी अपने परिजनों-परिचितों के जरिए रामरज मंगवा रहे हैं. अप्रवासी भारतीयों की ओर से भी रामरज की मांग हो रही है. इसकी मांग उन देशों में सर्वाधिक है, जहां राम की पूजा होती. रामलीला अभी भी संस्कृति की वाहक है. श्रीलंका, मॉरीशस, थाईलैंड, नेपाल और अमेरिका में रहने वाले प्रवासी 'रामजन्मभूमि रजकण' मंगवाना चाहते हैं. कोरोना के कारण उन तक रामरज पहुंचाना संभव नहीं है. कोरोना काल के बाद अप्रवासी रामभक्तों को भी रजकण उपलब्ध हो सकेगा.

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