अम्बेडकरनगर: जनपद कपड़ा बुनाई के लिए प्रदेश में ही नही पूरे देश में जाना जाता है. गुलाम भारत में अंग्रेज भी यहां के बुनकरों के हुनर के कायल थे. लेकिन आज यहां कपड़ा के बुनकर बदहाली में पहुंच रहे हैं. शासन से दावे तो बहुत किये गए लेकिन यहां के बुनकरों को आज तक वो बाजार नहीं मिला जहां से वे कच्चा माल खरीद सके और तैयार माल बेच सकें.
वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट में शामिल
बीजेपी सरकार ने जब वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत इस जिले के लिए कपड़ा बुनाई को चुना तो यहां के बुनकरों में उम्मीद की किरण जगी कि अब उनके हुनर को पंख लगेंगे, लेकिन उनकी यह कल्पना महज कोरी कल्पना साबित होती दिख रही है. इससे भी उनकी हालात में कोई सुधार नही हुआ है. बुनकरों की समस्या को लेकर ईटीवी भारत ने कुछ बुनकरों से जब बात की तो उनका दर्द छलक उठा.
आजादी के पहले हो रही है बुनाई
जिले के टांडा और जलालपुर में आजादी के पहले से ही कपड़े की बुनाई हो रही है, लेकिन मशीनरी व्यवस्था के सामने खटर पटर वाली पावर लूम टिक नही पा रही है. टांडा टेरीकाट तो आज भी प्रसिद्ध है.
बुनकरों की समस्याएं
बुनकरों की समस्याओं को लेकर जब हमने इनसे बात किया तो कुछ बुनकरों ने बताया कि बिजली और महंगाई सबसे बड़ी समस्या है. वहीं कुछ अन्य बुनकरों का कहना है कि बुनकरों के लिए आज तक कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां से हम अपना कच्चा माल लें और तैयार माल बेच दें.
धागे के दाम में कोई स्थिरता नही रहती है. महंगाई की वजह से गरीब बुनकरों को ज्यादा मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. सरकार को चाहिए कि कोई एक निश्चित स्थान बनाये, जहां से हम कच्चा माल लें और तैयार माल बेच दें.
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