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भाजपा से अलग होने पर कल्याण सिंह को मुलायम ने दिया था सियासी सहारा

समाजवादी पार्टी के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव नहीं रहे. सियासी तौर पर कल्याण सिंह को भाजपा से अलग होने के बाद मुलायम सिंह यादव ने ही सहारा दिया था.

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पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह
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Published : Oct 10, 2022, 2:44 PM IST

अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव अब नहीं रहे. उनके चले जाने से पूरे देश में शोक का माहौल है, हर कोई इस सूचना से हतप्रभ है.मुलायम सिंह यादव से जुड़ी तमाम ऐसी यादें हैं, जो लोगों के जेहन में आज भी जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगी. इन्हीं यादों के झरोखों में से कुछ यादें अलीगढ़ से भी जुड़ी हुई है. पूर्व सीएम कल्याण सिंह जब संकट के दौर से गुजर रहे थे तब मुलायम सिंह यादव ने उन्हें सहारा दिया था. उनकी बनाई गई राष्ट्रीय क्रांति पार्टी को साथ में लेकर 2004 , 2007, 2009 में चुनाव लड़ा गया था. जब कल्याण सिंह भाजपा से अलग हुए तो मुलायम सिंह यादव और कल्याण की दोस्ती परवान चढ़ी थी. दोनों के बीच काफी करीबी थी और दोनों ही एक दूसरे को मित्र कहते थे.

मुलायम सिंह के सबसे पुराने साथी और सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रछपाल सिंह बताते हैं कि सियासी तौर पर कल्याण सिंह को भाजपा से अलग होने के बाद सहारा दिया गया था. उन्होंने बताया कि मुलायम सिंह यादव अतरौली क्षेत्र में पार्टी की बैठक लेने के लिए आया करते थे. वहीं, चुनावी जनसभाओं को संबोधित करने के लिए कल्याण सिंह के गढ़ में भी आए थे. 2007 और 2009 के चुनाव में कल्याण सिंह के गढ़ में मंच साझा किया था. तब अतरौली के आलमपुर गांव में दोनों नेताओं ने मंच साझा किया था.

दोनों ही बड़ी राजनीतिक शख्सियत थी. सन् 2002 के दौरान जब कल्याण सिंह की बीजेपी के बड़े नेताओं से रिश्ते खराब हो गए थे और बीजेपी से अलग होकर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बना ली थी तब मुलायम सिंह यादव ने उनके वजूद को कम नहीं होने दिया था. तब कल्याण सिंह कहा करते थे कि यह दोस्ती भारतीय जनता पार्टी को खत्म करने के लिए काफी है. हालांकि, कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता कभी नहीं ली थी लेकिन उनके बेटे राजवीर राजू भैया और कुसुम राय ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा था. तब मुलायम सिंह यादव ने इसे गठबंधन नहीं, बल्कि दोस्ती का नाम दिया था. कल्याण सिंह ने दो दिलों के मिलने की बात कही थी.


जब 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद गिरी थी. तब मुलायम सिंह यादव की मौलाना मुलायम और कल्याण सिंह की हिंदू हृदय सम्राट की पहचान बन गई थी. तब दोनों के बीच तल्खी इतनी बढ़ गई थी कि सियासत के साथ-साथ निजी तौर पर भी दोनों अलग-अलग ध्रुव पर खड़े थे. समय बीतने के साथ दोनों के संबंध सामान्य हो गए. मुलायम सिंह के 1977 से साथी रहे रक्षपाल सिंह बताते है कि जब मुलायम सिंह यादव किसी से दोस्ती करते थे तो पूरी मदद करते थे.

इसे भी पढ़े-अलविदा धरतीपुत्र, वाराणसी का एक परिवार जो रखता था मुलायम सिंह का ख्याल

हालांकी, सियासत में दोनों के कद और पद में लगभग समानताएं थी. हालांकि विचारों में दोनों ने विपरीत ध्रुवों के साथ राजनीतिक सफर शुरू किया था. 1967 में कल्याण सिंह जनसंघ के टिकट पर पहली बार विधायक चुनकर आए. वहीं मुलायम सिंह घोर समाजवादी विचारों से प्रेरित थे. 1977 में जनता पार्टी की सरकार में मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह दोनों ही सरकार में मंत्री थे. दोनों ने ही पिछड़ों की सियासत में भागीदारी को लेकर काम किया.

2009 में मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह मिले थे. उस समय लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह और कल्याण सिंह जनसभाओं में लोगों को संबोधित करते थे. इस दौरान मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह को समाजवादी पार्टी की लाल टोपी भी पहनाई और नारे भी लगवाए थे. हालांकि, मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह की दोस्ती के कसीदे पढ़े गए लेकिन इन दोनों नेताओं की दोस्ती आगे नहीं चल पाई. वर्ष 2009 के चुनाव में सपा को नुकसान हुआ. वहीं, सपा के अंदर भी कल्याण सिंह के खिलाफ आवाज उठने लगी थी. बाद में मुलायम सिंह यादव ने खुलासा किया था कि बीजेपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से हाथ मिलाना उनकी सबसे बड़ी गलती थी और इसके लिए उन्होंने माफी भी मांगी थी.

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य विनोद सविता ने बताया कि मुलायम सिंह यादव जनसभाओं में कल्याण सिंह को बड़ा भाई कहकर बुलाते थे और उन्हें अपनी पार्टी के मंचों पर सम्मान देते थे. उन्होंने बताया कि जब कल्याण सिंह बुलंदशहर लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे तब मुलायम सिंह यादव ने अपरोक्ष रूप से उनकी मदद की थी.

यह भी पढ़े-अपने फैसलों पर हमेशा अड़े रहे मुलायम, अयोध्या गोलीकांड के लिए भी नहीं मांगी माफी

अलीगढ़: उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव अब नहीं रहे. उनके चले जाने से पूरे देश में शोक का माहौल है, हर कोई इस सूचना से हतप्रभ है.मुलायम सिंह यादव से जुड़ी तमाम ऐसी यादें हैं, जो लोगों के जेहन में आज भी जिंदा हैं और हमेशा जिंदा रहेंगी. इन्हीं यादों के झरोखों में से कुछ यादें अलीगढ़ से भी जुड़ी हुई है. पूर्व सीएम कल्याण सिंह जब संकट के दौर से गुजर रहे थे तब मुलायम सिंह यादव ने उन्हें सहारा दिया था. उनकी बनाई गई राष्ट्रीय क्रांति पार्टी को साथ में लेकर 2004 , 2007, 2009 में चुनाव लड़ा गया था. जब कल्याण सिंह भाजपा से अलग हुए तो मुलायम सिंह यादव और कल्याण की दोस्ती परवान चढ़ी थी. दोनों के बीच काफी करीबी थी और दोनों ही एक दूसरे को मित्र कहते थे.

मुलायम सिंह के सबसे पुराने साथी और सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रछपाल सिंह बताते हैं कि सियासी तौर पर कल्याण सिंह को भाजपा से अलग होने के बाद सहारा दिया गया था. उन्होंने बताया कि मुलायम सिंह यादव अतरौली क्षेत्र में पार्टी की बैठक लेने के लिए आया करते थे. वहीं, चुनावी जनसभाओं को संबोधित करने के लिए कल्याण सिंह के गढ़ में भी आए थे. 2007 और 2009 के चुनाव में कल्याण सिंह के गढ़ में मंच साझा किया था. तब अतरौली के आलमपुर गांव में दोनों नेताओं ने मंच साझा किया था.

दोनों ही बड़ी राजनीतिक शख्सियत थी. सन् 2002 के दौरान जब कल्याण सिंह की बीजेपी के बड़े नेताओं से रिश्ते खराब हो गए थे और बीजेपी से अलग होकर राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बना ली थी तब मुलायम सिंह यादव ने उनके वजूद को कम नहीं होने दिया था. तब कल्याण सिंह कहा करते थे कि यह दोस्ती भारतीय जनता पार्टी को खत्म करने के लिए काफी है. हालांकि, कल्याण सिंह ने समाजवादी पार्टी की सदस्यता कभी नहीं ली थी लेकिन उनके बेटे राजवीर राजू भैया और कुसुम राय ने समाजवादी पार्टी का दामन थामा था. तब मुलायम सिंह यादव ने इसे गठबंधन नहीं, बल्कि दोस्ती का नाम दिया था. कल्याण सिंह ने दो दिलों के मिलने की बात कही थी.


जब 6 दिसंबर 1992 में अयोध्या में जब बाबरी मस्जिद गिरी थी. तब मुलायम सिंह यादव की मौलाना मुलायम और कल्याण सिंह की हिंदू हृदय सम्राट की पहचान बन गई थी. तब दोनों के बीच तल्खी इतनी बढ़ गई थी कि सियासत के साथ-साथ निजी तौर पर भी दोनों अलग-अलग ध्रुव पर खड़े थे. समय बीतने के साथ दोनों के संबंध सामान्य हो गए. मुलायम सिंह के 1977 से साथी रहे रक्षपाल सिंह बताते है कि जब मुलायम सिंह यादव किसी से दोस्ती करते थे तो पूरी मदद करते थे.

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हालांकी, सियासत में दोनों के कद और पद में लगभग समानताएं थी. हालांकि विचारों में दोनों ने विपरीत ध्रुवों के साथ राजनीतिक सफर शुरू किया था. 1967 में कल्याण सिंह जनसंघ के टिकट पर पहली बार विधायक चुनकर आए. वहीं मुलायम सिंह घोर समाजवादी विचारों से प्रेरित थे. 1977 में जनता पार्टी की सरकार में मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह दोनों ही सरकार में मंत्री थे. दोनों ने ही पिछड़ों की सियासत में भागीदारी को लेकर काम किया.

2009 में मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह मिले थे. उस समय लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह और कल्याण सिंह जनसभाओं में लोगों को संबोधित करते थे. इस दौरान मुलायम सिंह यादव ने कल्याण सिंह को समाजवादी पार्टी की लाल टोपी भी पहनाई और नारे भी लगवाए थे. हालांकि, मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह की दोस्ती के कसीदे पढ़े गए लेकिन इन दोनों नेताओं की दोस्ती आगे नहीं चल पाई. वर्ष 2009 के चुनाव में सपा को नुकसान हुआ. वहीं, सपा के अंदर भी कल्याण सिंह के खिलाफ आवाज उठने लगी थी. बाद में मुलायम सिंह यादव ने खुलासा किया था कि बीजेपी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह से हाथ मिलाना उनकी सबसे बड़ी गलती थी और इसके लिए उन्होंने माफी भी मांगी थी.

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य विनोद सविता ने बताया कि मुलायम सिंह यादव जनसभाओं में कल्याण सिंह को बड़ा भाई कहकर बुलाते थे और उन्हें अपनी पार्टी के मंचों पर सम्मान देते थे. उन्होंने बताया कि जब कल्याण सिंह बुलंदशहर लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे तब मुलायम सिंह यादव ने अपरोक्ष रूप से उनकी मदद की थी.

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