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अलीगढ़: एएमयू के छात्र रहे मौलाना जन्माष्टमी मनाने जाते थे मथुरा

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हसरत मोहानी 1903 में पढ़ने के लिए आए थे. जब वे यहां स्टूडेंट थे तब फ्रीडम मूवमेंट में दमदार तरीके से हिस्सा लिया था. जब भी कृष्ण जन्माष्टमी होती थी तो वो जन्माष्टमी मनाने मथुरा जाते थे.

एएमयू में पढ़े मौलाना जन्माष्टमी मनाने जाते थे मथुरा
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Published : Aug 23, 2019, 12:34 PM IST

अलीगढ़: देश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले हसरत मोहानी भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे. इस पहलू को लोग कम ही जानते हैं. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में वह 1903 में पढ़ने के लिए आए थे. जब वे यहां स्टूडेंट थे तब फ्रीडम मूवमेंट में दमदार तरीके से हिस्सा लिया था.

स्वदेशी आंदोलन भी इन्होंने चलाया. हसरत मोहानी शायरी भी करते थे. देश को आजाद कराने के लिए भी सबसे आगे रहते थे. इंकलाब जिंदाबाद का नारा इन्होंने लगाया था. 1921 के अहमदाबाद कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थी. भारतीय संविधान पीठ के सदस्य भी रहे.

एएमयू में पढ़े मौलाना जन्माष्टमी मनाने जाते थे मथुरा

कृष्ण को मानते थे प्रेम का प्रतीक
एएमयू में उर्दू एकेडमी के डायरेक्टर राहत अबरार ने बताया कि वे इश्क के बहुत बड़े पुजारी थे. भगवान श्री कृष्ण को वे प्यार का प्रतीक मानते थे. राहत अबरार ने बताया कि वह अलीगढ़ में हो या हिंदुस्तान के किसी कोने में हो. जब भी जन्माष्टमी होती थी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए मथुरा जाते थे. हसरत मोहानी जन्माष्टमी कृष्ण की भूमि पर ही मनाते थे. उनकी शायरी का बहुत बड़ा हिस्सा भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर ही है.

उर्दू एकेडमी के डायरेक्टर राहत अबरार ने बताया कि. वे मोहब्बत के पुजारी थे और प्रेम के ऊपर कई शायरी भी लिखी है. वे अपनी शायरी के जरिए प्यार का पैगाम देना चाहते थे. हसरत के बारे में प्रसिद्ध है कि ने अपने पास बांसुरी भी रखते थे. हसरत ने प्रेम और सौन्दर्य को दैवीय रूप में देखा और अपनी नज्म और गज़लों में वर्णन भी किया. हसरत के कविता संग्रह "कुल्लीयात ए हसरत" में कृष्णभक्ति का रुप मिलता है.

हसरत मोहानी संविधान पीठ के सदस्य भी रहे. जब हिंदुस्तान आजाद हुआ तो उन्होंने कहा कि देश की तरक्की के लिए एक झंडा होना चाहिए, एक संविधान होना चाहिए, और एक प्रधानमंत्री व एक राष्ट्रपति होना चाहिए. हसरत मोहानी ने अनुच्छेद 370 का विरोध किया. वे अपने साथी शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का भी विरोध किया था. देश की आजादी के लिए सबसे बड़ा नारा इंकलाब जिंदाबाद हसरत मोहानी ने हीं दिया था, जिसको देश के क्रांतिकारियों ने आगे बढ़ाया. उनकी शायरी इंकलाब के ऊपर भी है. वे कई बार जेल भी गये. 13 मई 1951 को हसरत मोहानी का निधन हुआ.
- राहत अबरार , डायरेक्टर ,उर्दू एकेडमी, एएमयू

हसरत मोहानी फ्रीडम फाइटर, जर्नलिस्ट, लेखक, शायर भी थे. उनके कृष्ण भक्ति के रूप को बहुत कम ही लोग जानते हैं. चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है इन्ही की रचना है. जिसे गुलाम अली खान ने गाया तो लोगों ने खूब सराहा.

अलीगढ़: देश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले हसरत मोहानी भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे. इस पहलू को लोग कम ही जानते हैं. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में वह 1903 में पढ़ने के लिए आए थे. जब वे यहां स्टूडेंट थे तब फ्रीडम मूवमेंट में दमदार तरीके से हिस्सा लिया था.

स्वदेशी आंदोलन भी इन्होंने चलाया. हसरत मोहानी शायरी भी करते थे. देश को आजाद कराने के लिए भी सबसे आगे रहते थे. इंकलाब जिंदाबाद का नारा इन्होंने लगाया था. 1921 के अहमदाबाद कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थी. भारतीय संविधान पीठ के सदस्य भी रहे.

एएमयू में पढ़े मौलाना जन्माष्टमी मनाने जाते थे मथुरा

कृष्ण को मानते थे प्रेम का प्रतीक
एएमयू में उर्दू एकेडमी के डायरेक्टर राहत अबरार ने बताया कि वे इश्क के बहुत बड़े पुजारी थे. भगवान श्री कृष्ण को वे प्यार का प्रतीक मानते थे. राहत अबरार ने बताया कि वह अलीगढ़ में हो या हिंदुस्तान के किसी कोने में हो. जब भी जन्माष्टमी होती थी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए मथुरा जाते थे. हसरत मोहानी जन्माष्टमी कृष्ण की भूमि पर ही मनाते थे. उनकी शायरी का बहुत बड़ा हिस्सा भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर ही है.

उर्दू एकेडमी के डायरेक्टर राहत अबरार ने बताया कि. वे मोहब्बत के पुजारी थे और प्रेम के ऊपर कई शायरी भी लिखी है. वे अपनी शायरी के जरिए प्यार का पैगाम देना चाहते थे. हसरत के बारे में प्रसिद्ध है कि ने अपने पास बांसुरी भी रखते थे. हसरत ने प्रेम और सौन्दर्य को दैवीय रूप में देखा और अपनी नज्म और गज़लों में वर्णन भी किया. हसरत के कविता संग्रह "कुल्लीयात ए हसरत" में कृष्णभक्ति का रुप मिलता है.

हसरत मोहानी संविधान पीठ के सदस्य भी रहे. जब हिंदुस्तान आजाद हुआ तो उन्होंने कहा कि देश की तरक्की के लिए एक झंडा होना चाहिए, एक संविधान होना चाहिए, और एक प्रधानमंत्री व एक राष्ट्रपति होना चाहिए. हसरत मोहानी ने अनुच्छेद 370 का विरोध किया. वे अपने साथी शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का भी विरोध किया था. देश की आजादी के लिए सबसे बड़ा नारा इंकलाब जिंदाबाद हसरत मोहानी ने हीं दिया था, जिसको देश के क्रांतिकारियों ने आगे बढ़ाया. उनकी शायरी इंकलाब के ऊपर भी है. वे कई बार जेल भी गये. 13 मई 1951 को हसरत मोहानी का निधन हुआ.
- राहत अबरार , डायरेक्टर ,उर्दू एकेडमी, एएमयू

हसरत मोहानी फ्रीडम फाइटर, जर्नलिस्ट, लेखक, शायर भी थे. उनके कृष्ण भक्ति के रूप को बहुत कम ही लोग जानते हैं. चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है इन्ही की रचना है. जिसे गुलाम अली खान ने गाया तो लोगों ने खूब सराहा.

Intro:अलीगढ़ : देश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले हसरत मोहानी भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे. इस पहलू को लोग कम ही जानते हैं.  अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में वह 1903 में पढ़ने के लिए आए थे. जब वे यहां स्टूडेंट थे तब  फ्रीडम मूवमेंट में दमदार तरीके से हिस्सा लिया था. स्वदेशी आंदोलन भी इन्होंने चलाया. हसरत मोहानी शायरी भी करते थे. देश को आजाद कराने के लिए भी सबसे आगे रहते थे. इंकलाब जिंदाबाद का नारा इन्होंने ही दिया था. 1921 के अहमदाबाद कांग्रेस के अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थी. भारतीय संविधान पीठ के सदस्य भी रहे. 





Body:एएमयू में उर्दू एकेडमी के डायरेक्टर राहत अबरार ने बताया कि वे इश्क के बहुत बड़े पुजारी थे. भगवान श्री कृष्ण को वे प्यार का प्रतीक मानते थे. भगवान श्री कृष्ण के प्रेम को उन्होंने अपनी शायरी में भी जगह दी है.  राहत अबरार ने बताया कि वह अलीगढ़ में हो या हिंदुस्तान के किसी कोने में हो. जब भी जन्माष्टमी होती थी . भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए मथुरा जाते थे. हसरत मोहानी जन्माष्टमी कृष्ण की भूमि पर ही मनाते थे. उनकी शायरी का बहुत बड़ा हिस्सा भगवान श्रीकृष्ण के ऊपर ही है. उर्दू एकेडमी के डायरेक्टर राहत अबरार ने उनको हिंदुस्तान का एक अजीबो गरीब इंसान बताया है. वे मोहब्बत के पुजारी थे और प्रेम के ऊपर कई शायरी भी लिखी है. वे अपनी शायरी के जरिए प्यार का पैगाम देना चाहते थे. हसरत के बारे में प्रसिद्ध है कि ने अपने पास बांसुरी भी रखते थे. हसरत ने प्रेम और सौन्दर्य को दैवीय रूप में देखा और अपनी नज्म और गज़लों में वर्णन भी किया. हसरत के कविता संग्रह "कुल्लीयात ए हसरत" में कृष्णभक्ति का रुप मिलता है. हसरत मोहानी फ्रीडम फाइटर, जर्नलिस्ट, लेखक, शायर भी थे. उनके कृष्ण भक्ति के रूप को बहुत कम ही लोग जानते हैं. चुपके चुपके रात दिन आंसू बहाना याद है इन्ही की रचना है. जिसे गुलाम अली खान ने गाया तो लोगों ने खूब सराहा. 



Conclusion:राहत अबरार ने बताया कि हसरत मोहानी संविधान पीठ के सदस्य भी रहे. उन्होंने ही सबसे पहले धारा 370 को हटाने की बात कही थी. जब हिंदुस्तान आजाद हुआ तो उन्होंने कहा कि देश की तरक्की के लिए एक झंडा होना चाहिए, एक संविधान होना चाहिए, और एक प्रधानमंत्री व एक राष्ट्रपति होना चाहिए. हसरत मोहानी ने धारा 370 की विरोध किया. वे अपने साथी शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का भी विरोध किया था. देश की आजादी के लिए सबसे बड़ा नारा इंकलाब जिंदाबाद हसरत मोहानी ने हीं दिया था. जिसको देश के क्रांतिकारियों ने आगे बढ़ाया. उनकी शायरी इंकलाब के ऊपर भी है. वे कई बार जेल भी गये.13 मई 1951 को हसरत मोहानी का निधन हुआ. 

बाइट - राहत अबरार , डायरेक्टर ,उर्दू एकेडमी, एएमयू

आलोक सिंह, अलीगढ़
9837830535


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