अलीगढ़ : चुनाव आयोग लगातार हाईटेक हो रहा है. हर चुनाव में तकनीक को लेकर कुछ न कुछ इजाफा हो रहा है. मगर मतदान के दौरान तर्जनी उंगली पर लगाई जाने वाली अमिट स्याही का वजूद आज भी कायम है. इस स्याही का विकल्प चुनाव आयोग खोज नहीं पाया है. फर्जी मतदान रोकने के लिए आयोग को इसी अमिट स्याही पर निर्भर रहना पड़ता है.
साल 1962 के तीसरे लोकसभा चुनाव में पहली बार इस अमिट स्याही का प्रयोग किया गया था. यह स्याही आम स्याही ही की तरह नहीं है, बल्कि नासिक से बनकर आती है और चुनाव के दौरान निर्वाचन आयोग ही स्याही को उपलब्ध कराता है. मतदान दल के एक पीठासीन अधिकारी को स्याही की एक शीशी दी जाती है. एक शीशी से लगभग 750 मतदाताओं की तर्जनी उंगली में स्याही लगाई जा सकती है. स्याही खत्म होने की स्थिति में जोनल अधिकारी के पास इसकी अतिरिक्त शीशी रखी जाती है. मतदान संपन्न होने के बाद पीठासीन अधिकारी बची हुई स्याही को आयोग में जमा करा देते हैं.
इस अमिट स्याही का इस्तेमाल फर्जी वोटिंग को रोकने के लिए किया जाता है. जब मतदाता वोट डालने जाता है तो उसकी उंगली पर पीठासीन अधिकारी स्याही से निशान लगा देते हैं. यह निशाना 48 घंटे तक लगा रहता है, जिससे अगर मतदाता दोबारा मतदान करने की कोशिश करता है, तो वह पकड़ में आ जाए. हालांकि, केमिकल या तेजाब से ही इस स्याही के निशान को मिटाया जा सकता है. मगर आज आधुनिक दौर में भी इस अमिट स्याही का वजूद कायम है और फर्जी वोटिंग से बचने के लिए इस अमिट स्याही का इस्तेमाल किया जा रहा है