अलीगढ़. कर्नाटक हाईकोर्ट के हिजाब मामले के फैसले को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों ने नाराजगी जाहिर की है. एएमयू छात्रों ने कहा कि वह कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से खुश नहीं है. उन्हें लगता है कि ये एक निर्णय है लेकिन मुसलमानों के लिए कोई न्याय नहीं है. वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.
एएमयू छात्र अबू सैयद दिलावर सिद्दीकी ने कहा कि वह कर्नाटक कोर्ट के फैसले से खुश नहीं हैं. सिख पगड़ी पहन कर आ सकते हैं. पंडित तिलक लगाकर आ सकते हैं लेकिन मुसलमान हिजाब पहनकर नहीं आ सकते. कहा कि उन्हें लगता है कि यह अनुच्छेद 14, 15 और 25 का उल्लंघन है. कहा जाता कि हिजाब या घूंघट इस्लाम का हिस्सा नहीं है तो कुरान के सूरह अल-नूर के श्लोक 31 को पढ़ें जो महिलाओं को घुंघट के लिए कहता है. इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी.
यह भी पढ़ें- हिजाब पर मुस्लिम महिलाएं अड़ीं, कह दी यह बात..
एएमयू की छात्रा फौजिया ने कहा कि जब भीमराव आंबेडकर ने संविधान बनाया तो उन्होंने सभी धर्मों को पढ़ा था ताकि किसी भी धर्म के लोगों की भावनाओं को ठेस न पहुंचे. हमारे मुस्लिम विद्वान हमें बताएंगे कि क्या पहनना है और क्या नहीं पहनना है. हम हाईकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.
कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला साफ दिखता है कि मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जा रहा है. एक तरफ ये समानता की बात करते हैं तो उन्हें हिंदू, सिख और ईसाई नहीं दिखते. शिक्षण संस्थानों में मुस्लिम छात्रों से बुर्का और हिजाब उतार दिया जाता है लेकिन मंगलसूत्र, सिंदूर, पगड़ी आदि को उतारते हुए कोई वीडियो नहीं देखा जाता है. इसलिए केवल मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जा रहा हैं.
एएमयू के असिस्टेंट प्रोफेसर रिहान अख्तर का कहना है कि पैगंबर की पत्नियां पर्दा करतीं थीं. पर्दा इस्लाम का हिस्सा है. इसमें कोई शक नहीं होना चाहिए. प्रोफेसर रेहान ने कहा अदालत का बयान है कि हिजाब इस्लाम का हिस्सा या आवश्यकता नहीं है तो उन्हें लगता है कि इस्लाम के बारे में गलत जानकारी पेश की गई हैं.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व उपाध्यक्ष और AIMIM के प्रदेश महासचिव हमजा सूफियान ने हिजाब प्रकरण पर कहा कि अपने धर्म का पालन करने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया गया है.
भारत में धार्मिक पोशाक या प्रतीक चिन्ह का विषय कोई नया नहीं है. कर्नाटक राज्य का दावा है कि "धार्मिक प्रतीकों और पोशाक" को नहीं पहना जा सकता है. अन्य राज्य उच्च न्यायालयों ने छात्रों को विभिन्न परिस्थितियों में ऐसा करने की अनुमति दी है. भारत जैसे देश में, जहां सरकार के फूट डालो और राज करो के दृष्टिकोण ने पहले ही सांप्रदायिक एकता को तोड़ दिया है.
उन्होंने कहा कि हिजाब (पोशाक) जैसा मुद्दा सामाजिक असंतुलन को बढ़ा देगा. भारत को विभिन्न प्रकार के धर्मों और संस्कृतियों का घर माना जाता है. ऐसा क्यों है कि पगड़ी पहनने वाले सिख, घूंघट पहनने वाली हिंदू महिला या कलावा पहनने वाले युवक या तिलक लगाने वाले लड़कों का भारतीय समाज में सम्मान किया जाता है लेकिन नकाब, बुर्का या हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिला का सम्मान नहीं किया जाता ?
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप