अलीगढ़: सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है... इन शायरियों के जरिए शहरयार साहब आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक शिक्षक की भूमिका निभाते हुए शहरयार साहब मुंबई की फिल्मी दुनिया में भी शोहरत बटोरी. शहरयार का जन्म 16 जून 1936 को बरेली में हुआ था. उनके पिता पुलिस विभाग में थे. शहरयार परिवार में ऐसे पहले शख्स रहे, जिन्होंने शेरो शायरी की दुनिया में कदम रखा. शुरुआत में कुंवर अखलाक मोहम्मद खान के नाम से शायरी करते थे.
उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों में शायरी लिखा. हिज्र के मौसम, सातवां दर्द, ख्वाब का दर बंद है, शाम होने वाली है जैसी रचनाएं लिखी. वह एक शिक्षाविद् होने के साथ-साथ उर्दू में गजलें और नज्में लिखा करते थे. फिल्मों के गाने से लोगों ने इन्हें पहचाना. 1961 में उर्दू में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री लेने के बाद 1966 में एएमयू में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया. यहीं पर उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर 1996 में रिटायर हुए.
शहरयार ने उमराव जान, गमन, आहिस्ता-आहिस्ता आदि हिंदी फिल्मों में गीत लिखीं. सबसे ज्यादा लोकप्रियता उन्हें 1981 में बनी फिल्म उमराव जान से मिली. 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें नवाजा गया. वहीं उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी पुरस्कार, साहित्य अकेडमी पुरस्कार, फिराक सम्मान सहित कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया. शहरयार उर्दू के चौथे साहित्यकार है.
उम्र के आखिरी दौर में उन्हें फेफड़े का कैंसर हो गया और 13 फरवरी 2012 को उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद अलीगढ़ शहर में उनके नाम से नुमाइश मैदान में नीरज शहरयार पार्क बनाया गया है.