ETV Bharat / state

एक सफर: कैसे अलीगढ़ विश्वविद्यालय के शिक्षक ने मुंबई में बटोरी शोहरत - उत्तर प्रदेश समाचार

16 जून 1936 को बरेली में जन्मे शहरयार साहब ने शायरी की दुनिया के साथ-साथ मुंबई की फिल्मी दुनिया में भी शोहरत बटोरी. शहरयार ने उमराव जान, गमन, आहिस्ता-आहिस्ता आदि हिंदी फिल्मों में गीत लिखीं.

कुंवर अखलाक मोहम्मद खान 'शहरयार'.
author img

By

Published : Jun 18, 2019, 7:28 AM IST

Updated : Jun 18, 2019, 2:43 PM IST

अलीगढ़: सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है... इन शायरियों के जरिए शहरयार साहब आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक शिक्षक की भूमिका निभाते हुए शहरयार साहब मुंबई की फिल्मी दुनिया में भी शोहरत बटोरी. शहरयार का जन्म 16 जून 1936 को बरेली में हुआ था. उनके पिता पुलिस विभाग में थे. शहरयार परिवार में ऐसे पहले शख्स रहे, जिन्होंने शेरो शायरी की दुनिया में कदम रखा. शुरुआत में कुंवर अखलाक मोहम्मद खान के नाम से शायरी करते थे.


उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों में शायरी लिखा. हिज्र के मौसम, सातवां दर्द, ख्वाब का दर बंद है, शाम होने वाली है जैसी रचनाएं लिखी. वह एक शिक्षाविद् होने के साथ-साथ उर्दू में गजलें और नज्में लिखा करते थे. फिल्मों के गाने से लोगों ने इन्हें पहचाना. 1961 में उर्दू में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री लेने के बाद 1966 में एएमयू में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया. यहीं पर उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर 1996 में रिटायर हुए.

शहरयार साहब ने शायरी के साथ फिल्मी दुनिया में भी बटोरीं शोहरतें.


शहरयार ने उमराव जान, गमन, आहिस्ता-आहिस्ता आदि हिंदी फिल्मों में गीत लिखीं. सबसे ज्यादा लोकप्रियता उन्हें 1981 में बनी फिल्म उमराव जान से मिली. 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें नवाजा गया. वहीं उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी पुरस्कार, साहित्य अकेडमी पुरस्कार, फिराक सम्मान सहित कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया. शहरयार उर्दू के चौथे साहित्यकार है.


उम्र के आखिरी दौर में उन्हें फेफड़े का कैंसर हो गया और 13 फरवरी 2012 को उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद अलीगढ़ शहर में उनके नाम से नुमाइश मैदान में नीरज शहरयार पार्क बनाया गया है.

अलीगढ़: सीने में जलन आंखों में तूफान सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यूं है... इन शायरियों के जरिए शहरयार साहब आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक शिक्षक की भूमिका निभाते हुए शहरयार साहब मुंबई की फिल्मी दुनिया में भी शोहरत बटोरी. शहरयार का जन्म 16 जून 1936 को बरेली में हुआ था. उनके पिता पुलिस विभाग में थे. शहरयार परिवार में ऐसे पहले शख्स रहे, जिन्होंने शेरो शायरी की दुनिया में कदम रखा. शुरुआत में कुंवर अखलाक मोहम्मद खान के नाम से शायरी करते थे.


उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों में शायरी लिखा. हिज्र के मौसम, सातवां दर्द, ख्वाब का दर बंद है, शाम होने वाली है जैसी रचनाएं लिखी. वह एक शिक्षाविद् होने के साथ-साथ उर्दू में गजलें और नज्में लिखा करते थे. फिल्मों के गाने से लोगों ने इन्हें पहचाना. 1961 में उर्दू में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री लेने के बाद 1966 में एएमयू में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया. यहीं पर उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर 1996 में रिटायर हुए.

शहरयार साहब ने शायरी के साथ फिल्मी दुनिया में भी बटोरीं शोहरतें.


शहरयार ने उमराव जान, गमन, आहिस्ता-आहिस्ता आदि हिंदी फिल्मों में गीत लिखीं. सबसे ज्यादा लोकप्रियता उन्हें 1981 में बनी फिल्म उमराव जान से मिली. 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से इन्हें नवाजा गया. वहीं उन्हें उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी पुरस्कार, साहित्य अकेडमी पुरस्कार, फिराक सम्मान सहित कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया. शहरयार उर्दू के चौथे साहित्यकार है.


उम्र के आखिरी दौर में उन्हें फेफड़े का कैंसर हो गया और 13 फरवरी 2012 को उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद अलीगढ़ शहर में उनके नाम से नुमाइश मैदान में नीरज शहरयार पार्क बनाया गया है.

Intro:अलीगढ़ : शहरयार उर्दू अदब का एक बड़ा नाम है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में एक शिक्षक की भूमिका निभाते हुए मुंबई की फिल्मी दुनिया में भी शोहरत बटोरी. शहरयार का जन्म 16 जून 1936 को बरेली में हुआ था. उनके पिता पुलिस विभाग में थे. शहरयार परिवार में ऐसे पहले शख्स रहे. जिन्होंने शेरो शायरी की दुनिया में कदम रखा. शुरुआत में कुंवर अखलाक मोहम्मद खान के नाम से शेरो शायरी करते थे. उसके बाद उनके दोस्तों ने एतराज जताया कि यह नाम शायराना नहीं है. दोस्तों के कहने पर इन्होंने अपना नाम शहरयार रख लिया. उमराव जान में लिखे गये गाने बेहद पसंद किए गए. उन्होंने उर्दू और हिंदी दोनों जवानों में लिखा. उनकी नज्म पर लोग रिसर्च कर रहे हैं. हिज्र के मौसम, सातवां दर्द, ख़्वाब का दर बंद है, शाम होने वाली है जैसी रचनाएं लिखी.







Body:वह एक शिक्षाविद् होने के साथ-साथ उर्दू में गजलें और नज्में लिखा करते थे . फिल्मों में भी उन्होंने गाने लिखे जो बेहद पसंद किए गए और इसी फिल्म नगरी से लोगों ने इन्हें पहचाना. शहरयार को ज्ञानपीठ अवार्ड से नवाजा गया. शहरयार का जन्म उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में एक मुस्लिम परिवार में 1936 में हुआ था. 1961 में उर्दू में पोस्ट ग्रैजुएट डिग्री लेने के बाद, 1966 में एएमयू में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया और यहीं पर उर्दू के विभागाध्यक्ष के तौर पर 1996 में रिटायर हुए. शहरयार साहब ने लिखा किस्सा मेरे जुनू का बहुत याद आएगा. जब जब कोई चिराग हवा में जलआएगा.


Conclusion:बेहद सरल भाषा में इन्होंने अपनी शायरी को अंजाम दिया. शहरयार ने उमराव जान, गमन, आहिस्ता आहिस्ता आदि हिंदी फिल्मों में गीत लिखे. लेकिन सबसे ज्यादा लोकप्रियता 1981 में बनी फिल्म उमराव जान से मिली. दिल चीज क्या है आप मेरी जान लीजिए.. इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों है... जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने कभी.. किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता.. जैसे गीत लिखकर हिंदी फिल्म जगत में शहरयार लोकप्रिय हुए. 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से दिया गया. वहीं उत्तर प्रदेश उर्दू अकैडमी पुरस्कार, साहित्य अकैडमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार, फिराक सम्मान सहित कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया. शहरयार उर्दू के चौथे साहित्यकार है. जिन्हें ज्ञानपीठ सम्मान मिला. इससे पहले फिराक गोरखपुरी, कुर्रतुल एन हैदर और अली सरदार जाफरी को ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.

उम्र के आखिरी दौर में उन्हें फेफड़े का कैंसर हो गया और 13 फरवरी 2012 को उनका निधन हो गया. अलीगढ़ शहर में उनके नाम से नुमाइश मैदान में नीरज शहरयार पार्क बनाया गया है. हालांकि 16 जून को उनका जन्म दिवस था लेकिन एएमयू में छुट्टी के चलते और परिजनों के बाहर होने के कारण उनको याद नहीं किया गया.  उनके मित्र और विश्वविद्यालय के पूर्व जनसंपर्क अधिकारी राहत अबरार ने उनको एक जिंदादिल इंसान बताया.उन्होंने बताया कि स्टूडेंट लाइफ में ही शायरी करने लगे थे. लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में लिखे गाने से प्रसिध्द हुए.अदब व शायरी में उनका बड़ा मुकाम था.शायरी में उन्होंने नया लहजा अख्तियार किया,राहत अबरार ने कहा कि उनकी शायरी हमेशा जिंदा रहेगी.हालाकि उनके जन्मदिवस पर अलीगढ़ में कोई जलसा नहीं आयोजित किया गया.एएमयू में समर वेकेसन के चलते शहरयार को याद नहीं किया गया.हालाकि छात्र उन पर रिसर्च कर रहे है.और उन पर नई किताबें आ रही हैं.

बाइट - राहत अबरार, पूर्व जनसम्पर्क अधिकारी, एएमयू


आलोक सिंह, अलीगढ़
9837830535


Last Updated : Jun 18, 2019, 2:43 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.