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जिन्हें चुनाव लड़ाना चाहिए, वे लड़ रहीं चुनाव : अरुण कांत कठेरिया - यूपी विधानसभा चुनाव 2022

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर नेताओं की उठा-पठक चल रही है. कई नेताओं ने अपने दल बदल लिए हैं. आगरा ग्रामीण से आप ने अरुण कांत कठेरिया को प्रत्याशी बनाया है. कठेरिया ने भाजपा छोड़कर आप का दामन थाम लिया है.

अरुण कांत कठेरिया
अरुण कांत कठेरिया
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Published : Jan 18, 2022, 12:25 PM IST

आगरा: यूपी के 11 जिलों की 58 विधानसभा सीट पर 10 फरवरी को प्रथम चरण का मतदान होना है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जैसे ही प्रथम चरण की विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की, वैसे ही पार्टी में विरोध और बगावत सामने आने लगी. विरोध और बगावत के बीच आम आदमी पार्टी (आप) ने भाजपा को आगरा में बड़ी पटखनी दी है.

भाजपा के तीन बार के सासंद प्रभु दयाल कठेरिया के बेटे अरुण कांत कठेरिया ने भाजपा को छोड़कर आम आदमी पार्टी (आप) का दामन थाम लिया है. आप ने अरुण कांत कठेरिया को आगरा ग्रामीण से प्रत्याशी बनाया है. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में अरुण कांत कठेरिया से जमकर भाजपा पर निशाना साधा.

अरुण कांत कठेरिया से बातचीत.

उन्होंने कहा कि मैंने गांव-गांव और गली-गली घूमकर अपनी तैयारी की, लेकिन पार्टी ने मुझे टिकट नहीं दिया. भाजपा ने जिन्हें टिकट दिया है, उन्हें आसमान से उतारकर जमीन पर बिठाया है. मेरा मानना है कि जो पूर्व राज्यपाल रही हैं, जिनकी उम्र ही 65-70 हो चुकी है, उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट देना कितना सही होगा. जिनकी उम्र खुद चुनाव लड़ाने की है, वे आज खुद चुनाव लड़ रही हैं.

बता दें कि भाजपा नेता प्रभु दयाल कठेरिया तीन बार फिरोजाबाद से सांसद रहे हैं. पूर्व सांसद प्रभु दयाल कठेरिया उस समय के सांसद हैं, जब भाजपा के दो ही सांसद हुआ करते थे. पार्टी में जिस तरह से उन्हें हाशिये पर खड़ा कर दिया है इसको लेकर ही पूर्व सांसद प्रभु दयाल कठेरिया ने सोमवार को भाजपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने भाजपा पर यह भी आरोप लगाया था कि उनकी लगातार अनदेखी की गई. लगातार मेहनत के बाद भी उनके बेटे अरुण कांत कठेरिया को पार्टी ने टिकट नहीं दिया.

'पूर्व राज्यपाल का विधानसभा का चुनाव लड़ना उचित नहीं'

आप के प्रत्याशी अरुण कांत कठेरिया ने बताया कि मैंने पर्चा भी आगरा ग्रामीण विधानसभा से दाखिल कर दिया है. मेरी प्राथमिकता जनता की सेवा है. पिछले एक साल से मैं लगातार गांव-गांव और गली-गरी घूमकर जनता से संपर्क कर रहा था. फिर पार्टी ने मुझ पर विश्वास नहीं जताया. जब उनसे सवाल किया गया कि टिकट कटने के बाद उन्होंने पार्टी से बगावत करके आम आदमी पार्टी का हाथ थामा है तो अरुण कांत कठेरिया ने कहा कि यह कोई बगावत नहीं है.

उन्होंने कहा कि वे पार्टी का झंडा थामकर काम कर रहे थे. पार्टी ने जो निर्णय लिया, वे उस निर्णय के खिलाफ हैं. यह पार्टी को शोभा नहीं देता है. जिनको भारतीय जनता पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है, उन्हें आसमान पर बिठाकर जमीन पर लाकर रख दिया है. जो व्यक्तित्व राज्यपाल रहा हो उसे फिर कहीं से भी विधानसभा का चुनाव लड़ाना उचित नहीं लगता है. पूर्व राज्यपाल की उम्र 65 से 70 साल है. यह उम्र उनकी चुनाव लड़ाने की थी न कि चुनाव लड़ने की.

पिता का आशीर्वाद है, अटलजी के समय के सांसद

आप प्रत्याशी अरुण कांत कठेरिया का कहना है कि पार्टी ने जिस तरह से फैसला किया है उससे साफ है कि कुछ ऐसे लोग हैं जो उनसे व्यक्तिगत दुश्मनी मानते हैं. चाहते हैं कि वे भाजपा में नहीं रहें. हमारे परिवार को पार्टी से खत्म करने की योजना है. इसी कारण वह हमसे द्वेष रखते हुए उन्हें जमीन से खत्म किया गया है. जब अरुण कांत कठेरिया से यह सवाल किया गया कि उनके पिता अभी भी भाजपा के सदस्य हैं. क्या वे आपके लिए चुनाव प्रचार करेंगे. इस पर उन्होंने कहा कि हर बेटा यही चाहता है कि उसे पिता का आशीर्वाद हमेशा मिले और उसके पिता उसके साथ रहें. पार्टी बनती और बिगड़ती हैं.

यह भी पढ़ें: सीएम योगी पर प्रियंका का प्रहार, कहा- युवाओं की हताशा पर नहीं बोलेंगे योगी जी

उन्होंने कहा कि उनके पिता आज भी भाजपा के कार्यकर्ता थे और रहेंगे. ऐसे कई उदाहरण भी हैं. जैसे स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा को छोड़कर सपा में शामिल हो गए हैं, लेकिन उनकी बेटी अभी भी भाजपा की सांसद हैं. दोनों अलग-अलग विचारधारा से जुड़े हैं और कार्य भी कर रहे हैं. इसी तरह से वे पिता-पुत्र भी अलग-अलग विचारधारा में रहकर काम करेंगे. पूर्व सांसद प्रभु नारायण कठेरिया का भाजपा से 30 साल पुराना रिश्ता है. इन्होंने पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ काम किया है और उन्हीं के समय के सांसद हैं.

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आगरा: यूपी के 11 जिलों की 58 विधानसभा सीट पर 10 फरवरी को प्रथम चरण का मतदान होना है. भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने जैसे ही प्रथम चरण की विधानसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की, वैसे ही पार्टी में विरोध और बगावत सामने आने लगी. विरोध और बगावत के बीच आम आदमी पार्टी (आप) ने भाजपा को आगरा में बड़ी पटखनी दी है.

भाजपा के तीन बार के सासंद प्रभु दयाल कठेरिया के बेटे अरुण कांत कठेरिया ने भाजपा को छोड़कर आम आदमी पार्टी (आप) का दामन थाम लिया है. आप ने अरुण कांत कठेरिया को आगरा ग्रामीण से प्रत्याशी बनाया है. ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में अरुण कांत कठेरिया से जमकर भाजपा पर निशाना साधा.

अरुण कांत कठेरिया से बातचीत.

उन्होंने कहा कि मैंने गांव-गांव और गली-गली घूमकर अपनी तैयारी की, लेकिन पार्टी ने मुझे टिकट नहीं दिया. भाजपा ने जिन्हें टिकट दिया है, उन्हें आसमान से उतारकर जमीन पर बिठाया है. मेरा मानना है कि जो पूर्व राज्यपाल रही हैं, जिनकी उम्र ही 65-70 हो चुकी है, उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट देना कितना सही होगा. जिनकी उम्र खुद चुनाव लड़ाने की है, वे आज खुद चुनाव लड़ रही हैं.

बता दें कि भाजपा नेता प्रभु दयाल कठेरिया तीन बार फिरोजाबाद से सांसद रहे हैं. पूर्व सांसद प्रभु दयाल कठेरिया उस समय के सांसद हैं, जब भाजपा के दो ही सांसद हुआ करते थे. पार्टी में जिस तरह से उन्हें हाशिये पर खड़ा कर दिया है इसको लेकर ही पूर्व सांसद प्रभु दयाल कठेरिया ने सोमवार को भाजपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने भाजपा पर यह भी आरोप लगाया था कि उनकी लगातार अनदेखी की गई. लगातार मेहनत के बाद भी उनके बेटे अरुण कांत कठेरिया को पार्टी ने टिकट नहीं दिया.

'पूर्व राज्यपाल का विधानसभा का चुनाव लड़ना उचित नहीं'

आप के प्रत्याशी अरुण कांत कठेरिया ने बताया कि मैंने पर्चा भी आगरा ग्रामीण विधानसभा से दाखिल कर दिया है. मेरी प्राथमिकता जनता की सेवा है. पिछले एक साल से मैं लगातार गांव-गांव और गली-गरी घूमकर जनता से संपर्क कर रहा था. फिर पार्टी ने मुझ पर विश्वास नहीं जताया. जब उनसे सवाल किया गया कि टिकट कटने के बाद उन्होंने पार्टी से बगावत करके आम आदमी पार्टी का हाथ थामा है तो अरुण कांत कठेरिया ने कहा कि यह कोई बगावत नहीं है.

उन्होंने कहा कि वे पार्टी का झंडा थामकर काम कर रहे थे. पार्टी ने जो निर्णय लिया, वे उस निर्णय के खिलाफ हैं. यह पार्टी को शोभा नहीं देता है. जिनको भारतीय जनता पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया है, उन्हें आसमान पर बिठाकर जमीन पर लाकर रख दिया है. जो व्यक्तित्व राज्यपाल रहा हो उसे फिर कहीं से भी विधानसभा का चुनाव लड़ाना उचित नहीं लगता है. पूर्व राज्यपाल की उम्र 65 से 70 साल है. यह उम्र उनकी चुनाव लड़ाने की थी न कि चुनाव लड़ने की.

पिता का आशीर्वाद है, अटलजी के समय के सांसद

आप प्रत्याशी अरुण कांत कठेरिया का कहना है कि पार्टी ने जिस तरह से फैसला किया है उससे साफ है कि कुछ ऐसे लोग हैं जो उनसे व्यक्तिगत दुश्मनी मानते हैं. चाहते हैं कि वे भाजपा में नहीं रहें. हमारे परिवार को पार्टी से खत्म करने की योजना है. इसी कारण वह हमसे द्वेष रखते हुए उन्हें जमीन से खत्म किया गया है. जब अरुण कांत कठेरिया से यह सवाल किया गया कि उनके पिता अभी भी भाजपा के सदस्य हैं. क्या वे आपके लिए चुनाव प्रचार करेंगे. इस पर उन्होंने कहा कि हर बेटा यही चाहता है कि उसे पिता का आशीर्वाद हमेशा मिले और उसके पिता उसके साथ रहें. पार्टी बनती और बिगड़ती हैं.

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उन्होंने कहा कि उनके पिता आज भी भाजपा के कार्यकर्ता थे और रहेंगे. ऐसे कई उदाहरण भी हैं. जैसे स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा को छोड़कर सपा में शामिल हो गए हैं, लेकिन उनकी बेटी अभी भी भाजपा की सांसद हैं. दोनों अलग-अलग विचारधारा से जुड़े हैं और कार्य भी कर रहे हैं. इसी तरह से वे पिता-पुत्र भी अलग-अलग विचारधारा में रहकर काम करेंगे. पूर्व सांसद प्रभु नारायण कठेरिया का भाजपा से 30 साल पुराना रिश्ता है. इन्होंने पंडित अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ काम किया है और उन्हीं के समय के सांसद हैं.

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