आगरा: 'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना'... यह पंक्तियां मथुरा के अनीस और जाफर अली पर सटीक बैठती हैं. भले ही वे और उनका परिवार इस्लाम धर्म को मानता है लेकिन दशहरे पर जलाए जाने वाले रावण के पुतलों को वह बड़े मन से बनाते हैं. यही वजह है कि उत्तर भारत में प्रसिद्ध आगरा की रामलीला हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश करती है. करीब सवा माह पहले मथुरा से आए जफर और अनीस के साथ मुस्लिम कारीगर रावण और उसके कुनबे के पुतला बनाने में लगे हुए हैं.
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1 कुंतल मैदा और 2 कुंतल लगती है रद्दी
अनीस ने बताया कि रावण और उसके कुनबे के पुतले बनाने के लिए हमें रद्दी, बांस, सुतली समेत अन्य तमाम सामान कमेटी की ओर से उपलब्ध कराया जाता है. रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले बनाने में एक कुंतल मैदा, दो कुंतल रद्दी और करीब 2000 बांस लग जाते हैं. सवा माह से 5 कारीगर पुतले बनाने के काम में लगे हुए हैं.
100 फीट ऊंचा बनाया जा रहा है रावण
जफर ने बताया कि पहले आगरा में दशहरे पर रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले बनाने के लिए हमारे दादा जी आते थे. इसके बाद पिताजी और उसके बाद भाई और अब मैं अपने भतीजे के साथ आ रहा हूं. इस बार रावण के पुतले की ऊंचाई 100 फीट रखी गई है. बारिश होने की वजह से काम करने में कुछ परेशानी आ रही है. कारीगर ने बताया कि करीब एक माह तक हमारा काम नहीं चलता है इस दौरान हम फ्री रहते हैं और यहां पर हमलोग लोग पुतला बनाने के लिए आते हैं. उनका कहना है कि उन्हें रावण का पुतला बनाना अच्छा लगता है. जो गलत प्रवृत्ति के लोग होते हैं वही हिंदू मुस्लिम को लेकर सवाल खड़े करते हैं.